एक देश एक चुनाव पर संसदीय समिति की बैठकों का दौर शुरू हो गया है। बुधवार को हुई बैठक में सहमतियों और असहमतियों के बीच कुछ मुद्दों पर चर्चा हुई है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सदस्यों का कहना है कि एक देश-एक चुनाव देश की जरूरत है, इसे अमल में लाने की जरूरत है, वहीं कांग्रेस ने इसका विरोध किया है।
सूत्रों के मुताबिक संसदीय समिति के बैठक में कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने कहा कि यह देश के लोकतंत्रिक ढांचे के लिए ठीक नहीं है। अगर यह विधेयक कानून बना तो राज्य की सरकारें केंद्र सरकार के आधीन हो जाएंगे और देश के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचेगा। संयुक्त संसदीय समिति की पहली बैठक बुधवार को हुई है।
कब हुई बैठक, कितने देर चली?
संसदीय समिति के बैठक की कुछ जानकारियां सार्वजनिक हुई हैं। बैठक 11 बजे से शुरू हुई और पूरे साढ़े चार घंटे तक चली। NDA के ही सहोयोगी दल JDU ने सवाल किया है कि क्या यह कानून संघीय ढांचे का उल्लंघन करता है? बीजेपी के सदस्यों ने इसके जवाब में कहा है कि नहीं।
बैठक में कितने सदस्य?
संसदीय समिति में 39 सदस्य हैं। संविधान के 129वें संशोधन विधेयक की जांच के लिए यह समिति बनाई गई है। इस संशोधन का मकसद देश में एक ही समय पर चुनाव कराना है। 2025 के बजट सत्र के अंतिम सप्ताह के पहले दिन तक इस रिपोर्ट को संसद में पेश किया जाना है। जेपीसी में एनडीए के 22 सदस्य, इंडिया ब्लॉक के 15 सदस्य और दो अन्य सदस्य हैं।
बैठक के बाद अध्यक्ष ने क्या कहा?
पैनल के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने कहा, 'हमारी कोशिश सबकी बातों को सुनना है। राजनीतिक दल, समाज और न्यायपालिका के लोगों को सुनेंगे। सबका इनपुट लेंगे। आम सहमति पर पहुंचेंगे। राष्ट्रीय हित में साथ काम करने की जरूरत है।'
कैसे हुई बैठक की शुरुआत?
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने पैनल के हर सदस्य को 18,000 पन्नों के दस्तावेजों से भरा एक सूटकेस है। एक देश एक चुनाव की भूमिका और कोविंद पैनल की रिपोर्ट भी इन दस्तावेजों में शामिल है। एक देश एक चुनाव की प्रक्रिया 2029 से शुरू होगी और 2034 तक पहला चुनाव कराया जा सकता है।
किन बातों पर विपक्षी और गठबंधन के साथियों ने जताई चिंता?
- लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ हैं।
- देश के संघीय ढांचे पर असर पड़ सकता है।
- एक देश एक चुनाव से एक देश एक नेता की राह पर देश बढ़ सकता है।
- सरकारी खजाने पर अचानक बोझ बढ़ सकता है।
- एक साथ चुनाव कराने के दौरान सुरक्षा व्यवस्था को संभाल पाना मुश्किल हो सकता है।
- अल्पावधि के लिए चुनी गई सरकार कैसे पूरा कर सकेगी अपना एजेंडा?
बचाव में बीजेपी ने क्या कहा?
- बीजेपी ने रामनाथ कोविंद समिति की सिफारिशों को दोहराया।
- 1957 का हवाला दिया जब एक साथ चुनाव कराने के लिए 7 राज्यों की विधानसभाओं को अल्पावधि में भंग किया गया था।
- लोक इस बदलाव के साथ हैं।
- चुनाव का खर्च घटेगा, विधि मंत्रालय इसे लागू करने की विस्तृत योजना देगी।
- बार-बार चुनाव होने से सरकारी मशीनरी व्यस्त रहती है, काम रुकता है।
कैसा है एक देश-एक चुनाव का इतिहास?
साल 1952 में हुए पहले चुनाव से लेकर 1967 तक पूरे देश में एक साथ चुनाव हुए थे। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं को उनके कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही भंग किया जा सकता है। कई जगह ऐसी स्थितियां बनीं, कई जगह राष्ट्रपति शासन लंबा खिंचा, जिसके बाद अलग-अलग वक्त में चुनाव होने लगे। पहले भी संसदीय समितियां, चुनाव आयोग, नीति आयोग एक साथ चुनाव कराने को लेकर अध्ययन किया है। जब इसे लागू करने की बात आती है तो सामने कई चुनौतियां दिखती हैं, जिन्हें सुलझाए बिना लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ करा पाना मुश्किल होगा।