संविधान की प्रस्तावना के दो शब्द- 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्षता' को लेकर अक्सर दक्षिणपंथी संगठन सवाल उठाते रहे हैं। बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ (आरएसएस) इन दोनों शब्दों को संविधान की प्रस्तावना से हटाने की मांग करते रहते हैं। अब आरएसएस से जुड़ी मैग्जीन 'द ऑर्गनाइजर' ने इन शब्दों को 'धार्मिक मूल्यों को नष्ट करने' और 'राजनीतिक तुष्टिकरण के लिए डिजाइन की गई बारूदी सुरंगे' बताया है। इसमें कहा गया है कि अब इन शब्दों को हटाने और संविधान की मूल प्रस्तावना को वापस लेने का समय आ गया है।
मैग्जीन ने अपने लिख में प्रस्तावना में शामिल किए गए इन शब्दों को 'संवैधानिक धोखाधड़ी' करार देते हुए लिखा है कि यह भारत की पहचान और संवैधानिक लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत हैं।
ऑर्गनाइजर ने अपने लेख में क्या लिखा है?
यह लेख डॉ. निरंजन बी. पूजार ने लिखा है। उन्होंने लिखा, 'किसी भी संविधान सभा ने इन शब्दों को कभी स्वीकार नहीं किया था। 42वां संशोधन आपातकाल के दौरान पास किया गया था, जब विपक्षी नेता जेल में थे औ मीडिया पर पाबंदी लगी थी।' इसमें कहा गया है कि यह एक 'संवैधानिक धोखाधड़ी' थी, जो किसी के बेहोश होने पर उसकी वसीयत बनाने के बराबर है।
इसमें उन्होंने लिखा, 'भारत को मूल प्रस्तावना पर वापस लौटना होगा, जैसा इसे बनाने वालों ने कल्पना की थी। आइए हम आपातकाल के संवैधानिक पाप को मिटाएं और भारत के लोगों के लिए पुरानी प्रस्तावना पर वापस लौटें।'
लेख में लिखा गया है कि 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्षता' शब्दों को हटाना विचारधारा से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह 'संवैधानिक ईमानदारी, राष्ट्रीय गरिमा की प्राप्ति और राजनीतिक पाखंड के अंत' से जुड़ी है।
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समाजवादी और धर्मनिरपेक्षता को क्या बताया?
ऑर्गनाइजर के नए एडिशन पर छपे इस लेख में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्षता' पर टिप्पणी की गई है। इसमें कहा गया है, 'हम कोई समाजवादी देश नहीं हैं। हम कोई धर्मनिरपेक्ष-नास्तिक देश नहीं हैं। हम एक धार्मिक सभ्यता हैं, जिसकी जड़ें बहुलवाद, स्वराज और आध्यात्मिक स्वायत्तता में है।'
लेख में आगे कहा गया है, 'प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द जुड़ने के बाद धर्मनिरपेक्षता के भारतीय संस्करण ने अपनी तटस्थता खो दी और यह अल्पसंख्यकों के अधिकारों के नाम पर हिंदुओं के खिलाफ भेदभाव का एक पर्दा बन गया।'
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क्या था 42वां संशोधन?
जून 9175 से मार्च 1977 तक देश में इमरजेंसी लागू थी। इस दौरान दिसंबर 1976 में संविधान में 42वां संशोधन किया गया था। इसमें कई सारे बदलाव किए गए थे, इसलिए इसे 'मिनी कंस्टीट्यूशन' भी कहा जाता है।
42वें संशोधन के जरिए संविधान की प्रस्तावना में तीन शब्द- 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' को जोड़ा गया था। यह पहली और आखिरी बार था, जब संविधान की प्रस्तावना में बदलाव हुआ था। इन शब्दों को जोड़ने के पीछे तर्क दिया गया था कि देश को धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर विकसित करने के लिए यह जरूरी है।
1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद 44वां संशोधन किया गया था। इसमें 42वें संशोधन में किए गए कई सारे बदलावों को रद्द कर दिया गया था। हालांकि, प्रस्ताव में जोड़े गए शब्दों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई थी।