क्यों सिर्फ 'लोगों की गिनती' ही नहीं है जनगणना? समझें क्या होता है असर
देश
• NEW DELHI 11 Feb 2025, (अपडेटेड 11 Feb 2025, 4:23 PM IST)
कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी ने जनगणना में देरी को लेकर केंद्र सरकार से सवाल किया है। ऐसे में जानते हैं कि जनगणना क्यों जरूरी है? और देरी का असर क्या होता है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)
कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी ने सोमवार को राज्यसभा में केंद्र सरकार से जनगणना को लेकर सवाल किया। उन्होंने कहा, 'आजाद भारत के इतिहास में ये पहली बार है जब जनगणना में 4 साल से ज्यादा समय की देरी हो चुकी है। इसे 2021 में किया जाना था। मगर, अब जनगणना के बारे में कुछ साफ नहीं है कि ये कब होगी?'
सोनिया गांधी ने कहा, 'सितंबर 2013 में यूपीए सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लेकर आई थी, ताकि देश के सभी नागरिकों को खाद्य सुरक्षा मिल सके। इसने लाखों लोगों को भुखमरी से बचाया। खासतौर पर कोविड में।'
उन्होंने कहा, 'कानून के तहत, गांवों की 75 फीसदी और शहर की 50 फीसदी आबादी सब्सिडी वाले अनाज पाने की हकदार है। हालांकि, लाभार्थियों की संख्या अब भी 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर तय होती है।' सोनिया ने कहा कि जनगणना में देरी से 14 करोड़ लोगों को मिलने वाले लाभ से वंचित किया जा रहा है।
मगर अटक क्यों रही है जनगणना?
इसका कारण है कोविड। देश में जनगणना करवाने का काम केंद्रीय गृह मंत्रालय का है। पिछले साल 6 फरवरी को गृह मंत्रालय ने संसद में बताया था, '2021 की जनगणना के लिए 28 मार्च 2019 को नोटिफिकेशन जारी किया गया था। जनगणना दो हिस्सों में होनी थी। पहले हिस्से में अप्रैल से सितंबर 2020 के बीच घरों की गिनती होगी। दूसरे हिस्से में 9 से 28 फरवरी 2021 के बीच लोगों की गिनती होगी। हालांकि, कोविड के कारण जनगणना नहीं हो सकी।'
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जनगणना क्यों जरूरी?
भारत में 1881 से जनगणना हो रही है। उसके बाद से हर 10 साल में जनगणना होती है। आखिरी बार 2011 में जनगणना हुई थी। जनगणना सिर्फ लोगों की गिनती नहीं होती। बल्कि इसी से सरकारों को लोगों के लिए नीतियां और योजनाएं बनाने में मदद मिलती है।
पता चलता है कि देश की करोड़ों की आबादी किस हालत में जी रही है। समाज में कितने लोग सक्षम हैं और कितने लोग वंचित हैं? जमीनी स्तर के आंकड़े सामने आते हैं। जिन घरों में लोग रह रहे हैं, उनकी स्थिति कैसी है? लोगों के पास कितनी संपत्तियां हैं? लोगों का शिक्षा का स्तर कितना है? कितने लोग अपना घर छोड़कर दूसरी जगह जा रहे हैं?
जनगणना से जो आंकड़ें निकलकर सामने आते हैं, उससे सरकारें नीतियां और योजनाएं बनाती हैं। उदाहरण के लिए, जनगणना से निकलकर आया कि बुजुर्गों की आबादी बढ़ गई है और ज्यादातर बुजुर्ग मुश्किल हालात में जी रहे हैं तो उनके लिए नीतियां और योजनाएं तैयार होती हैं।
जनगणना से क्या-क्या पता चलता है?
- किस राज्य की कितनी आबादी है? महिला और पुरुषों की आबादी कितनी है? किस उम्र की कितनी आबादी है?
- किसके पास जमीन-जायदाद की कितनी हिस्सेदारी है? समाज के किस वर्ग के सबसे ज्यादा या सबसे कम संपत्ति है?
- सरकारी नौकरियों, निजी व्यवसाय या रोजगार में समाज के किस वर्ग की कितनी हिस्सेदारी है?
- समाज के अलग-अलग वर्ग और धर्म में शिक्षा का स्तर क्या है? किस राज्य की कितनी आबादी पढ़ी-लिखी है?
- किस समाज के कितने लोग दूसरे राज्य या दूसरे देशों में रह रहे हैं? माइग्रेशन की वजह क्या है?
होता क्या है इन आंकड़ों से?
जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल सरकारों को नीतियां और योजनाएं बनाने में करती हैं। जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही इन नीतियों और योजनाओं को लागू किया जाता है। आंकड़े होते हैं तो सरकार की नीतियों और योजनाएं से समाज का कोई वर्ग वंचित नहीं रहता।
उदाहरण के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (NFSA) को ही लें। ये कानून कहता है कि देश की 67% आबादी पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (PDS) से जुड़ी योजनाओं की हकदार है। इसी आधार पर 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है। अब अगर जनगणना हो तो ये आंकड़ा बढ़ जाएगा।
वो कैसे? आधार कार्ड जारी करने वाली संस्था UIDAI के आंकड़ों के मुताबिक, दिसंबर 2024 तक देश की अनुमानित आबादी 140 करोड़ है। अगर इस आबादी के 67% लोगों को PDS का हकदार माना जाए तो लगभग 94 करोड़ लोगों को सस्ता अनाज और मुफ्त राशन का लाभ मिलेगा।
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और किसलिए जरूरी है जनगणना?
जनगणना के आंकड़ों का कई जगहों पर इस्तेमाल होता है। गांव, शहर और वार्ड लेवल तक का डेटा इससे मिलता है। महिलाओं को लोकसभा और विधानसभा में 33 फीसदी आरक्षण वाला कानून भी जनगणना के बाद ही लागू होगा। इतना ही नहीं, लोकसभा सीटों का परिसीमन भी होना है और वो भी जनगणना के बाद ही होगा।
क्या इस साल होगी जनगणना?
इस साल भी जनगणना होने की उम्मीद नहीं है। वो इसलिए क्योंकि जनगणना का बजट और कम हो गया है। दिसंबर 2019 में मोदी कैबिनेट ने 2021 की जनगणना के लिए 8,754.23 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी। इसके अलावा 3,941.35 करोड़ रुपये नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) के लिए दिए थे।
2021-22 के बजट में केंद्र सरकार ने जनगणना के लिए 3,768 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। 2025-26 के बजट में जनगणना के लिए 574.80 करोड़ रुपये का ही प्रावधान किया गया है। इसलिए माना जा रहा है कि इस साल भी जनगणना होने की उम्मीद नहीं है।
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