केंद्र सरकार इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने के विकल्प पर विचार कर रही है। जस्टिस वर्मा को दिल्ली में उनके आधिकारिक आवास से भारी मात्रा में जली हुई नकदी मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त जांच समिति ने दोषी ठहराया था।
न्यूज एजेंसी PTI ने सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया है कि अगर जस्टिस वर्मा खुद इस्तीफा नहीं देते हैं तो उनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जाएगा। संसद का मॉनसून सत्र 15 जुलाई के बाद शुरू हो सकता है।
इस्तीफा देने से कर दिया इनकार
मार्च में मामला सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने एक आंतरिक जांच समिति का गठन किया था। इस समिति ने जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया था। हालांकि, समिति की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है।
सूत्रों का कहना है कि जांच समिति की रिपोर्ट के बाद तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने को कहा था लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई करने की सिफारिश की थी।
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क्या है पूरा मामला?
इस साल मार्च में जस्टिस वर्मा के घर से करीब 15 करोड़ रुपये कैश मिला था। उस वक्त जस्टिस वर्मा घर से बाहर थे। घर में आग लगने की सूचना मिलने के बाद जब फायर ब्रिगेड यहां पहुंची थी, तो जली हुई नोटों की गड्डियां मिली थीं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कर दिया था।
तो पहले जज होंगे जस्टिस वर्मा
हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज या चीफ जस्टिस को ऐसे ही नहीं हटाया जा सकता है। इसकी बाकायदा एक संवैधानिक प्रक्रिया होती है। किसी जज को पद से हटाने के लिए संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जाता है। इस प्रस्ताव को लोकसभा के कम से कम 100 और राज्यसभा के 50 सांसदों का समर्थन जरूरी है। अगर यह प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों से पास हो जाता है तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति अपने आदेश से उस जज को पद से हटा देते हैं।
हालांकि, आज तक भारत में किसी भी जज को महाभियोग के जरिए पद से नहीं हटाया गया है। हालांकि, कई बार जजों के खिलाफ महाभियोग लाने की कोशिश जरूर हुई है। इतना ही नहीं, आज तक किसी भी जज को भ्रष्टाचार के मामले में दोषी नहीं पाया गया है। अगर जस्टिस वर्मा को महाभियोग के जरिए हटाया जाता है तो वह इस तरीके से पद से हटने वाले पहले जज होंगे।
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कौन हैं जस्टिस वर्मा?
जस्टिस वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था। दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज से बीकॉम करने के बाद उन्होंने एमपी की रीवा यूनिवर्सिटी से LLB की डिग्री हासिल की। जस्टिस वर्मा 1992 में एडवोकेट बने। 13 अक्टूबर 2014 को उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया। 1 फरवरी 2016 को जस्टिस वर्मा इलाहाबाद हाई कोर्ट के परमानेंट जज बने। जस्टिस वर्मा 11 अक्टूबर 2021 को दिल्ली हाई कोर्ट के जज नियुक्त हुए थे। कैश कांड सामने आने के बाद उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया है।