केंद्र सरकार ने मंगलवार को बड़ा फेरबदल किया। केंद्र ने 5 राज्यों के राज्यपाल बदल दिए। पूर्व गृह सचिव अजय भल्ला को मणिपुर, पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह को मिजोरम तो डॉ. हरि बाबू कंभमपति को ओडिशा का राज्यपाल नियुक्त किया है। इनके अलावा केरल के मौजूदा राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को बिहार और बिहार के मौजूदा राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर को केरल का राज्यपाल बनाया है।
ऐसे में जानते हैं कि जब किसी राज्य में मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल होता है तो राज्यपाल की नियुक्ति क्यों की जाती है? राज्यपाल की ताकत कितनी होती है और उनको तनख्वाह कितनी मिलती है?
क्यों जरूरी है राज्यपाल?
राज्यपाल का पद संवैधानिक होता है और राष्ट्रपति उनकी नियुक्त करते हैं। संविधान के अनुच्छेद 153 के मुताबिक, हर राज्य का एक राज्यपाल होगा। हालांकि, एक ही व्यक्ति दो या उससे ज्यादा राज्यों का राज्यपाल नहीं हो सकता। कुछ परिस्थितियों में अतिरिक्त प्रभार सौंपा जा सकता है। राज्यों में राज्यपाल होते हैं, जबकि केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल या एडमिनिस्ट्रेटर यानी प्रशासक होते हैं।
राज्यपाल का कार्यकाल 5 साल होता है। कार्यकाल खत्म होने के बाद जब तक नए राज्यपाल की नियुक्ति नहीं हो जाती, तब तक पुराने राज्यपाल ही काम संभालते हैं।
राज्यपाल वही होगा जो भारतीय नागरिक होगा और जिसने 35 साल की उम्र पार कर ली होगी। राज्यपाल संसद, विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य नहीं होगा। अगर किसी सांसद या विधायक को राज्यपाल बनाया जाता है तो उसे सांसदी या विधायकी छोड़नी होगी।
क्या पावर होती हैं राज्यपाल के पास?
- मुख्यमंत्री की नियुक्तिः किसी भी राज्य में सबसे ताकतवर राज्यपाल ही होते हैं। मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल ही करते हैं। मुख्यमंत्री की सलाह पर कैबिनेट का गठन करते हैं। कैबिनेट की सलाह पर ही राज्यपाल काम करते हैं।
- यूनिवर्सिटीज के चांसलरः राज्यपाल उस राज्य की सभी यूनिवर्सिटीज के चांसलर होते हैं। राज्य के एडवोकेट जनरल, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति भी राज्यपाल करते हैं।
- बिल पर मंजूरी जरूरीः कोई भी फाइनेंस बिल राज्यपाल की अनुमति के बगैर विधानसभा में पेश नहीं हो सकता। कोई बिल राज्यपाल की मंजूरी के बगैर कानून नहीं बनता। राज्यपाल उस बिल को लौटा सकते हैं या राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। हालांकि, राज्यपाल के लौटाने के बाद कोई बिल विधानसभा में पास हो जाता है तो फिर राज्यपाल को उसे मंजूरी देनी पड़ती है।
प्रधानमंत्री से भी ज्यादा ताकतवर!
राज्यपाल जब तक पद पर हैं, तब तक उन्हें न तो हिरासत में लिया जा सकता है, न गिरफ्तार किया जा सकता है और न ही कोई अदालत उनके खिलाफ आदेश जारी कर सकती है। संविधान के अनुच्छेद 361 में इसका प्रावधान किया गया है।
इस अनुच्छेद के तहत, राष्ट्रपति और राज्यपाल को गिरफ्तारी से छूट मिली है। इसमें सिविल और क्रिमिनल, दोनों मामले शामिल हैं। हालांकि, पद से हटने के बाद उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है और मुकदमा भी चलाया जा सकता है।
वहीं, कोड ऑफ सिविल प्रोसिजर की धारा 135 प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, लोकसभा-राज्यसभा के सदस्य, मुख्यमंत्री, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों को भी गिरफ्तारी से छूट मिली है। हालांकि, यह छूट सिर्फ सिविल मामलों में है, क्रिमिनल मामलों में नहीं। इसका मतलब हुआ कि प्रधानमंत्री के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है और गिरफ्तारी भी हो सकती है। मगर राज्यपाल के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं चल सकता।
तनख्वाह कितनी मिलती है?
सभी राज्यों के राज्यपाल को हर महीने 3.50 लाख रुपये की सैलरी मिलती है। प्रधानमंत्री की सैलरी 1 लाख रुपये होती है। राष्ट्रपति को 5 लाख और उपराष्ट्रपति को 4 लाख रुपये सैलरी मिलती है।
सैलरी के अलावा राज्यपालों को कई तरह के भत्ते भी मिलते हैं। हर राज्य में अलग-अलग तरह के भत्ते होते हैं। राज्यपालों को लीव अलाउंस भी मिलता है। सरकारी आवास की देखभाल और रखरखाव के लिए भी भत्ता मिलता है। केंद्र और राज्य सरकार के अस्पतालों में फ्री मेडिकल केयर की सुविधा भी राज्यपाल को मिलती है।
इसके अलावा, अगर राज्यपाल को किसी काम के लिए गाड़ियों की जरूरत है तो वह मुफ्त में किराये पर ले सकते हैं। उनके और उनके परिवार को छुट्टियों के लिए ट्रैवलिंग अलाउंस भी मिलता है।