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क्या वाकई कम हो रहा बजट? गरीबों के रोजगार की गारंटी 'मनरेगा' की कहानी

यूपीए सरकार में आई मनरेगा को लेकर संसद में कई दिनों से बवाल चल रहा है। ऐसे में जानते हैं कि मनरेगा आखिर है क्या? और क्यों हमारे देश में मनरेगा जरूरी है?

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प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

भारत की एक बहुत बड़ी आबादी गांवों में रहती है। गांवों में रोजगार के मौके उस तरह से नहीं मिल पाते, जैसे शहरों में होते हैं। ऐसे में ग्रामीण इलाकों में रहने वालों को रोजगार और मिनिमम इनकम की एक गारंटी मिल सके, इसके लिए 2005 में यूपीए सरकार ने महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट (MGNREGA) लागू किया था। इसे मनरेगा भी कहा जाता है।


यही मनरेगा कुछ दिनों से फिर चर्चा में आ गई है। कुछ दिन पहले कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी ने मनरेगा के तहत रोजगार के दिन और न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने की मांग की थी। साथ ही उन्होंने मनरेगा के बजट में कटौती करने पर सरकार की आलोचना भी की थी।


संसद के बजट सत्र के दौरान सोनिया गांधी ने कहा था कि मनरेगा के तहत काम के दिनों को बढ़ाकर 150 दिन किया जाए। इसके साथ ही न्यूनतम मजदूरी को भी बढ़ाकर 400 रुपये करने की मांग की थी। 


मनरेगा को लेकर मंगलवार को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत कई विपक्षी सांसदों ने संसद भवन में प्रदर्शन भी किया था। इसके बाद लोकसभा में इसे लेकर जबरदस्त हंगामा हुआ था।

 

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मनरेगा पर क्यों हो रहा है बवाल?

मंगलवार को लोकसभा में विपक्ष ने मनरेगा की फंडिंग को लेकर सरकार पर पक्षपाती रवैया अपनाने का आरोप लगाया। टीएमसी सांसद बापी हल्दर ने सरकार पर मनरेगा फंड में देरी करने का आरोप लगाया था। इसके जवाब में कृषि राज्य मंत्री पेम्मासामी चंद्रशेखर ने पश्चिम बंगाल सरकार पर मरनेगा फंड का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया।


वहीं, संसद भवन में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत कई विपक्षी सांसदों ने इसे लेकर विरोध प्रदर्शन किया। प्रियंका गांधी ने सरकार पर मनरेगा मजदूरों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया।


प्रियंका गांधी ने आरोप लगाया, 'सरकार कुछ नहीं कर रही है। उन्होंने लाखों परिवारों को बिना आजीविका के छोड़ दिया है, जिससे गरीबी और पीड़ा बढ़ गई है।' उन्होंने कहा कि जल्द से जल्द मजदूरों को उनका मानदेय मिलना चाहिए। इसके साथ ही प्रियंका ने भी काम के दिनों को बढ़ाकर 150 दिन करने की मांग की।

 


वहीं, कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा, 'मनरेगा के प्रावधानों के अनुसार, अगर मजूदरी में 15 दिन से ज्यादा की देरी हुई है तो उन्हें ब्याज देने का प्रावधान होना चाहिए। दुर्भाग्य से केरल में मनरेगा मजदूरों को उनकी मजदूरी नहीं मिल रही है। स्थिति बहुत खराब है। केंद्रीय मंत्री ने इस पर कोई ठोस जवाब नहीं दिया। ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार इस योजना को बंद करने की कोशिश कर रही है।'

 

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मगर यह मनरेगा क्या है?

ग्रामीणों को रोजगार की गारंटी का कानून की मांग लंबे समय से हो रही थी। 2004 के लोकसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बना था। 2004 में जब कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए की सरकार बनी तो मनरेगा लाया गया। शुरुआत में इस योजना को 625 जिलों में लागू किया गया था। 2008 में इसे देशभर में लागू कर दिया गया।


इस योजना के जरिए ग्रामीणों को रोजगार की गारंटी मिली। मनरेगा के तहत गांव में रहने वालों को रोजगार मिलता है। इसके तहत गांव में हर परिवार के एक सदस्य को साल में कम से कम 100 दिन काम मिलता है। लोगों को अपने गांव में 5 किलोमीटर के दायरे में काम मिलता है।


मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी का प्रावधान भी है। इससे लोगों की एक कमाई भी तय हुई। 2024-25 में सरकार ने मनरेगा की न्यूनतम मजदूरी बढ़ाई थी। इसके तहत, गोवा में सबसे ज्यादा 356 रुपये प्रति दिन न्यूनतम मजदूरी मिलती है। उत्तर प्रदेश में 237 रुपये की मजदूरी हर दिन मिलती है।

 

(AI Generated Image)

संकटमोचक साबित हुई है मनरेगा

2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनरेगा का मजाक उड़ाया था। फरवरी 2015 में उन्होंने लोकसभा में कहा, 'मेरी राजनीतिक सूझबूझ कहती है कि मनरेगा कभी बंद मत करो। मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा, क्योंकि यह आपकी (यूपीए) विफलताओं का जीता-जागता स्मारक है।'


हालांकि, इसी मनरेगा ने भारत को कई बार संभाला। मनरेगा में दो ऐसी बातें हैं जो इसे बाकी रोजगार गारंटी की योजनाओं से अलग बनाती हैं। पहली- साल में कम से कम 100 दिन काम मिलेगा। और दूसरी- काम करने पर हर दिन की न्यूनतम मजदूरी भी मिलेगी ही मिलेगी।


इस योजना के लागू होने के बाद भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के सामने दो बड़े संकट आए हैं और दोनों ही बार मनरेगा 'संकटमोचक' साबित हुई है। 2008 में जब दुनियाभर में आर्थिक मंदी आई थी, तब मनरेगा की बदौलत ही भारत इसकी चपेट में आने से बच पाया था। मनरेगा के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था फल-फूल रही थी और बाजार मंदी का शिकार नहीं हुए।


इसके बाद 2020 में कोविड महामारी के दौरान भी मनरेगा एक बड़ा बूस्टर डोज साबित हुई। कोविड के कारण लगे लॉकडाउन से जब प्रवासी मजदूर अपने गांवों में लौटे तो मनरेगा की बदौलत उन्हें रोजी-रोटी कमाने में मदद मिली। 

 

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लेकिन बजट में हो रही कटौती!

मनरेगा के बजट में कुछ सालों से कटौती की जा रही है। इसे लेकर विपक्ष भी अक्सर सरकार पर उठाता रहा है।

 

2019-20 में सरकार ने मनरेगा के लिए 60 हजार करोड़ रुपये का बजट दिया था। हालांकि, उस साल 71,688 करोड़ रुपये जारी हुए थे। 2020-21 में भी सरकार ने पहले 61,500 करोड़ रुपये का बजट रखा था। मगर उसके बाद कोविड आ गया और मनरेगा की मांग बढ़ने लगी। इसलिए सरकार ने फिर बजट बढ़ाया। 2020-21 में सरकार ने कुल 1,11,170 करोड़ रुपये से ज्यादा मनरेगा पर खर्च किए थे।


लेकिन 2021-22 में सरकार ने फिर कटौती करते हुए पहले 73 हजार करोड़ रुपये का बजट ही रखा। हालांकि, उस साल 98,468 करोड़ रुपये इस योजना पर खर्च हुए।


2022-23 में सरकार ने मनरेगा के लिए 90,811 करोड़, 2023-24 में 89,268 करोड़ और 2024-25 में 82,421 करोड़ रुपये जारी किए हैं। 2025-26 के लिए सरकार ने मनरेगा के लिए 86 हजार करोड़ रुपये का बजट रखा है।


हालांकि, मनरेगा के बजट में कटौती के आरोपों को सरकार खारिज करती है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक इंटरव्यू में कहा था, मनरेगा एक मांग आधारित योजना है। अगर मांग होती है तो बजट बढ़ाया जाता है। 


उनके इस तर्क में दम भी है। वह इसलिए, क्योंकि हर साल मनरेगा के लिए बजट में जो ऐलान किया जाता है, उससे ज्यादा ही सरकार खर्च करती है। हालांकि, 2024-25 के बजट में सरकार ने 86 हजार करोड़ रुपये का फंड दिया था। मगर सरकार ने इस योजना के लिए 82,421 करोड़ रुपये जारी किए थे।

 

(AI Generated Image)

 

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क्यों जरूरी है मनरेगा?

मनरेगा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भारत की आधी से ज्यादा आबादी अभी भी ग्रामीण इलाकों में रहती है। ऐसे में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को रोजगार और मजदूरी की गारंटी मिल जाती है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था बढ़ती है। 


यह योजना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इससे सीधे तौर पर करोड़ों परिवारों को रोजी-रोटी मिल रही है। मनरेगा पोर्टल पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, देशभर में कुल रजिस्टर्ड मजदूरों की संख्या 26.65 करोड़ है। इनमें से लगभग आधी 13.16 करोड़ महिलाएं हैं। हालांकि, इनमें से अभी आधे ही ऐसे हैं जो कहीं काम कर रहे हैं। पोर्टल के मुताबिक, अभी मनरेगा के तहत सक्रिय मजदूरों की संख्या 13.60 करोड़ है। इनमें से 7.12 करोड़ महिलाएं हैं। सक्रिय मजदूरों में उनकी संख्या शामिल होती है, जो अभी कहीं न कहीं काम कर रहे हैं।


आंकड़ों के मुताबिक, 2024-25 में मनरेगा के तहत 7.77 करोड़ लोगों को रोजगार मिला था। 2023-24 की तुलना में यह संख्या कम है। 2023-24 में 8.34 करोड़ लोगों को रोजगार मिला था। इतना ही नहीं, 2024-25 में इस योजना के जरिए हर व्यक्ति को औसतन 250 रुपये की मजदूरी हर दिन मिली। 2023-24 में 235 रुपये की औसत मजदूरी हर दिन मिली थी।


वैसे तो इस योजना के तहत 100 दिन के काम की गारंटी है लेकिन आंकड़ो से पता चलता है कि बहुत से मजदूरों को इतने दिन काम नहीं मिलता है। आंकड़े बताते हैं कि 2024-25 में 36 लाख से भी कम ही परिवार ऐसे थे, जिन्हें साल में 100 दिन काम मिला।

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