भारत ने रक्षा क्षेत्र में कई योजनाएं बनाई गई हैं, जिनमें से एक 'कावेरी इंजन प्रोजेक्ट' भी शामिल है। यह प्रोजेक्ट भारत के स्वदेशी लड़ाकू विमान जैसे तेजस के लिए एक जेट इंजन विकसित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। हालही में ऑपरेशन सिंदूर के बाद सोशल मीडिया पर 'फंड कावेरी इंजन' कैंपेन ने सभी का ध्यान खींचा। इस योजना का मुख्य लक्ष्य भारत को विदेशी इंजन पर निर्भर न रहना पड़े और वह खुद अपना फाइटर जेट इंजन बना सके।
कावेरी इंजन चर्चा तब सामने आई जब भारत ने फ्रांस से सफ़ेल के सोर्स कोड की मांग और फ्रांस ने इसे देने से मना कर दिया। बता दें कि सोर्स कोड किसी भी सॉफ्टवेयर या सिस्टम का प्रोग्रामिंग कोड होता है, जिसे पढ़ा जा सकता है। इससे ये पता चलता है कि किसी सिस्टम को क्या-क्या करने के लिए प्रोग्राम किया गया है।
कावेरी इंजन प्रोजेक्ट की शुरुआत
कावेरी इंजन प्रोजेक्ट की शुरुआत 1986 में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन-DRDO के अंतर्गत गैस टर्बाइन रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट (GTRE) द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य था एक ऐसा टर्बोफैन इंजन तैयार करना जो हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस में इस्तेमाल किया जा सके।
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इस प्रोजेक्ट के लिए भारत सरकार ने शुरुआती चरण में करीब 300 करोड़ रुपये जारी किए थे और इस प्रोजेक्ट को 1996 तक पूरा किया जाना था लेकिन यह समय सीमा आगे बढ़ती चली गई।
कावेरी इंजन की तकनीकी खासियत:
कावेरी इंजन एक टर्बोफैन प्रकार का इंजन है। इसका थ्रस्ट बिना आफ्टरबर्नर के लगभग 52 kN और आफ्टरबर्नर के साथ लगभग 81 kN तक पहुंचाने का लक्ष्य था। साथ ही इसका डिजाइन इस तरह से किया गया था कि यह हल्के और मध्यम श्रेणी के लड़ाकू विमानों को उड़ाने में सक्षम हो।
अब तक क्या-क्या हुआ है?
इस प्रोजेक्ट में कई तकनीकी परेशानियां आईं हैं। इंजन के कम्पोनेंट्स, थर्मल मैनेजमेंट, कंपोजिट मटेरियल्स और वाइब्रेशन जैसी समस्याओं की वजह से प्रोजेक्ट की गति धीमी पड़ गई। इसके साथ फ्रांस की कंपनी 'सैफ्रान' (Safran) से तकनीकी सहायता लेने की कोशिश की गई ताकि इंजन में आई कमियों को दूर किया जा सके।
कावेरी इंजन के कुछ वर्जन ने ग्राउंड टेस्ट पास किए। इसके अलावा इसे कुछ समय के लिए IL-76 एयरक्राफ्ट में फ्लाइट टेस्टिंग के लिए भी इस्तेमाल किया गया। हालांकि यह तेजस विमान में इस्तेमाल के लिए पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया।
इसके बाद DRDO ने 2010 के दशक में माना कि कावेरी इंजन मौजूदा तेजस के लिए सही नहीं है। इसलिए इसे तेजस में इस्तेमाल करने की योजना से हटा दिया गया और तेजस में GE कंपनी का अमेरिकी इंजन लगाया गया। इसके बाद कावेरी इंजन को ड्रोन, UAV या UCAV जैसे हल्के प्लेटफॉर्म्स के लिए इस्तेमाल में लाने की योजना बनी।
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फिलहाल GTRE और फ्रांसीसी कंपनी Safran के बीच मिलकर कावेरी इंजन के सुधार पर काम चल रहा है। साथ ही इसको भविष्य के अनमैन्ड कॉम्बैट एयर व्हीकल (UCAV) जैसे कार्यक्रम, जैसे DRDO का 'Ghatak' प्रोजेक्ट, में लगाने पर विचार हो रहा है। कावेरी इंजन को अब 'Kaveri Dry Engine' के रूप में विकसित किया जा रहा है, जो आफ्टरबर्नर के बिना काम करता है। इसका उपयोग मुख्यतः बिना पायलट वाले विमानों में किया जा सकता है।
कावेरी इंजन भले ही अभी तक पूरी तरह से तेजस में उपयोग लायक नहीं बन पाया हो, लेकिन इसने भारत को इंजन डिजाइन और निर्माण की महत्वपूर्ण जानकारी व अनुभव दिया है। यह प्रोजेक्ट भारत के रक्षा अनुसंधान के लिए एक सीखने की प्रक्रिया रहा है। अब ध्यान इस पर है कि इस इंजन को हल्के विमानों या ड्रोन में उपयोग के लायक बनाया जाए। इसके अलावा भविष्य में भारत अपने अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के लिए स्वदेशी इंजन विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है।