तमिलनाडु के राज्यपाल और वक्फ कानून से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद यह बहस फिर से तेज हो गई है कि क्या न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायिका के अधिकार क्षेत्र में दखल दे रही है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे की गूंज सुनाई दी जब पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा को लेकर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस बी. आर. गवई और ए. जी. मसीह की पीठ ने इस संदर्भ में टिप्पणी की।
उन्होंने कहा कि हमें केंद्र को निर्देश देने का आदेश देना है...? वैसे ही हम पर पहले से ही कार्यपालिका और विधायिका के कामों में हस्तक्षेप करने का आरोप लग रहा है। न्यायमूर्ति गवई ने यह टिप्पणी तब की जब याचिकाकर्ता की ओर से वकील विष्णु शंकर जैन ने पहले से लंबित याचिका में कुछ नए दस्तावेज प्रस्तुत करने की अनुमति मांगी।
राज्यपाल पर की थी टिप्पणी
यह मामला ऐसे समय में उठा है जब सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु के राज्यपाल आर. एन. रवि द्वारा 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजने के कदम को ‘अवैध और त्रुटिपूर्ण’ करार दिया था। ये विधेयक पहले ही राज्य विधानसभा द्वारा पुनर्विचारित किए जा चुके थे। कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए ‘एक तय समयसीमा’ के भीतर निर्णय लेना होगा।
बीजेपी नेता ने लगाए थे आरोप
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों पर सवाल उठाए जाने के बाद बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने बेहद तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को निशाना बनाते हुए कहा,
‘देश में जितने भी सिविल वॉर (गृहयुद्ध) जैसे हालात हैं, उनके लिए चीफ जस्टिस जिम्मेदार हैं।’ हालांकि, पार्टी ने इस बयान से खुद को अलग कर लिया।
इससे पहले एक अन्य बीजेपी सांसद दिनेश शर्मा ने भी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर कहा था, ‘भारत के संविधान के अनुसार, कोई भी लोकसभा और राज्यसभा को निर्देश नहीं दे सकता। राष्ट्रपति ने पहले ही अपनी सहमति दे दी है, और राष्ट्रपति को कोई चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि राष्ट्रपति सर्वोच्च हैं।’
अब जस्टिस गवई द्वारा की गई टिप्पणी इन दोनों बयानों के संदर्भ में मानी जा रही है।
क्या था मामला
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका सुनी गई, उसमें बंगाल के मुर्शिदाबाद में हालिया हिंसा के मद्देनज़र केंद्र सरकार से अनुच्छेद 355 और 356 के तहत कार्रवाई की मांग की गई। याचिकाकर्ता ने कहा कि ‘राज्य में हालात इतने बिगड़ गए हैं कि वे देश की संप्रभुता और एकता के लिए खतरा बन सकते हैं।’
- अनुच्छेद 355 के तहत केंद्र सरकार का यह कर्तव्य है कि वह राज्य को बाहरी हमले और आंतरिक अशांति से बचाए।
- अनुच्छेद 356 के तहत यदि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था विफल हो जाए तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
न्यायिक जांच समिति गठित करने की मांग
याचिका में यह भी अनुरोध किया गया कि 2022 से अप्रैल 2025 तक पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध, हिंसा और मानवाधिकार हनन की घटनाओं की जांच के लिए एक न्यायिक समिति गठित की जाए। यह समिति एक सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश और दो सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीशों की निगरानी में काम करे और अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपे।
अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की अपील
इसके अलावा याचिका में केंद्र सरकार को राज्य के संवेदनशील क्षेत्रों में अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती का निर्देश देने और राज्य सरकार को नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा के लिए संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 के तहत सभी आवश्यक कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई है।