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मिग-21 को अलविदा: 1971 युद्ध से बालाकोट तक वीरता की कहानी

भारतीय वायुसेना का सबसे पुराना और ऐतिहासिक लड़ाकू विमान मिग-21 अब इतिहास बनने जा रहा है। छह दशक के बाद इस साल के सितम्बर महीने में इस विमान की अंतिम यूनिट को रिटायर किया जाएगा।

Air Chief Marshal With Mig-21

मिग-21 के साथ उड़ान के लिए तैयार एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह: Photo Credit: Indian Air Force

भारतीय वायुसेना का सबसे पुराना और ऐतिहासिक लड़ाकू विमान मिग-21 अब इतिहास बनने जा रहा है। छह दशक तक देश की हवाई ताकत का अहम हिस्सा रहे इस सुपरसोनिक जेट को सितंबर में औपचारिक विदाई दी जाएगी। विमानों की औपचारिक विदाई को लेकर सोमवार को एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह ने राजस्थान के बीकानेर स्थित नाल एयरबेस से मिग-21 में आखिरी बार उड़ान भरी। उनके साथ स्क्वाड्रन लीडर प्रिया शर्मा भी इस उड़ान में शामिल थीं। यह उड़ान इसलिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि 26 सितंबर को मिग-21 की अंतिम दो स्क्वाड्रन को रिटायर कर दिया जाएगा। विदाई समारोह चंडीगढ़ एयरबेस पर होगा, जहां साल 1963 में मिग-21 पहली बार भारतीय वायुसेना में शामिल हुआ था।

 

मिग-21 को सोवियत संघ से मंगाकर भारत में असेंबल किया गया था और बाद में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने इसकी मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर दी थी। अभी तक कुल 657 मिग-21 विमान वायुसेना का हिस्सा बन चुके हैं। इस जेट ने कई ऐतिहासिक युद्धों और मिशनों में अहम भूमिका निभाई है, जिनमें 1971 का भारत-पाक युद्ध, 1999 का कारगिल युद्ध और 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद की हवाई झड़प भी शामिल है। हालांकि, इस विमान का इतिहास हादसों से भी जुड़ा हुआ है। अब तक करीब 490 मिग-21 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं और 170 से ज्यादा पायलट अपनी जान गंवा चुके हैं।

 

 

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मिग-21 का इतिहास

साल 1963 के बाद से अब तक लगातार मिग-21 ने पिछले 62 साल में कई बड़े युद्ध और ऑपरेशन में हिस्सा लिया है। इनमें 1971 का बांग्लादेश युद्ध, 1999 का कारगिल युद्ध और 2019 का बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद हुआ हवाई संघर्ष शामिल है, जब ग्रुप कैप्टन अभिनंदन वर्धमान मिग-21 उड़ा रहे थे। 

कहां हुआ था डिजाइन?

मिग-21 को सोवियत संघ के मिकॉयान-गुरेविच डिजाइन ब्यूरो ने बनाया था और इसकी पहली उड़ान 1955 में हुई थी। यह विमान मूल रूप से 'प्वाइंट डिफेंस फाइटर' के रूप में बनाया गया था, जो नजदीकी हवाई युद्ध के इस्तेमाल के लिए बना था। भारत ने योजना बनाई थी कि 1994 तक मिग-21 का विकल्प तैयार हो जाएगा लेकिन इसकी आखिरी मॉडल, मिग-21 बाइसन, 1985 में ही बन गया था।

 

 

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इन विमानों के न होने से कितने विमान बचेंगे?

अब जब अंतिम दो स्क्वाड्रन भी रिटायर हो जाएंगे तो भारतीय वायुसेना में फाइटर स्क्वाड्रन की संख्या घटकर 29 रह जाएगी, जो पिछले छह दशक का सबसे कम स्तर होगा। सरकार की सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) के अनुसार, वायुसेना को पाकिस्तान और चीन दोनों से एक साथ युद्ध की स्थिति से निपटने के लिए कम से कम 42 स्क्वाड्रन चाहिए। एक स्क्वाड्रन में करीब 16 से 18 विमान होते हैं।

 

वायुसेना की संख्या बढ़ाने के लिए स्वदेशी तेजस मार्क-1ए लड़ाकू विमान को शामिल करने की योजना थी। HAL को 2024 से हर साल कम से कम 16 विमान देने थे लेकिन अब तक एक भी तेजस मार्क-1ए वायुसेना को नहीं मिला है।

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