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'आप कमेटी के सामने क्यों गए?', जस्टिस वर्मा से सुप्रीम कोर्ट के 5 सवाल

इन-हाउस इन्क्वायरी कमेटी और महाभियोग की सिफारिश को चुनौती देने वाली जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।

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जस्टिस वर्मा। (Photo Credit: Khabargaon)

कैश कांड में फंसे इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने सुनवाई की। बेंच ने जस्टिस वर्मा से पूछा कि इन-हाउस इन्क्वायरी कमेटी को चुनौती कैसे दे सकते हैं, जबकि आप खुद इसमें शामिल हुए थे? बेंच ने यह भी पूछा कि अगर आपका मानना है कि कमेटी को मामले की जांच करने का अधिकार नहीं है तो आपने कमेटी की रिपोर्ट आने का इंतजार क्यों किया?

 

सुप्रीम कोर्ट जस्टिस वर्मा की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ इन-हाउस इन्क्वायरी कमेटी की जांच पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की तरफ से उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाए जाने की सिफारिश को भी चुनौती दी है।

 

जस्टिस दत्ता ने याचिका में केंद्र सरकार को भी पार्टी बनाए जाने पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि आपका मुद्दा सुप्रीम कोर्ट से है। वहीं, जस्टिस वर्मा की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत ही किसी जज को पद से हटाया जा सकता है, न कि किसी इन्क्वायरी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछे 5 सवाल

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने जस्टिस वर्मा के वकील कपिल सिब्बल से 5 सवाल किए।

  • पहला: आप इन-हाउस इन्क्वायरी कमेटी के सामने पेश क्यों हुए?
  • दूसरा: क्या आप कोर्ट इसलिए आए थे ताकि वीडियो हटा दिया जाए?
  • तीसरा: आपने जांच पूरी होने और रिपोर्ट आने का इंतजार क्यों किया?
  • चौथा: क्या आपको उम्मीद थी कि इन्क्वायरी कमेटी आपके पक्ष में फैसला देगी?
  • पांचवां: जब कमेटी का गठन हुआ था, तभी आपने इसे चुनौती क्यों नहीं दी?

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सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ?

जस्टिस दत्ता ने कहा कि महाभियोग की प्रक्रिया राजनीतिक होती है। उन्होंने कहा कि इन-हाउस इन्क्वायरी कमेटी की जांच में हिस्सा लेने के बाद इसे चुनौती नहीं दे सकते।

 

जस्टिस दत्ता ने कहा, 'आप कमेटी के सामने पेश क्यों हुए? आप एक कंस्टीट्यूशनल अथॉरिटी हैं। आप यह नहीं कह सकते कि मुझे नहीं पता था'

 

जस्टिस वर्मा की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने चीफ जस्टिस की ओर से राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से महाभियोग की सिफारिश करने पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि आंतरिक प्रक्रिया के अनुसार किसी जज को हटाने की सिफारिश करना चीफ जस्टिस के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।

 

हालांकि, जस्टिस दत्ता ने इस पर असहमति जताते हुए कहा कि यह मामला राष्ट्रपति के पास रखा जाना चाहिए, क्योंकि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करते हैं, इसलिए इसे प्रधानमंत्री के पास भेजना भी कोई दिक्कत वाली बात नहीं है।

 

 

वहीं, सिब्बल ने दावा किया कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुआ। सिब्बल ने कहा, 'अगर घर के बाहर नकदी मिली है तो जज के खिलाफ मामला कैसे बन सकता है?' इस पर बेंच ने कहा कि उन्होंने न तो नकदी मिलने से इनकार किया है और न ही आग लगने की घटना से। हालांकि, इसके बाद सिब्बल ने दावा किया कि 'अभी तक पता नहीं चला है कि यह नकदी किसकी है?'

 

इसके बाद सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जस्टिस वर्मा के घर पर मिले कैश का वीडियो जारी करने पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, 'वीडियो जारी होने के बाद जस्टिस वर्मा को जनता की नजरों में दोषी ठहराया गया।' इस पर जस्टिस दत्ता ने कहा कि आपने इन-हाउस इन्क्वायरी और आग लगने की घटना के वीडियो और तस्वीरों को चुनौती देने के लिए पहले सुप्रीम कोर्ट का रुख क्यों नहीं किया?

 

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इस मामले में अब आगे क्या?

जस्टिस वर्मा ने 18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने इन-हाउस इन्क्वायरी कमेटी की जांच और अपने खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की जाने को चुनौती दी थी। उन्होंने दावा किया था कि कमेटी ने अपनी रिपोर्ट देने से पहले उन्हें जवाब देने का मौका नहीं दिया था।

 

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दत्ता और जस्टिस मसीह की बेंच सुनवाई कर रही है। बेंच ने वकील कपिल सिब्बल को कमेटी की रिपोर्ट भी जमा करने को कहा है। इस मामले पर सुनवाई के लिए कोर्ट ने अगली तारीख 30 जुलाई तय की है

क्या है पूरा मामला?

इस साल 14 मार्च को जस्टिस वर्मा के घर से करीब 15 करोड़ रुपये कैश मिला था। उस वक्त जस्टिस वर्मा घर से बाहर थे। घर में आग लगने की सूचना मिलने के बाद जब फायर ब्रिगेड यहां पहुंची थी, तो जली हुई नोटों की गड्डियां मिली थीं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट में कर दिया था।

 

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