पहलगाम (जम्मू-कश्मीर) में हुए आतंकी हमले के बाद, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में कहा कि अहिंसा भारत का धर्म और हमारी संस्कृति का मूल हिस्सा है, लेकिन अत्याचारियों और गुंडों को सबक सिखाना भी उतना ही जरूरी है।
शनिवार को दिल्ली में 'द हिंदू मेनिफेस्टो' किताब के विमोचन कार्यक्रम में बोलते हुए भागवत ने कहा कि रामायण और महाभारत दोनों में यह सिखाया गया है कि अन्याय का मुकाबला करना जरूरी है। उन्होंने रावण का उदाहरण देते हुए कहा कि रावण को मारना उसके अहित के लिए नहीं, बल्कि उसके कल्याण के लिए किया गया था।
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‘पड़ोसियों का सम्मान लेकिन…’
भागवत ने अपने संबोधन में कहा, ‘हम अपने पड़ोसियों का हमेशा सम्मान करते हैं, उनके साथ शांति से रहना चाहते हैं। लेकिन यदि कोई शत्रु बार-बार बुरा करता है, तो राजा का धर्म है कि वह अपने लोगों की रक्षा करे।’
उन्होंने समझाया कि हमारी संस्कृति में अहिंसा का मतलब कायरता नहीं है, बल्कि सत्य और धर्म की रक्षा करना भी इसमें शामिल है। भागवत ने महाभारत और रामायण का हवाला देते हुए कहा कि अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करना और रावण का वध, दोनों घटनाएं इसी विचारधारा पर आधारित थीं — जहां हिंसा भी एक तरह से अहिंसा बन जाती है, जब वह अन्याय का अंत करने के लिए की जाती है।
रावण का उदाहरण
मोहन भागवत ने रावण का उदाहरण देते हुए कहा कि रावण एक विद्वान था। वह भगवान शिव का भक्त था, उसे वेदों का गहरा ज्ञान था और उसे अच्छे शासन का भी पूरा अनुभव था। लेकिन फिर भी, अहंकार और बुरे कर्मों ने उसके भीतर के सभी अच्छे गुणों को ढक लिया था।
उन्होंने कहा, ‘रावण के सुधार का कोई दूसरा रास्ता नहीं था। इसलिए उसके शरीर और बुद्धि का अंत करना पड़ा। भगवान राम ने जो किया वह हिंसा नहीं थी, बल्कि एक उच्च प्रकार की अहिंसा थी — बुराई का अंत और आत्मा की मुक्ति।’
‘कई तरह के दंड’
भागवत ने बताया कि हमारी संस्कृति में सज़ा देने की भी एक समझदारी है। "हम देखते हैं कि किसे थोड़ा समझाने से सुधार हो सकता है, किसे थोड़ी सख्ती की जरूरत है और किसे कठोर दंड देना अनिवार्य हो जाता है। जिनका कोई सुधार संभव नहीं होता, उन्हें उनके उनके भले के लिए भेज दिया जाता है।"
उन्होंने पश्चिमी विचारधारा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वहां इस तरह के संतुलन की सोच नहीं है। लेकिन भारतीय दृष्टिकोण में सुधार और दंड दोनों का संतुलन महत्वपूर्ण है।
‘कट्टरपंथी हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं’
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर सीधी टिप्पणी करते हुए भागवत ने कहा, ‘जो कट्टरपंथी लोग धर्म पूछकर लोगों की हत्या करते हैं, वे हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं। हिंदू धर्म में कभी भी इस तरह की सोच नहीं रही है। इसलिए आज जरूरत है कि देश मजबूत हो, ताकि ऐसे अत्याचारों का मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके।’
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‘धर्म बनाम अधर्म की है’
शुक्रवार को मुंबई में एक अन्य कार्यक्रम में भी मोहन भागवत ने इसी भावना को दोहराया था। उन्होंने कहा था कि आज का संघर्ष केवल धर्मों या संप्रदायों के बीच नहीं है, बल्कि यह 'धर्म' और 'अधर्म' के बीच की लड़ाई है — यानी सत्य, न्याय और करुणा बनाम असत्य, अन्याय और हिंसा।
उन्होंने कहा, ‘यह जरूरी है कि हम अपने भीतर की अच्छाइयों को मजबूत करें और बुराई के खिलाफ संगठित होकर खड़े हों। क्योंकि जो बुराई को बढ़ावा देते हैं, उन्हें रोकना ही सच्ची अहिंसा है।’