अस्पताल ज्यादा या शराब के ठेके? आंकड़े जानकर हो जाएंगे हैरान
देश
• NEW DELHI 05 Jun 2025, (अपडेटेड 06 Jun 2025, 6:08 AM IST)
एक मामले पर मद्रास हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि एक तरफ सरकार अस्पताल बनवाती है और दूसरी तरफ शराब के ठेके भी खुलवाती है। ऐसे में जानते हैं कि देश में शराब के ठेकों की तुलना में अस्पताल कितने हैं?

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)
मद्रास हाई कोर्ट ने शराब के ठेकों को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने कहा कि एक तरफ अस्पताल बनवाना और दूसरी तरफ शराब के ठेके खोलना अपने आप में विरोधाभासी है। इसके साथ ही कोर्ट ने तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले में त्रिची रोड पर बनी शराब की एक दुकान को बंद करने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि स्कूल की रोड पर शराब की दुकान का होना बच्चों और आम लोगों की सुरक्षा के लिए खतरा है।
इस दुकान पर सारा बवाल इसलिए था, क्योंकि यह जिस रोड पर बनी थी, उसी पर स्कूल भी बना था। यह दुकान तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन (TASMAC) की है। TASMAC तमिलनाडु की सरकारी कंपनी है, जो शराब का कारोबार संभालती है। पूरे तमिलनाडु में इसकी 5 हजार से ज्यादा दुकानें हैं।
- क्या था पूरा मामला?: TASMAC की यह दुकान त्रिची रोड पर है। यहां से हर दिन स्कूली बच्चे गुजरते थे। इस दुकान को बंद करवाने की मांग को लेकर के. कन्नून नाम के शख्स ने हाई कोर्ट का रुख किया था।
- हाई कोर्ट ने क्या कहा?: जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस एडी मारिया की बेंच ने इस दुकान को बंद करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा कि इस दुकान को दो हफ्ते के भीतर बंद करना होगा।
- सरकार से कोर्ट ने क्या कहा?: कोर्ट ने अनुच्छेद 47 का हवाला देते हुए कहा कि यह स्टेट की जिम्मेदारी है कि वह पब्लिक हेल्थ को दुरुस्त रखे। कोर्ट ने कहा, 'एक तरफ ज्यादा अस्पताल खोलना और दूसरी तरफ शराब की दुकानें खोलना एक वेलफेयर स्टेट के लिए विरोधाभासी है।'
- TASMAC ने क्या कहा था?: मैनेजर ने दलील दी थी कि दुकान नगर निगम के क्षेत्र में आती है, इसलिए यहां 50 मीटर की दूरी वाला नियम लागू नहीं होता। हालांकि, कोर्ट ने उसकी इस दलील को खारिज कर दिया।
यह भी पढ़ें-- सरकारों के लिए 'खराब' नहीं है शराब! जानें इससे कितना कमाती हैं सरकारें
क्या है शराब की दुकान का नियम?
शराब की दुकानों को खोलने के नियम को लेकर काफी कन्फ्यूजन बना रहता है। 2016 के बाद से अब तक हाईवे, धार्मिक स्थलों और स्कूल-कॉलेजों के पास शराब की दुकान खोलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले आ चुके हैं।
2016 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था, जिसमें कहा था कि हाईवे के पास 500 मीटर की दायरे में शराब की दुकान नहीं होगी। कोर्ट ने यह फैसला इसलिए दिया था ताकि हाईवे पर होने वाले सड़क हादसों को रोका जा सके। क्योंकि हाईवे के पास दुकान होने से लोग शराब पीकर गाड़ी चलाते थे, जिस कारण हादसे होते थे।
मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने एक और फैसला दिया था। इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि शराब की दुकान शैक्षणिक संस्थानों और धार्मिक स्थलों से 150 मीटर की दूरी पर खोली जा सकती हैं।
पिछले साल ही फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने एक और फैसला दिया था। इसमें कोर्ट ने कहा कि धार्मिक स्थलों और शैक्षणिक संस्थानों के 500 मीटर के दायरे में शराब की दुकानें नहीं होगी। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर दुकान नगर निगम में आती है तो स्थानीय प्रशासन दूरी तय कर सकता है। पुडुचेरी ने 50 मीटर की दूरी तय की थी, जिसे कोर्ट ने सही ठहराया था। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी इलाके में आबादी 20 हजार से कम है तो वहां हाईवे पर 500 की बजाय 220 मीटर के बाहर शराब की दुकान खुल सकती है।
यह भी पढ़ें-- कैसे इलेक्ट्रिक बनेगा इंडिया? समझें क्या है भारत में EV का फ्यूचर
शराब की दुकानें कितनी हैं?
शराब का सारा काम राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है। इसलिए केंद्रीय स्तर पर शराब की दुकानों को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है।
हालांकि, इकोनॉमिक टाइम्स ने अप्रैल 2025 में इंटरनेशनल स्पिरिट्स एंड वाइन्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ISWAI) की रिपोर्ट के हवाले से बताया था कि देशभर में करीब 63 हजार शराब की दुकानें हैं। इस हिसाब से हर एक लाख ग्राहकों पर शराब की 5 दुकानें हैं। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और दिल्ली-एनसीआर में हर एक लाख ग्राहकों पर 5 दुकानें हैं।
भारत जैसे 1.40 अरब की आबादी वाले देश में अभी भी शराब की दुकानें काफी कम हैं। यह तब है जब भारत में शराब की खपत और पीने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) आंकड़ों के मुताबिक, करीब 20 फीसदी भारतीय शराब पीते हैं। यानी, 100 में से 20 भारतीय शराब पीते हैं। इनमें 19 फीसदी पुरुष और 1 फीसदी के आसपास महिलाएं हैं। शराब पीने वाले पुरुषों की संख्या शहरों की तुलना में गांवों में ज्यादा है। शहरों में रहने वाले करीब 17 फीसदी और गांवों में रहने वाले 20 फीसदी पुरुष शराब पीते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, भारत में शराब की खपत तेजी से बढ़ रही है। 2009 में एक आम भारतीय सालाना औसतन 3.8 लीटर शराब पीता था। जबकि, 2019 में बढ़कर 5.61 लीटर हो गई है। यह आंकड़ा लगभग 6 साल पुराना है और जाहिर है कि शराब की खपत और बढ़ी होगी।
इसके बावजूद भारत में शराब की दुकानें काफी कम हैं। आबादी के मामले में चीन और भारत में ज्यादा अंतर नहीं है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि चीन में शराब की 60 लाख दुकानें हैं और इसकी तुलना में भारत में सिर्फ 63 हजार के आसपास दुकानें हैं। इस हिसाब से चीन के मुकाबले भारत में सिर्फ 1% दुकानें ही हैं।
यह भी पढ़ें-- कपड़े, टीवी, किचन; आपकी जिंदगी में कितना घुस गया है चीन?
अब बात हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर की...
हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में भारत अभी दुनिया के कई देशों से पीछे है। अभी भी सरकार स्वास्थ्य पर GDP का सिर्फ 1.9% ही खर्च करती है। जबकि, नेशनल हेल्थ पॉलिसी ने 2025 तक GDP का कम से कम 2.5% स्वास्थ्य पर खर्च करने का सुझाव दिया था। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, चीन अपनी GDP का 5% और अमेरिका 16% से ज्यादा स्वास्थ्य पर खर्च करता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि हर 1000 लोगों पर कम से कम 1 डॉक्टर होने चाहिए। क्या भारत में ऐसा है? पिछले साल 29 नवंबर को केंद्र सरकार ने इसका आंकड़ा दिया था। सरकार ने बताया था कि नवंबर 2024 तक देशभर की मेडिकल काउंसिल में 13,86,415 एलोपैथिक डॉक्टर्स रजिस्टर्ड हैं। अगर 140 करोड़ की आबादी को मानकर हिसाब लगाया जाए तो 1,262 लोगों पर 1 डॉक्टर है। हालांकि, सरकार ने बताया था कि एलोपैथिक के अलावा 6.14 लाख आयुष डॉक्टर्स भी हैं और इन्हें भी जोड़ लिया जाए तो 811 लोगों पर 1 डॉक्टर है।
केंद्र सरकार ने बताया था कि 2014 तक मेडिकल कॉलेज की संख्या 387 थी, जो अब 102% बढ़कर 780 हो गई है। कॉलेजों में MBBS की सीट भी 2014 में 51,348 थी, जो 130% बढ़कर 1,18,137 हो चुकी है। इसी तरह PG में भी 2014 में 31,185 सीटें थीं, जो अब 135% बढ़कर 73,157 कर दी गई है।
अगर अस्पतालों की संख्या पर नजर डालें तो इसके आंकड़े नेशनल हेल्थ प्रोफाइल (NHP) पर मिलते हैं। हालांकि, यह आंकड़े मार्च 2021 तक के ही मौजूद हैं। 2022 की NHP की रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में 60,621 सरकारी अस्पताल हैं। इन अस्पतालों में 8,49,206 बेड हैं।
हालांकि, यह काफी नहीं है। दिसंबर 2024 में भारत के हेल्थकेयर पर FICCI की रिपोर्ट आई थी। इसमें कहा गया था कि 2047 तक अगर विकसित देशों की बराबरी करनी है तो भारत को 50 लाख डॉक्टर और 30 लाख बेड बढ़ाने होंगे।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap