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गणतंत्र दिवस पर बैगा परिवारों को न्योता, क्या है उनके संघर्ष की कहानी?

छत्तीसगढ़ के कुछ बैगा आदिवासी परिवार पहली बार दिल्ली बुलाए गए हैं। मुख्य धारा से कटे इस समाज की कहानी क्या है, आइए जानते हैं।

Baiga Adivasi Family

छत्तीसगढ़ की बैगा आदिवासी परिवार की एक महिला। (File Photo Credit: X@KabirdhamDis)

गणतंत्र दिवस का दिन छत्तीसगढ़ के बैगा आदिवासी परिवारों के लिए बेहद खास होने वाला है। राष्ट्रपति भवन की ओर से कवर्धा जिले के 6 बैगा आदिवासी परिवारों को दिल्ली आने का न्योता भेजा गया है।

आमंत्रित बैगा आदिवासी परिवारों में कई लोग ऐसे भी हैं, जो अपनी जिंदगी में कभी दिल्ली नहीं गए हैं। बैगा परिवार न केवल गणतंत्र दिवस की परेड में खास मेहमान होंगे, बल्कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से वे मुलाकात करेंगे, उनके साथ खाना खाएंगे। बैगा आदिवासी परिवारों के लिए यह बुलावा, उनके लिए बेहद खास है।

कौन हैं ये बैगा परिवार जिन्हें मिला न्योता?
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के पंडरिया विकास खंड में तीन बैगा परिवारों को न्योता मिला है। यह परिवार आर्थिक और सामाजिक तौर पर बेहद पिछड़ा है और पुरानी आदिवासी परंपरा में जी रहा है। 

कदवानी गांव पंचायत के अंतर्गत आने वाली पटपरी गांव की जगतिन बाई बैगा और उनके पति फूल सिंह बैगा भी बुलाए गए हैं। यह परिवार बेहद उत्साहित है। जब उनसे एक रिपोर्टर ने सवाल किया कि कैसा लग रहा है, उन्होंने कहा, 'हमको खुशी मिल रही है, अच्छा लग रहा है।'

बैगा परिवारों की मांगों को सुनते प्रशासनिक अधिकारी।

गणतंत्र दिवस समारोह में हिस्सा लेने जा रहे परिवार, कभी नहीं भारत के राष्ट्रपति से मिलने के लिए दिल्ली की यात्रा करने की तैयारी कर रहे हैं, एक ऐसी जगह जहां वे पहले कभी नहीं गए हैं। 

कौन हैं बैगा आदिवासी?
बैगा आदिवासियों को 'पर्टिकुलरली वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप' में रखा गया है। इसे PVTG टैग दिया गया है। इन समूहों को आदिम जनजातीय समूह भी कहते हैं। बैगा जनजाति आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रही है। पहाड़ी और दूरस्थ इलाकों में बसी यह जनजाति अविकसित भारत का हिस्सा है।

कई गांव विकास के दायरे से बेहद दूर हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। बिजली, नल और साफ पानी के लिए भी ये परिवार तरसते हैं। अशिक्षा इन राज्यों में अपने चरम पर है। बैगा परिवारों की दिल्ली यात्रा, उनके जीवन की पहली दिल्ली यात्रा होने वाली है।



बैगा जनजाति की एक सदस्य जगतिन बाई ने कहा, 'हमें बिजली मिल गई है। हम बहुत खुश हैं। हम अंधेरे में रहते थे और हमेशा कीड़ों का डर रहता था।' अब इन गांवों में धीरे-धीरे बिजली पहुंच रही है। उनके रहन-सहन के स्तर को सुधारने की कोशिश की जा रही है। 

जगतिन बाई ने कहा, 'कलेक्टर हमारे गांव आए और पूछा कि हमें क्या सुविधाएं मिली हैं। हमने उन्हें बताया कि हमारे गांव में कभी बिजली नहीं थी, लेकिन अब हमारा गांव और घर रोशन हैं।'

कैसे गांव को मिली बिजली?
पटपरी गांव के 25 घरों में सौर ऊर्जा से चलने वाली लाइटों को लगाया गया है। बैगा समुदाय में इससे पहले बिजली नहीं थी। जगतिन बाई, नए बदलावों के लिए राष्ट्रपति को शुक्रिया कहना चाहती हैं। उन्होंने कहा, 'मैं दिल्ली जाकर राष्ट्रपति को सम्मान के तौर पर बिरन माला भेंट करूंगी, क्योंकि इन योजनाओं ने हमारे जीवन स्तर में सुधार किया है।'

जगतिन बाई के पति फूल सिंह ने कहा, 'राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने हमें आमंत्रित किया है। हम बहुत खुश हैं कि हमारे घर में अब बिजली है।'

कैसी थी गांव की स्थिति?
दशकों तक पटापरी गांव अंधेरे में रहा है। यह दुनिया से कटा रहा है। ग्रामीण बिजली के बिना रहते थे, खाना पकाने के लिए जंगल की लकड़ियों पर निर्भर थे। आज भी इनके घरों में चूल्हे दिखते हैं। अब हालात बदल रहे हैं।



पहले गांव में जंगली जानवरों का रात में खतरा बढ़ जाता था। अंधेरे का फायदा उठाकर जानवर हमला कर देते थे। फूल सिंह इन हालातों को याद करते हुए बताते हैं, 'पहले, हमारे पास एक छोटा सा सोलर पैनल था। कभी-कभी, हम इसका इस्तेमाल खाना पकाने के लिए करते थे। अक्सर हमें अंधेरे में खाना बनाना पड़ता था। अब, सरकार की योजना की बदौलत, पूरा गांव 24 घंटे सौर ऊर्जा से रोशन रहता है।'



कैसे बदली गांव की स्थिति?
अक्टूबर 2024 में कलेक्टर गोपाल वर्मा ने पटापरी गांव में जन चौपाल आयोजित की थी। उन्होंने सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने पर जोर दिया। हर घर में 300 वाट की सौर ऊर्जा की व्यवस्था कराई गई। यहां एक जमाने में सुविधाओं का टोटा था, अब ये गांव रोशन है।

ग्रामीणों का कहना है कि अब गांव में एक-दूसरे के घर आना-जाना आसान हो गया है। बीती दीवाली के बाद स्थिति बदल गी है। लोग लकड़ी जलाकर खाना पकाते थे। हम हमेशा डर में रहते थे, अब यह डर कम हो गया है।' पहले लोग गर्मी के दिनों में बेहाल रहते थे, अब यहां पंखे हैं। बच्चे रोशनी में पढ़-लिख लेते हैं। बैगा परिवार के कई सदस्य ऐसे हैं, जिन्होंने ट्रेन से कभी यात्रा ही नहीं की है।

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