MP में क्या 'पीने' पर लग सकती है रोक? समझें शराबबंदी का पूरा खेल
देश
• BHOPAL 25 Jan 2025, (अपडेटेड 25 Jan 2025, 3:04 PM IST)
एमपी की बीजेपी सरकार उज्जैन समेत 17 धार्मिक क्षेत्रों में शराबबंदी लागू करने जा रही है। कैबिनेट ने इस फैसले पर मुहर लगा दी है। ऐसे में जानते हैं कि शराबबंदी करने से कितना नुकसान हो सकता है? और क्या वाकई एमपी में शराबबंदी हो सकती है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। (Photo Credit: Canva)
मध्य प्रदेश की मोहन यादव वाली बीजेपी सरकार ने शराबबंदी की ओर कदम बढ़ा दिया है। सरकार ने उज्जैन समेत 17 धार्मिक क्षेत्रों में शराब बेचने पर पाबंदी लगा दी है। हालांकि, इन क्षेत्रों में शराब पीने और रखने पर कोई रोक नहीं होगी। शराबबंदी का ये फैसला अगले वित्त वर्ष यानी अप्रैल 2025 से लागू हो जाएगा।
कहां-कहां बंद होंगी दुकानें?
एमपी सरकार ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री मोहन यादव की अगुवाई में हुई कैबिनेट मीटिंग में धार्मिक क्षेत्रों में शराबबंदी करने का फैसला लिया है। जिन क्षेत्रों में शराबबंदी करने का फैसला लिया गया है, उनमें उज्जैन, ओंकारेश्वर, महेश्वर, मंडलेश्वर, ओरछा, मैहर, चित्रकूट, दतिया, पन्ना, मंडला, मुल्ताई, मंदसौर और अमरकंटक के साथ-साथ सलकनपुर, कुंडलपुर, बांदकपुर, बरमानकलां, बरमानखुर्द और लिंगा शामिल है।
पर ये पाबंदी क्यों?
सरकार ने धार्मिक क्षेत्रों में शराब पर प्रतिबंध लगाया है। सरकार का दावा है कि इसके बाद धीरे-धीरे पूरे प्रदेश में शराबबंदी की जाएगी। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बताया कि इन धार्मिक क्षेत्रों में शराब की दुकानें बंद होंगी और इन्हें कहीं और शिफ्ट भी नहीं किया जाएगा। उज्जैन नगर निगम सीमा में शराब की दुकानें पूरी तरह से बंद रहेंगे। इसके अलावा नर्मदा नदी के 5 किलोमीटर के दायरे में शराब पर लागू प्रतिबंध जारी रहेगा।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में मंत्रि-परिषद की बैठक
— Jansampark MP (@JansamparkMP) January 24, 2025
महत्वपूर्ण निर्णय
➡️प्रदेश के 19 नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में मदिरा को प्रतिबंधित किए जाने की स्वीकृति दी गई है@DrMohanYadav51 @CMMadhyaPradesh #CMMadhyaPradesh #MadhyaPradesh #मुख्यमंत्री_जनकल्याण_अभियान… pic.twitter.com/9GEif64MyA
इससे क्या असर होगा?
एमपी सरकार के इस फैसले से इन क्षेत्रों की शराब की 47 दुकानें पूरी तरह से बंद हो जाएंगी। इससे सरकार पर आर्थिक असर भी पड़ेगा। अनुमान है कि इन क्षेत्रों में शराबबंदी करने से 450 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।
ऐसा कितना कमाती है सरकार?
किसी भी सरकार की कमाई में बड़ा हिस्सा शराब पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी का होता है। एक्साइज ड्यूटी सबसे ज्यादा शराब पर ही लगती है। इसका कुछ हिस्सा ही बाकी चीजों पर लगता है।
शराब की बिक्री से मिलने वाली एक्साइज ड्यूटी से एमपी सरकार हर साल हजारों करोड़ रुपये कमाती है। RBI के मुताबिक, 2022-23 में एक्साइज ड्यूटी से सरकार को 12,954 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी। 2023-24 में इससे सरकार ने 13,845 करोड़ रुपये कमाए थे। वहीं, 2024-25 में सरकार को इससे 16 हजार करोड़ रुपये की कमाई होने का अनुमान था।
MP में कब-कब हुई शराबबंदी की कोशिश?
सीएम मोहन यादव ने इस फैसले को शराबबंदी की ओर पहला कदम बताया है। मगर क्या प्रदेश में पूरी तरह से शराबबंदी की जा सकती है? मोहन यादव की सरकार से पहले एमपी में कई सरकारों ने शराबबंदी करने की कोशिश की लेकिन कभी इसे लागू नहीं कर सके।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी शराबबंदी को लेकर एक नई नीति लेकर आए थे। उनका कहना था कि जिन भी इलाकों में 50 फीसदी से ज्यादा महिलाएं शराबबंदी का समर्थन करेंगी, वहां से शराब की दुकानों को हटा दिया जाएगा या बंद कर दिया जाएगा। हालांकि, ये नीति लागू नहीं हो सकी।
उनके बाद 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती ने कुछ चुनिंदा जगहों पर शराबबंदी करने की तैयारी की थी। हालांकि, उनकी ये नीति लागू हो पाती, उससे पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
2015 में जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी की तो तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इसका ऐलान किया। उन्होंने वादा किया कि एमपी में फेज वाइज शराबबंदी लागू की जाएगी। सबसे पहले उन्होंने 2018 में नर्मदा नदी के 5 किलोमीटर के दायरे में शराब की बिक्री पर रोक लगाई। उन्होंने 58 शराब की दुकानें बंद कर दीं।
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क्या MP में लागू हो पाएगी शराबबंदी?
मध्य प्रदेश में शराबबंदी सामाजिक होने के साथ-साथ राजनीतिक मुद्दा भी है। शराबबंदी की मांग हिंसक भी हो जाती है। 2024 के लोकसभा चुनाव से भोपाल से पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने एक घर का ताला तोड़ दिया था, जहां से अवैध शराब की बोतलें जब्त हुई थीं। वहीं, पूर्व सीएम उमा भारती ने एक बार शराब के एक ठेके पर पत्थरबाजी कर दी थी। महिलाओं के विरोध के बावजूद मध्य प्रदेश में शराबबंदी लागू करना थोड़ा टेढ़ी खीर समझा जाता है। वो इसलिए क्योंकि मध्य प्रदेश की 21 फीसदी आबादी आदिवासी है। इन समाजों में शराब पीना संस्कृति का हिस्सा माना जाता है।
MP में शराब की कितनी खपत?
मध्य प्रदेश में शराब की खपत बढ़ती जा रही है। जनवरी 2023 में एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें सामने आया था कि शिवपुरी, मुरैना, विदिशा, डिंडौरी, टीकमगढ़, सतना, रीवा और उमरिया जैसे छोटे जिलों में शराब की खपत 100% तक बढ़ गई है। वहीं, भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर जैसे बड़े शहरों में बीयर की खपत काफी बढ़ी है।
इसके अलावा, केंद्र सरकार के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के मुताबिक, मध्य प्रदेश की लगभग 18 फीसदी आबादी शराब का सेवन करती है। इसके मुताबिक, एमपी के 17 फीसदी पुरुष और 1 फीसदी महिलाएं शराब का सेवन करती हैं। शहरों की तुलना में गांवों में शराब की खपत ज्यादा है। शहरी इलाकों में रहने वाले 13.2 फीसदी और गांवों में रहने वाले 18.6 फीसदी पुरुष शराब पीते हैं।
सिर्फ 5 राज्यों में शराबबंदी
शराब एक ऐसा विषय है, जिस पर अक्सर बहस होती है। शराब को खराब तो बताया जाता है लेकिन सरकारों की इससे मोटी कमाई होती है। पिछले साल जून में ओडिशा सरकार शराबबंदी करने की तैयारी कर रही थी। मगर ऐसा नहीं कर सकी।
अभी देश में बिहार, गुजरात, मिजोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप में पूरी तरह से शराब पर प्रतिबंध है। गुजरात पहला राज्य था जिसने सबसे पहले शराबबंदी की थी। बिहार में 2015 से शराबबंदी है। हरियाणा में 1996 में शराबबंदी लागू की गई थी, लेकिन दो साल बाद ही 1998 में इसे हटा लिया गया। आंध्र प्रदेश में 1995 में शराब पर प्रतिबंध लगा लेकिन 1997 में सरकार ने इसे वापस ले लिया। मणिपुर में भी 1991 से शराबबंदी लागू है और दो साल पहले ही इसमें थोड़ी छूट दी गई, ताकि रेवेन्यू बढ़ाया जा सके।
आरबीआई की रिपोर्ट बताती है कि 2023-24 में सभी राज्य सरकारों ने 2.81 लाख करोड़ रुपये का रेवेन्यू शराब की बिक्री से कमाया था। इससे 5 साल पहले 2019-20 में 1.61 लाख करोड़ रुपये का रेवेन्यू आया था। यानी , 5 साल में एक्साइज ड्यूटी से होने वाली कमाई डेढ़ गुना से ज्यादा बढ़ गई।
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