'बिहार का पानी ले जाएंगे', कहने वाले कन्हैया की चिंता कितनी वाजिब है?
देश
• NEW DELHI 27 Mar 2025, (अपडेटेड 27 Mar 2025, 2:36 PM IST)
कांग्रेस के नेता कन्हैया कुमार का बिहार के पानी को लेकर दिया गया एक बयान चर्चा में है। इस बयान के बहाने यह समझिए कि बिहार समेत पूरे देश में पानी का संकट कितना गंभीर हो रहा है।

कन्हैया कुमार ने बिहार के पानी पर जताई थी चिंता, Photo Credit: Khabargaon
बिहार में कांग्रेस के नेता कन्हैया कुमार इन दिनों एक यात्रा निकाल रहे हैं। इसी यात्रा के दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कन्हैया कुमार ने कुछ ऐसा कहा जो वायरल हो गया। कन्हैया कुमार यह बता रहे थे कि दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार के पास पानी ज्यादा है और आने वाले समय में यही पानी लेने के लिए ही भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत सड़कें बनाई जा रही हैं। कन्हैया की इन बातों के बहाने यह जानना जरूरी है कि असल में हकीकत क्या है और क्या सच में बिहार के पास इतना पानी है कि दूसरे राज्य उसे हासिल करना चाहेंगे?
कन्हैया कुमार ने कहा था, 'अभी हमारी यात्रा ढाका से होकर दरभंगा आई है। ढाका में भारतमाला प्रोजेक्ट बन रहा है। भारतमाला प्रोजेक्ट क्यों बन रहा है? किसके लिए बन रहा है? बिहार में जब कुछ है ही नहीं तो रोड क्यों बन रहा है? बिहार में है, बिहार में वह है जिसके लिए दुनिया तरसने वाली है। मेरी यह बात, मेरी यह प्रेस कॉन्फ्रेंस याद कीजिएगा, मैं आज बोल रहा हूं। पानी पेट्रोल से भी ज्यादा कीमती होने वाला है क्योंकि पेट्रोल पीने से प्यास नहीं बुझती है। पानी की जरूरत सबको है। दुनिया में जिस तरह से पानी खत्म हो रहा है, दुनियाभर के पूंजीपतियों और कारोबारियों की नजर बिहार के पानी पर है। ये जो बड़ी-बड़ी सड़कें बन रही हैं, हमारे पास, ये यहां का संसाधन लूटने के लिए बनाई जा रही हैं।'
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कन्हैया कुमार का यह बयान तेजी से वायरल हुआ और उनको जमकर कोसा जाने लगा। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने यह भी लिखा- 'पढ़े-लिखे कन्हैया कुमार इतनी बेतुकी बातें कैसे कर सकते हैं?' दरअसल, कन्हैया कुमार बिहार में लगने वाली छोटी फैक्ट्रियों और उनमें किए जाने वाले भूजल दोहन की बात करके यह इशारा कर रहे थे कि फैक्ट्रियां और आएंगी तो पानी का दोहन और बढ़ेगा। ऐसे में यह समझने की जरूरत है कि भारत में पानी की स्थिति क्या है, बिहार में पानी की स्थिति क्या है, क्या सच में पूरा देश आने वाले समय में पीने के पानी के संकट से जूझने वाला है? आइए विस्तार से समझते हैं...
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— Ankur Singh (@iAnkurSingh) March 25, 2025
बिहार में बड़ी-बड़ी सड़कें क्यों बन रही हैं?
सड़क बन रही बिहार का 'पानी' लूट कर ले जाने के लिए 😂
"दुनिया भर के पूंजीपतियों की नजर बिहार के पानी पर है”
8 साल टैक्स पेयर के पैसों पर PhD करके ऐसी बकवास कर रहा। pic.twitter.com/jEgIGlqaDH
बिहार की जल शक्ति
बिहार में कुल 8 रीवर बेसिन हैं। गंगा, महानंदा, कोसी, कमला बलान, अधवारा, बागमती, बूढ़ी गंडक और गंडक। ज्यादातर खेती इन नदियों के पानी पर निर्भर होती है। लगभग एक दर्जन से ज्यादा बड़ी नदियों की वजह से बिहार में हर साल बाढ़ भी खूब आती है। साल 2023 में हुई जलाशयों की गणना के आंकड़े देखें तो बिहार में तालाबों की संख्या 35207, झीलों की संख्या 2693, बड़े जलाशयों की संख्या 2126 और अन्य जलाशयों की संख्या 1414 थी। इस तरह बिहार में कुल जलाशयों की संख्या 45793 थी। जलाशयों की संख्या के हिसाब से टॉप 30 जिलों की एक लिस्ट भी बनाई गई थी। इस लिस्ट में एक भी जिला बिहार का नहीं था।
बिहार में पानी की स्थित का जिक्र हाल ही में बिहार सरकार के बजट के दौरान भी किया गया था। मार्च 2025 में ही बिहार के जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने राज्य में कम होते भूजल स्तर पर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि अगर प्रभावी तरीके नहीं अपनाए गए तो बिहार में साल 2050 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्ध 500-1000 क्यूबिक मीटर पहुंच जाएगी और राज्य के लोगों के लिए पानी की उपलब्धता कम हो जाएगी। उन्होंने IIT-पटना की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया, 'साल 2001 में बिहार में प्रति व्यक्ति के लिए सालाना पानी की उपलब्धता 1594 क्यूबिक मीटर थी, जो 2017 में घटकर 1213 क्यूबिक मीटर पहुंच गई। इसी रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 2025 तक यह उपलब्धता 1006 क्यूबिक मीटर और 2050 तक 635 क्यूबिक मीटर पहुंच जाएगी।'
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इसी की तुलना में 5 फरवरी 2024 का एक डेटा देखें तो साल 2021 तक भारत में राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1486 क्यूबिक मीटर थी। अनुमान के मुताबिक, 2031 तक यह घटकर 1367 क्यूबिक मीटर हो जाएगी। यानी राष्ट्रीय स्तर की तुलना में बिहार में पानी की उपलब्धता और कम हो सकती है। इन दोनों आंकड़ों की तुलना करें तब भी यह समझ आता है कि राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता कम है।
बिहार, बारिश, बाढ़ और जल संकट
आमतौर पर बिहार में बाढ़ खूब आती है लेकिन वह बाढ़ नेपाल से आने वाली नदियों की वजह से ज्यादा आती है। पिछले कुछ सालों के आंकड़े देखें तो बिहार में बारिश कम होती गई है। 2014 से सितंबर 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक, बारिश में काफी कमी आई है।
मौसम विभाग के मुताबिक, साल 2014 में जहां साल भर में 849 मिमी बारिश हुई, वहीं 2015 में 745 मिमी, 2016 में 975 मिमी, 2017 में 937 मिमी, 2018 में 771 मिमी, 2019 में 1393 मिमी, 2020 में 1272 मिमी, 2021 में 1044, 2022 में 683 मिमी, 2023 में 760 मिमी और और 2024 में 798 मिमी बारिश हुई। यानी बारिश में भी पिछले कुछ सालों में कमी ही आई है। पिछले 10 साल में 7 बार ऐसा हुआ है जब बारिश औसत से कम हुई है। बिहार में सामान्य बारिश का मतलब है 992.2 मिमी होती है।
कम बारिश के बावजूद पिछले कुछ सालों में बाढ़ ने बिहार को खूब परेशान किया है। इसकी बड़ी वजह यह रही कि बारिश के समय नेपाल की ओर से जमकर पानी छोड़ा गया। हर साल बिहार में बाढ़ के चलते लाखों लोग प्रभावित होते हैं। लोगों के घर, संपत्ति और जान-माल का नुकसान होता है। साथ ही, हजारों लोगों के खेतों में लगी फसलों का भी नुकसान होता है।
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बाढ़ और बारिश के बावजूद गर्मी के समय बिहार में जल संकट जैसी स्थिति पैदा हो जा रही है। इसी महीने आई केंद्रीय जल आयोग (CWC) की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के जलाशयों में सिर्फ 19 पर्सेंट पानी ही बचा है। यह चिंता सिर्फ बिहार की नहीं है, पूर्वी भारत में के जलाशयों में पिछले साल इस समय 51 पर्सेंट क्षमता तक पानी था लेकिन इस बार यह सिर्फ 46 पर्सेंट ही बचा है। पिछले साल बिहार में इस समय जलाशयों में 32 पर्सेंट पानी था जबकि इस बार सामान्य मात्रा यानी 27 पर्सेंट से भी कम पानी बचा है। यानी मौजूदा समय में बिहार के जलाशयों में सिर्फ 19 पर्सेंट पानी बचा है।
ये आंकड़े इस बात को स्पष्ट कर रहे हैं कि भले ही कन्हैया कुमार कह रहे हों कि बिहार के पास पानी है और दूसरों को इसकी जरूरत है, असलियत यह है कि बिहार भी पानी की समस्या से जूझ रहा है और समय के साथ यह समस्या और भी गंभीर ही होती जा रही है।
भारत में पानी की स्थिति
भारत में दुनिया की लगभग 18 पर्सेंट आबादी रहती है लेकिन भारत के पास दुनिया के जल संसाधनों का सिर्फ 4 पर्सेंट ही है। नतीजतन भारत पानी की समस्या से सबसे ज्यादा जूझने वाले देशों में शुमार है। कई अनुमानों के मुताबिक, समय और बढ़ती जनसंख्या के साथ भारत में पानी की मांग बढ़ती जाएगी। मौजूदा स्थिति के मुताबिक, अनुमान है कि आने वाले समय में पानी की कमी ही होगी। 20 मार्च 2025 को संसद में दिए गए एक जवाब में केंद्र सरकार ने खुद बताया है कि कुल 11 राज्यों के 101 जिले ऐसे हैं जहां भूजल का दोहन हो रहा है। यानी इन जिलों में जितना पानी हर साल जमीन में जाता है उससे ज्यादा पानी जमीन से निकाल लिया जाता है। नतीजा यह होता है कि हर साल भूजल स्तर गिरता जा रहा है।
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देश में पानी की स्थिति को लेकर जल शक्ति मंत्रालय की ओर से वार्षिक रिपोर्ट जारी की जाती है। साल 2023-24 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, उस वर्ष भारत को बारिश से कुल 3889 बिलियम क्यूबिक मीटर (BCM) पानी मिला। हालांकि, अलग-अलग कारणों के चलते इसमें से सिर्फ 1139 BCM पानी का ही इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें 690 BCM सतह पर मौजूद था यानी अलग-अलग तरह के जलाशयों में था और 449 BCM पानी ग्राउंड वाटर यानी भूजल के रूप में था। इसमें से भी सिर्फ 691 BCM पानी का इस्तेमाल किया जा सका। इस्तेमाल किए गए पानी में सतह पर उपलब्ध पानी की मात्रा 450 BCM और ग्राउंड वाटर की मात्रा 241 BCM थी। इसी रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि भारत को साल 2025 में कुल 843 BCM पानी की जरूरत होगी। वहीं, 2050 तक यह जरूरत बढ़कर 1180 BCM तक पहुंच जाएगी।
इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता लगातार घटती जा रही है। 2021 में एक आदमी के लिए पानी की उपलब्धता 1486 क्यूबिक मीटर थी जो 2031 तक 1367 क्यूबिक मीटर ही रह जाने का अनुमान है। बता दें कि एक व्यक्ति के लिए 1700 क्यूबिक मीटर पानी से कम की उपलब्धता को समस्या (वाटर स्ट्रेस) माना जाता है, वहीं अगर यही उपलब्धता 1000 क्यूबिक मीटर से भी कम हो जाए तो इसे जल संकट की स्थिति माना जाता है। भारत पहले ही वाटर स्ट्रेस वाले देश में शुमार है और ऐसी ही स्थिति रही तो 2050 तक वह जल संकट वाले देश की श्रेणी में आ सकता है।
भारत में भूजल की स्थिति
साल 2023 में भारत के सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड (CGWB) और राज्य सरकारों ने देश में भूजल की स्थिति का एक आकलन किया। इसके मुताबिक, भारत में सालाना ग्राउंड वाटर रीचार्ज 449.08 BCM है। यानी इतना पानी हर साल जमीन में जाता है। इसमें से 407.21 BCM पानी को जमीन से निकाला जा सकता है लेकिन सभी इस्तेमालों को मिलाकर कुल 241.34 BCM पानी निकाला जाता है। यानी कुल 59.26 पर्सेंट पानी ही निकाला जाता है।
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हाल ही में केंद्र सरकार ने संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया था कि भारत में वार्षिक ग्राउंड वाटर रीचार्ज साल 2017 में 432 BCM था लेकिन 2024 में यह बढ़कर 446.9 BCM हो गया। यह थोड़ी राहत वाही खबर जरूर है। हालांकि, इसी भूजल के दोहन का मामला चिंताजनक है। 20 मार्च 2025 को दिए इस जवाब में सरकार ने यह भी बताया है कि कुल 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के कुल 101 जिले ऐसे हैं जहां उपलब्ध ग्राउंड वाटर से ज्यादा का दोहन हो रहा है यानी इन जिलों में स्टेज ऑफ एक्सट्रैक्शन (SoE) 100 पर्सेंट से ज्यादा है। इसमें सबसे ज्यादा 29 जिले राजस्थान के हैं, इसी तरह पंजाब में 19 जिले और हरियाणा के 16 जिलों में SoE 100 पर्सेंट से ज्यादा है। बिहार के लिए राहत की बात है कि इस लिस्ट में एक भी जिला बिहार का नहीं है।
भारत में पानी का खर्च और रीचार्ज
20 मार्च 2025 को संसद में दिए गए एक जवाब में जलशक्ति मंत्रालय ने बताया था कि भारत में सबसे ज्यादा पानी का इस्तेमाल कृषि क्षेत्र में किया जाता है। कृषि क्षेत्र के लिए 72.4 प्रतिशत, उद्योगों के लिए 7.9 पर्सेंट और घरेलू उद्योग के लिए भारत के 7.4 पर्सेंट पानी का इस्तेमाल किया जाता है।
ज्यादा जनसंख्या होने की वजह से मेट्रो शहरों में भूजल का दोहन ज्यादा होता है तो कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में खेती से संबंधित इस्तेमाल के लिए भूजल का इस्तेमाल खूब किया जाता है। भारत के शहरों को देखें तो मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में जमकर बारिश होती है तो जयपुर जैसे शहर पूरी तरह से भूजल पर निर्भर हैं। वहीं, राजधानी दिल्ली में नदियों और नहरों से पानी की सप्लाई होती है। देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जो सिंचाई के लिए भूजल का इस्तेमाल जरूरत से ज्यादा करते हैं।
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रोचक बात यह है कि पिछले 4 दशकों में बारिश में थोड़ा इजाफा ही हुआ है लेकिन भारत में ग्राउंड वाटर का स्तर कम होता जा रहा है। इसकी बड़ी वजह यह है कि जितना पानी जमीन से निकाला जा रहा है उससे कम पानी ही रीचार्ज हो रहा है यानी उससे कम पानी ही जमीन में वापस जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की एक स्टडी के मुताबिक, भारत में भूजल का स्तर 2025 में सबसे कम हो जाएगा। जलाशय पहले से ही क्षमता के मुकाबले कम पानी स्टोर कर रहे हैं।
दुनिया में भूजल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल भारत ही करता है। आंकड़ों को देखें तो अमेरिका और चीन जैसे देश मिलकर जितने भूजल का इस्तेमाल नहीं करते उससे ज्यादा भारत में होता है। भारत में साल 2022 में किए गए भूजल आकलन के मुताबिक, कुल 7089 यूनिट का आकलन किया गया। इसमें से 14 पर्सेंट यूनिट ऐसी थी जहां भूजल का दोहन जरूरत से ज्यादा किया जा रहा था। नीति आयोग की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि साल 2030 तक भारत में पानी की मांग दोगुनी हो जाएगी। इसके चलते देश की GDP को 6 पर्सेंट का नुकसान भी होगा।
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