हाल ही में लखनऊ में किए गए 'एंटी-बेगर इनिशिएटिव' में भिखारियों की कमाई और सामाजिक नेटवर्क के बारे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस पहल से पता चला है कि इन भिखारियों के पास आधार कार्ड से लेकर बैंक अकाउंट तक सभी आवश्यक दस्तावेज हैं। कुछ के पास पैन कार्ड तक भी हैं। लखनऊ के पांच प्रमुख जगहों पर इस इनिशिएटिव को चलाया गया।
चौंकाने वाले तथ्य आए सामने
पॉलिटेक्निक, आईजीपी, हजरतगंज, चारबाग और अवध क्रॉसिंग जैसे इलाकों पर 5,000 से अधिक भिखारियों का वेरिफिकेशन किया गया। इसमें एक बात जो उभर कर आई वह यह है कि अब भीख मांगना कोई सामाजिक कलंक नहीं बल्कि एक पेशा बन चुका है। दरअसल, इस इनिशिएटिव के ज़रिए डूडा, एलएमसी और समाज कल्याण विभाग की सात टीमें भिखारियों की गतिविधियों पर नजर रख रही थीं। बहुत समझाने के बावजूद अधिकांश भिखारियों ने कहना था कि वे भीख मांगना नहीं छोड़ सकते क्योंकि उन्होंने इसे अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है। इसके अलावा उनके पास स्मार्टफोन भी है जो उन्हें आपस में कनेक्ट करने में मदद करता है।
सरकार कितनी दे रही मदद?
टीम ने यह भी आकलन किया कि क्या उन्हें पेंशन और वृद्धावस्था सहायता सहित सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है या नहीं? या कि वे किन सरकारी सेवाओं से वंचित हैं? पिछले कुछ दिनों में टीम ने 130 भिखारियों से डेटा एकत्र किया है। सर्वे में पता चला कि कई बुजुर्ग और विधवाओं को पेंशन मिलती है। अधिकारियों के अनुसार, भिखारी प्रतिदिन लगभग 200-300 रुपये तक कमा लेते हैं, जिसमें सबसे अधिक कमाई गर्भवती महिलाओं और बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं की होती है।
सड़कों पर रहना पसंद करते हैं भिखारी
बता दें कि यह इनिशिएटिव लखनऊ के डिविजनल कमिश्नर रोशन जैकब द्वारा शुरू किया गया है। इस सर्वे का उद्देश्य भिखारियों की पहचान करना और उनका पुनर्वास करना है। साथ ही उनके जीवन की स्थितियों के बारे में महत्वपूर्ण डेटा एकत्र करना है। सर्वे से पता चला है कि भिखारियों की एक बड़ी संख्या बाराबंकी, सीतापुर, हरदोई, रायबरेली, उन्नाव और बहराइच सहित आसपास के जिलों से आती है। हैरानी की बात यह है कि इनमें से कई व्यक्तियों के पास गांवों में अपने घर हैं, लेकिन वह फिर भी सड़कों पर रहना पसंद करते हैं क्योंकि यह उनके लिए जीवन का एक तरीका बन गया है।
महिला भिखारियों के आठ से 9 बच्चे
सर्वे में कई भिखारियों की पहचान ड्रग एडिक्ट के रूप में की गई जो एक चिंताजनक बात है। ऐसे भिखारी अपने ड्रग सप्लायरों के बारे में जानकारी देने से कतराते हैं। रिपोर्ट्स ने संकेत दिया कि कुछ समूह महिलाओं को कई बच्चे पैदा करने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। उनका मानना है कि गर्भवती महिलाएं ज्यादा भीख इकट्टा कर सकती हैं। कई महिला भिखारियों के आठ से 9 बच्चे हैं।
सरकारी पेंशन का प्रस्ताव लेने पर कैसी प्रतिक्रिया?
जिला शहरी विकास एजेंसी (डूडा) के परियोजना अधिकारी सौरभ त्रिपाठी ने इस सर्वेक्षण के महत्व पर जोर देते हुए कहा, 'हमारा उद्देश्य भिखारियों की पहचान, उनकी उत्पत्ति और यह जानना है कि क्या कोई समूह उन्हें भीख मांगने के लिए मजबूर कर रहा है। हम यह आकलन करना चाहते हैं कि अगर उन्हें काम के अवसर दिए जाएं तो क्या वे भीख मांगना छोड़ देंगे।' त्रिपाठी ने बताया कि कई भिखारियों को सरकारी पेंशन का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया।
भिखारियों के अनुसार, उन्हें सरकारी पेंशन से अधिक पैसे भीख में मिल जाते है। ऐसे लोगों के लिए भीख मांगना अब सामाजिक कलंक नहीं रह गया है। इसे अब पेशा माना जाने लगा है। डूडा, नगर निगम और समाज कल्याण विभाग का यह संयुक्त सर्वेक्षण 15 दिनों में पूरा किया गया।