260 मौतें, कैंप में 58000 लोग; मणिपुर हिंसा के 2 साल में क्या कुछ हुआ?
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• IMPHAL EAST 02 May 2025, (अपडेटेड 03 May 2025, 6:14 AM IST)
आज 3 मई है। आज से ठीक 2 साल पहले 2023 की 3 मई को मणिपुर में हिंसा भड़की थी। एक रैली से भड़की यह हिंसा कुछ ही पलों में पूरे मणिपुर में फैल गई थी। ऐसे में जानते हैं कि यह हिंसा कैसे और क्यों भड़की? इन दो सालों में क्या कुछ हुआ? और अभी हालात कैसे हैं?

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)
सर्द हवा वाला मणिपुर दो साल से जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। इन दो सालों में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। हजारों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है। लूटपाट मच रही है। कई महिलाओं के साथ दरिंदगी की घटनाएं सामने आई हैं। मणिपुर दो साल से जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। कुकी और मैतेई समुदाय की लड़ाई में मणिपुर और वहां के मासूम लोग पिस रहे हैं। इन दो साल में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। हजारों को अपना घर छोड़कर राहत कैम्पों में रहने को मजबूर होना पड़ा है। लूटपाट मच रही है। हिंसा की आड़ में कुछ उपद्रवियों ने महिलाओं को भी अपनी दरिंदगी का शिकार बनाया। याद होगा दो साल पहले एक वीडियो सामने आया था, जिसमें दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर सड़क पर घुमाया जा रहा था। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना पर कहा था, 'मणिपुर की बेटियों के साथ जो कुछ हुआ, उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता।'
मणिपुर में आज से ठीक दो साल पहले 3 मई को हिंसा की जो आग भड़की थी, वह अब तक जल रही है। उस दिन चुराचांदपुर में एक रैली निकाली गई थी। यह रैली नगा-कुकी समुदाय के लोगों ने निकाली थी। इसका मकसद मैतेई समुदाय की ओर से की जा रही आरक्षण की मांग का विरोध करना था। चुराचांदपुर की इसी रैली से भड़की हिंसा पूरे मणिपुर में फैल गई। इन दो सालों में मणिपुर में काफी कुछ बदल गया है। मुख्यमंत्री रहे एन. बीरेन सिंह ने हिंसा भड़कने के 21 महीने बाद इस्तीफा दे दिया। अब वहां राष्ट्रपति शासन लागू है। हालांकि, हालात अब भी पहले जैसे नहीं हुए हैं।
मणिपुर में हिंसा क्यों भड़की? क्या सिर्फ 3 मई की वह रैली ही इस हिंसा की जिम्मेदार है? या फिर इसकी मणिपुर पहले से ही सुलगना शुरू हो गया था और 3 मई को वह आग बन गई?
मणिपुर में हिंसा के 3 ट्रिगर पॉइंट
- आदिवासियों की बेदखलीः फरवरी 2023 में मणिपुर सरकार ने पहाड़ी इलाकों से कथित अतिक्रमण हटाना शुरू किया। यहां कुकी बसे थे। इसने न सिर्फ कुकी, बल्कि नगा जैसे बाकी और जनजाति समुदायों में गुस्सा भर दिया। कुकी स्टूडेंट ऑर्गनाइजेश के महासचिव डीजे हाओकीप ने उस समय दावा किया था कि कई इलाकों को रिजर्व फॉरेस्ट घोषित कर बरसों से बसे कुकी आदिवासियों की बस्ती को हटाया जा रहा है। और तो और 11 अप्रैल 2023 को इम्फाल की एक आदिवासी कॉलोनी बनी तीन चर्चों को भी अवैध निर्माण बताकर हटा दिया गया था।
- हाईकोर्ट का वह आदेशः 27 मार्च 2023 को मणिपुर हाईकोर्ट का एक आदेश आया। यह आदेश सरकार के लिए था। हाईकोर्ट ने सरकार से कहा कि वह मैतेई समुदाय की ओर से जो अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग की जा रही है, उस पर 4 हफ्ते के अंदर कुछ विचार करे। यह आदेश मैतेई समुदाय की ओर से दाखिल याचिका पर दिया गया था। हाईकोर्ट के इस आदेश ने नगा-कुकी समुदाय को और नाराज कर दिया। मणिपुर में कई महीनों की हिंसा के बाद 21 फरवरी 2024 को हाईकोर्ट ने इस आदेश के उस पैरा को रद्द कर दिया, जिसमें सरकार को विचार करने को कहा गया था.
- 3 मई की रैलीः बेदखली और फिर मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश से आदिवासी समुदाय में नाराजगी बढ़ गई। इसके लिए 3 मई को चुराचांदपुर में एक रैली निकाली गई। यह रैली ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने निकाली थी। 'आदिवासी एकता मार्च' के नाम से निकाली गई इस रैली में नगा और कुकी समुदाय से जुड़े लोग शामिल हुए थे। इसी रैली में आदिवासी और गैर-आदिवासी भिड़ गए। पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे लेकिन हालात नहीं सुधरे। देखते-देखते हिंसा पूरे मणिपुर में फैल गई। हालात काबू करने के लिए सेना और पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों को भी उतारा गया।
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आरक्षण क्यों मांग रहे मैतेई?
मणिपुर पहाड़ी राज्य है। यह 22,327 वर्ग किलोमीटर में फैला है। इसका 2,238 वर्ग किमी यानी 10.02% इलाका ही घाटी है। बाकी का 20,089 वर्ग किमी यानी 89% से ज्यादा पहाड़ी इलाका है।
मणिपुर में 33 समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है। इन्हें नगा और कुकी कहा जाता है। मैतेई यहां का सबसे बड़ा लेकिन गैर-जनजाति समुदाय है। मैतेई हिंदू हैं और इनकी आबादी 53 फीसदी के आसपसा है। ज्यादातर नगा और कुकी ईसाई हैं और इनकी आबादी 40 फीसदी है। मणिपुर के कानून में जनजाति समुदाय यानी आदिवासियों के लिए खास प्रावधान है। इसके तहत, पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं। मैतेई जैसे गैर-जनजाति समुदायों को पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है।
मैतेई समुदाय का दावा है कि 1949 में जब मणिपुर भारत का हिस्सा बना, तब उन्हें जनजाति का दर्जा मिला था। बाद में उसे इससे बाहर कर दिया गया। मैतेई समुदाय का तर्क है कि इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद वह सिर्फ 10 फीसदी इलाके में ही बस सकते हैं, जबकि 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी इलाके पर है। वहीं, कुकी समुदाय का मानना है कि अगर मैतेई को जनजाति का दर्जा मिला तो वे उनकी जमीनें हथिया लेंगे।
इन 2 सालों में क्या कुछ हुआ?
- मौतेंः 4 अप्रैल को गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बताया था कि मणिपुर हिंसा में अब तक 260 लोगों की मौत हुई है। इनमें से 70 फीसदी मौतें हिंसा के शुरुआती 15 दिनों में हुई थीं।
- विस्थापनः एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, 11 अप्रैल तक मणिपुर के 281 रिलीफ कैम्प्स में 58,261 लोग रह रहे हैं। 30 हजार से ज्यादा लोग सिर्फ कांगपोकपी और चुराचांदपुर के रिलीफ कैम्प्स में हैं।
- आग लगाने वालों का क्या?: हिंसा की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 42 SIT बनाई है। इन SIT ने 3,023 केस दर्ज किए हैं, जिनमें हत्या के 126, महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के 9 और हथियारों की लूट के 2,888 केस हैं। दिसंबर 2024 तक 574 आरोपियों पर आरोप तय हुए हैं। 3,023 मामलों में से सिर्फ 192 में चार्जशीट फाइल हुई है।
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मासूम लोग कैम्प में रह रहे
हिंसा के दो साल बाद भी मणिपुर में हालात बहुत खराब हैं। हजारों परिवार रिलीफ कैम्प्स में रह रहे हैं लेकिन यहां भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। एक कम्युनिटी वर्कर ने एमनेस्टी इंटरनेशनल को बताया, 'इन कैम्प्स में साफ-सफाई बहुत बड़ी समस्या है। 100 से ज्यादा परिवारों के लिए 2 से 3 टॉयलेट ही बनी हैं। कमरे बहुत छोटे और दमघोंटू हैं। खाना भी अच्छी क्वालिटी का नहीं मिलता।'
राजधानी इम्फाल के एक्टिविस्ट बबलू लोइटोंगबाम ने एमनेस्टी को बताया, 'ऐसा नहीं है कि लोग अपने घर नहीं लौटना चाहते, वे चाहते हैं मगर डर और असुरक्षा के कारण नहीं जा पा रहे हैं। इस कारण लोगों में गुस्सा और बढ़ता जा रहा है। मुझे डर है कि कहीं इससे और खतरनाक स्थिति पैदा न हो जाए।'
एक और एक्टिविस्ट ने बताया, 'अगर लोग अपने घर लौटते हैं तो वे उस घर में शांति से कैसे सो सकते हैं, जिनकी छत और दीवारें गोलियों के निशानों से भरी हुई हैं? उन्हें सुरक्षा चाहिए। सरकार की मदद के बिना वे घर भी दोबारा नहीं बना सकते।'
ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) की 27 मार्च 2025 की रिपोर्ट की मानें तो ज्यादातर कुकी और खुद मैतेई समुदाय के लोगों ने दावा किया है कि जिन कैम्प्स में मैतेई लोग रह रहे हैं, उन्हें सरकारी मदद मिल रही है। कुकी समुदाय के लोगों के कैम्प्स की तुलना में मैतेई के कैम्प्स की हालत भी अच्छी है।

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उन महिलाओं का क्या?
याद होगा कि जुलाई 2023 में एक वीडियो सामने आया था, जिसमें दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड निकाली जा रही थी। यह घटना हिंसा भड़कने के अगले दिन यानी 4 मई 2023 को हुई थी। मगर इसका वीडियो जुलाई में वायरल हुआ, जिसने वहां की भयावहता को सबके सामने लाकर रख दिया।
4 मई की यह घटना थोबल जिले की थी। FIR के मुताबिक, उस दिन मैतेई समुदाय से जुड़े करीब हजार लोगों ने थोबल जिले के एक गांव पर हमला बोला। उपद्रवियों ने घरों में आग लगा दी और वहां से सामान-गहने और पैसे भी लूट लिए।
हमला होने पर 3 महिलाएं अपने पिता और भाई के साथ भाग निकलीं। पुलिस ने उन्हें बचा लिया लेकिन आगे भीड़ ने गाड़ी रोकी और उन सबको नीचे उतार लिया। भीड़ ने उन महिलाओं के पिता की हत्या कर दी। तीनों महिलाओं को कपड़े उतारने को मजबूर किया गया और निर्वस्त्र कर सड़क पर घुमाया। भीड़ के कुछ लोगों ने 21 साल की एक महिला के साथ दुष्कर्म भी किया और जब उसके भाई ने बचाने की कोशिश की तो उसको भी मार डाला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना को देश की 'बेइज्जती' बताया था। 28 जुलाई 2023 को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर सरकार ने बताया था कि इस केस की जांच CBI को सौंप दी गई है। CBI ने अक्टूबर 2023 में 7 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी।
इस घटना को दो साल बीत गए हैं और इसके जख्म अब भी ताजा हैं। एक महिला के पति ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा, 'हम अब खुलकर लोगों के सामने नहीं आते। मेरी पत्नी और दूसरी लड़की को निर्वस्त्र कर घुमाया गया। उनके साथ बलात्कार किया गया। भीड़ ने वीडियो रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। हम सबकुछ भूलना चाहते हैं लेकिन यह एक ऐसा ट्रॉमा है जो जल्दी ठीक नहीं होगा।'
मणिपुर में अभी कैसे हैं हालात?
गृह मंत्री अमित शाह ने 3 अप्रैल 2025 को संसद में दावा किया था कि दिसंबर से मार्च के बीच 4 महीनों से मणिपुर में कोई हिंसा नहीं हुई है। उन्होंने कहा था कि 2017 से बीजेपी मणिपुर की सत्ता में है लेकिन 6 साल में कोई हिंसा नहीं हुई। हाईकोर्ट के आदेश के बाद हिंसा भड़क उठी थी।
31 दिसंबर को मणिपुर के सीएम एन. बीरेन सिंह ने इस हिंसा पर पहली बार माफी मांगी थी। उन्होंने कहा था, 'पिछली 3 मई से जो कुछ हो रहा है, उसके लिए मैं माफी मांगना चाहता हूं। कई लोगों ने अपने करीबियों को खो दिया। कइयों को घर छोड़ना पड़ा। मुझे खेद है। मैं इसके लिए मैं माफी मांगता हूं।'
बीरेन सिंह भी मैतेई समुदाय से आते हैं। उन पर हिंसा भड़काने का आरोप भी है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में कुकी ऑर्गनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स ट्रस्ट ने एक याचिका भी दायर की है। ट्रस्ट ने कुछ ऑडियो क्लिप्स भी जमा किए हैं, जिनमें कथित रूप से बीरेन सिंह की आवाज सुनाई दे रही है, जिसमें वे हिंसा भड़काने का जिक्र कर रहे थे। हालांकि, बीरेन सिंह ने इसी साल 9 फरवरी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। हिंसा भड़कने के 21 महीने बाद उनका इस्तीफा आया था। अब यहां राष्ट्रपति शासन लागू है।
दावा तो है कि कई महीनों से मणिपुर शांत है लेकिन हिंसा की दूसरी बरसी पर एहतियात के तौर पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। कुकी और मैतेई, दोनों समुदायों ने ही बंद का ऐलान किया है। दूसरी बरसी पर दोनों समुदायों की ओर से कुछ कार्यक्रम भी किए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि 8 हजार से ज्यादा जवानों को तैनात किया गया है।
इंफाल, चुराचांदपुर और कांगपोकपी में हर आने-जाने वाली गाड़ियों की चेकिंग चल रही है। मैतेई संगठन कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटेग्रिटी (COCOMI) ने लोगों से शनिवार को सारा काम-धंधा बंद रखने की अपील की है। कुकी स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (KSO) और जोमी स्टूडेंट्स फेडरेशन (ZSF) ने भी 3 मई को कुकी-प्रभुत्व वाले सभी क्षेत्रों में बंद का ऐलान किया है।
इन सबके बीच यह जानना भी जरूरी हो जाता है कि मणिपुर हिंसा की जांच के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जो न्यायिक आयोग बनाया था, उसे 20 मई तक रिपोर्ट सौपनी है। पहले इस आयोग को नवंबर 2023 तक अपनी रिपोर्ट देनी थी, जिसे बढ़ाकर 20 नवंबर 2024 तक कर दिया था। पिछले साल सरकार ने इसकी डेडलाइन को फिर बढ़ाकर 20 मई 2025 तक कर दिया है।
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