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क्या बढ़ती असमानता है Dead Economy की वजह? सच्चाई क्या है

भारत की अर्थव्यवस्था चौथे नंबर पर है लेकिन भारतीय लोग दुनिया में चौथे सबसे अमीर नहीं हैं। प्रति व्यक्ति आय में भारत का नंबर 140 वां है।

India Dead Economy

भारत की अर्थव्यवस्था। Photo Credit- AI

देश में मृत अर्थव्यवस्था (Dead Economy) की चर्चा जोरों पर चल रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से लेकर लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भारत की मृत अर्थव्यवस्था को लेकर बात कर रहे हैं। राहुल गांधी तो इसको लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर जमकर हमलावर हैं। डोनाल्ड ट्रंप के भारत को डेड इकोनॉमी बताने पर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विशेषज्ञ और मीडिया ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। खासकर तब जब भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हो रहा है। हालांकि, ट्रंप ने भारत को उकसाने के लिए डेड इकोनॉमी वाला बयान दिया है, लेकिन कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां खुलकर भारत की अर्थव्यवस्था, महंगाई, लोगों के खर्च करने की कुबत को लेकर सवाल उठा रही हैं।

 

ट्रंप के इस राजनीतिक बयान के पीछे अमेरिका के अपने हित हो सकते हैं कि वह भारत पर दबाव बनाकर मन माफिक टैरिफ लागू कर सके। लेकिन अमेरिका के इस बयान ने वैश्विक अर्थशास्त्रियों और मीडिया का ध्यान भारत की आर्थिक असलियत की ओर खींचा है।

 

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई में भारत मृत अर्थव्यवस्था बन गया है? या इस ओर बढ़ रहा है? आखिर डेड इकोनॉमी की सच्चाई क्या है। अगर ऐसा है तो इसके पीछे की वजह क्या है? आईए आंकड़ों से समझते हैं कि इसकी सच्चाई क्या है...

 

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डोनाल्ड ट्रंप मकसद

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने यहां भारत के सामानों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा करते हुए कहा कि हिन्दुस्तान, रूस के साथ में रहकर गर्त जाएगा। ट्रंप इस बात से नाराज हैं कि भारत हथियार और तेल रूस से खरीद रहा है। वो चाहते हैं कि भारत जो हथियार और तेल रूस से खरीदता है वो उससे खरीदे। इस घटनाक्रम के बाद ने जो बयान दिया, उनका वो मकसद सफल रहा क्योंकि दुनिया के साथ ही भारत में डेड इकोनॉमी को लेकर बहस छिड़ गई है। जो भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है अब उसकी इकोनॉमी का डेड बताया जाने लगा है। यह पूरी तरह से नैरैटिव का खेल बन चुका है।

 

राहुल गांधी और विपक्ष का सवाल

कांग्रेस सांसद और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि मोदी सरकार ने दस साल में अर्थव्यवस्था को मार दिया है। उन्होंने ट्रंप की बात का समर्थन करते हुए कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था 'मृत' है। उन्होंने कहा, 'हां, वह सही हैं। प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को छोड़कर यह बात सभी जानते हैं। पूरी दुनिया जानती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक मृत अर्थव्यवस्था है। मुझे खुशी है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने एक तथ्य बताया है। पूरी दुनिया जानती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक मृत अर्थव्यवस्था है।'

 

जबकि राहुल गांधी के बयान के बाद देश के कॉमर्स मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि हम जल्द ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहे हैं। दुनिया हमारा लोहा मानती है। हालांकि, पक्ष- विपक्ष की इस लड़ाई के बीच सच ब्लैक एंड व्हाइट नहीं है। इसकी सच्चाई कुछ और है।

बड़ी आबादी के पास पैसा क्यों नहीं है?

यह बात सही है कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हमसे बस जापान, चीन और अमेरिका ही आगे हैं। दस साल पहले भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में 11वें नंबर पर था। आज भारत चौथे नंबर पर है। यह भी सही है कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। मगर, भारत और यहां के लोगों के लिए अच्छी खबर बस यहीं तक है। भारत की अर्थव्यवस्था चौथे नंबर पर है लेकिन भारतीय लोग दुनिया में चौथे सबसे अमीर नहीं हैं। प्रति व्यक्ति आय में भारत का नंबर 140 वां है। इसमें सवाल उठाता है कि जब भारत की अर्थव्यवस्था 4 नंबर पर है तो भारत की एक बहुत बड़ी आबादी के पास पैसा क्यों नहीं है?

 

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दरअसल, ब्लूम की Indus Valley Report कहती है कि भारत में 100 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास खर्च करने के लिए कुछ नहीं बचता है। भारत की अर्थव्यवस्था डेड नहीं है। भारत की समस्या असमानता है, भारत के भीतर तीन भारत हैं।

भारत और अमेरिका की अर्थव्यवस्था

भारत की अर्थव्यवस्था हर साल अमेरिका से तीन गुना तेजी से बढ़ रही है। इसके बावजूद दोनों देशों के बीच कोई तुलना नहीं है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था भारत से सात गुना बड़ी है। वर्तमान में अमेरिका 28 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है, जो सालाना 2 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में हर साल 560 बिलियन डॉलर जुड़ते हैं। वहीं, भारत की अर्थव्यवस्था की बात करें तो यह 4 ट्रिलियन डॉलर है, जो सालाना लगभग 7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। अमेरिका की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था में हर साल 280 बिलियन डॉलर जुड़ेंगे

 

भारत में असमानता का अंतर समझिए

भारत की आबादी लगभग 145 करोड़ है। देश में वैसे तो पैसे की कोई कमी नहीं है लेकिन देश में भयानक आर्थिक असमानता है। अगर देश की आर्थिक असमानता को समझना है को इसको समझने के लिए हम भारत को 3 भागों में बांट सकते हैं।

इंडिया 1 कैटेगरी

इंडिया 1 में 14 करोड़ लोग हैं। इन 14 करोड़ लोगों की प्रति व्यक्ति आय 15 हजार डॉलर है, यानी कि यह आबादी हर साल तकरीबन 13 लाख रुपये कमाती है। भारत में खपत का दो तिहाई खर्च यही 14 करोड़ लोग करते हैं। जैसे देश की आबादी 100 है तो यह इसमें से दस लोग हैं। देश की खपत 100 रुपये है तो 66 रुपये खर्च यही दस लोग करते हैं।

इंडिया 2 कैटेगरी

इंडिया 2 में 30 करोड़ लोग आते हैं। आबादी और आय के हिसाब से यह इंडोनेशिया के करीब बैठता है। इन 30 करोड़ भारतीयों की प्रति व्यक्ति आय 3 हजार डॉलर प्रति वर्ष है। यह लोग देश की खपत का एक तिहाई खर्च करते हैं।

इंडिया 3 कैटेगरी

इंडिया 3 में 100 करोड़ लोग हैं। इनकी प्रति व्यक्ति आय 1 हजार डॉलर सालाना है। यह अफ्रीका के गरीब देशों की आमदनी जैसी है। Indus Valley Report की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की इस आबादी के पास खर्च करने के लिए कुछ भी अतिरिक्त नहीं बचता है। यह लोग बस खा-कमा रहे हैं। इनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि अपने लिए कुलकर खर्च कर सकें या अपने लिए घर बना सकें।

84 करोड़ लोगों को फ्री राशन

देश में ही भारत की केंद्र सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 84 करोड़ लोगों को फ्री में राशन देती है। इस योजना की शुरुआत मार्च 2020 में हुई थी, जो अभी भी जारी है। इस योजना से केंद्र सरकार को सालाना 2 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ता है। राशन के लिए गरीबों को एक रुपये भी नहीं देना होता है। योजना में सरकार 84 करोड़ लोगों को हर महीने प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम गेहूं और 1 किलोग्राम चावल फ्री दिया जाता है। बीते कई सालों से इस योजना को आगे बढ़ाया जा रहा है।

 

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हमें चिढ़ा रहे हैं लेकिन भारत को विकसित देश बनना है तो इंडिया 1, इंडिया 2 और इंडिया 3 में जो असमानता है उसे पाटना पड़ेगा। भारत के जो आर्थिक तौर से पिछड़े लोग हैं उन लोगों में जान फूंकने के लिए सरकार को जरूरी और कड़े कदम उठाने होंगे। हम सिर्फ इंडिया 1 को देखकर यह नहीं कह सकते कि भारत अर्थव्यवस्था अच्छा कर रही है।

 

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