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महुआ बीनने वाले मुकेश चंद्राकर पत्रकार कैसे बने? पढ़िए पूरी कहानी

हाल ही में छत्तीसगढ़ के एक पत्रकार की हत्या कर दी गई। मुकेश चंद्राकर एक पत्रकार थे जो कुछ दिनों से एक ठेकेदार के निशाने पर थे। पढ़िए उनकी पूरी कहानी।

mukesh chandrakar

मुकेश चंद्राकर, Photo Credit: Mukesh FB Account

बीजापुर से बासागुड़ा की यात्रा के दौरान, इमली के घने पेड़ों के पीछे मुकेश ने इशारा किया। वहां एक खंडहर था। छत टूट चुकी थी। दीवारें छड़ रही थीं। मुकेश ने कहा, ये मेरा घर है। मुकेश की आवाज शांत थी लेकिन इतिहास का बोझ साफ झलक रहा था। 1993 में मुकेश इसी बासागुड़ा में जन्मे थे। 1995 में उनके पिता की मौत हो गई और मां ने आंगनबाड़ी में काम करना शुरू कर दिया। मुकेश बताते थे कि बचपन में हम बिना किसी डर के खुलेआम जंगलों में घूमते थे। खेलते थे। मछलियां पकड़ते थे लेकिन धीरे-धीरे माहौल खराब होने लगा।

 

2005 में जब सलवा जुडूम ने बस्तर में आतंक मचाया। तब आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले मुकेश ने अपनी आंखो से, अपने ही गांव को बर्बाद होते देखा। जिस नदी में मछलियां पकड़ते थे, वहां जाने की मनाही हो गई और फिर एक दिन नदी के साथ-साथ घर से भी नाता टूट गया। क्योंकि दूसरे घरों के साथ ही मुकेश के घर को भी तोड़ दिया गया था। साथी पत्रकारों को मुकेश बताते थे कि उस वक्त ग्रामीण सलवा जुडूम और नक्सलियों के बीच पिस रहे थे। नक्सलियों से बात करने पर सलवा जुडूम के नेता पीटते। और सलवा जुडूम का साथ देने पर नक्सली जान से मार देते।

क्या है सलवा जु़डूम?

 

सलवा जुडूम एक गोंडी शब्द है। हिंदी में इसका मतलब होता है शांति मार्च। बस्तर टाइगर नाम से मशहूर नेता, महेंद्र कर्मा ने जून 2005 में बस्तर में इसकी शुरुआत की थी। मकसद नक्सलियों के खिलाफ ग्रामीणों को तैयार करना था। सलवा जुडूम पर ग्रामीणों के साथ मारपीट करने और गांवों को उजाड़ने के कई आरोप लगे। 5 जुलाई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम को अवैध घोषित कर दिया।

 

गांव का घर उजड़ने के बाद मुकेश अपने भाई यूकेश के साथ सलवा जुडूम कैंप में रहने चले गए। मां से दूर। मुकेश बताते थे कि कैंप में खाना बहुत खराब था। राशन में कीड़े निकलते। मां से सिर्फ चिट्ठियों के जरिए बात होती। 2 साल बाद जब वो मां से मिले तो मां उन्हें आधे घंटे तक गले लगा कर रोती रही। मुकेश के बचपन के दोस्त विजय मोरला बताते हैं कि हम सब मिलकर महुआ इकट्ठा करते और जिंदगी बेहतर बनाने का सपना देखा करते। मुकेश हमेशा करते थे कि महुआ बीनना उनके लिए खुशी का काम नहीं था, मजबूरी थी, ताकी पेट पाला जा सके।

जब नक्सलियों ने दोस्त को पीटा

 

साथी पत्रकार बताते हैं कि मुकेश अक्सर अपनी मां की बहादुरी की बातें करते थे। मुकेश ने एक किस्सा बताया था। कैसे एक बार मुकेश के भाई यूकेश और दोस्त टिक्कू के पुलिस में भर्ती होने की अफवाह गांव में फैली। नक्सलियों ने दोनों को जन अदालत में पेश होने का फरमान सुनाया। यूकेश था नहीं तो मां खुद नक्सलियों के सामने खड़ी होकर उसके जान की भीख मांगने लगी थी। टिक्कू को नक्सलियों ने बेतहाशा पीटा था लेकिन उसकी मां की हिम्मत ने यूकेश की जान बचा ली थी।

 

2011 में मुकेश के मां की कैंसर से मौत हो गई। मां की अंतिम इच्छा थी। पति के बगल में उन्हें दफनाया जाए और उनके घर की छत का एक टुकड़ा कब्र के पास रखा जाए। ये मुकेश के समुदाय की एक परंपरा है। मुकेश ने छत के टुकड़े की तलाश में अपने घर के खंडहर में घंटों बिताए। आखिरी में एक टुकड़ा लेकर पहुंचे। साथी पत्रकार से बोले, मुझे नहीं पता कि ये हमारा है या किसी और का, लेकिन मुझे अपनी मां की अंतिम इच्छा पूरी करनी थी। मुकेश ने कैंप में रहकर भी वो चीज हासिल की जो वहां किसी लग्जरी से कम नहीं थी। वो थी शिक्षा। साथी पत्रकार विकास तिवारी बताते हैं कि एक बार जिला कलेक्टर ने मुकेश से पूछा, क्या आप कलेक्टर बनने की योजना तो नहीं बना रहे, तब मुकेश ने कहा था, कलेक्टर बनने की दौड़ में पत्रकार बन गया।

नक्सलियों से जवान को छुड़ाकर लाए थे मुकेश

 

महुआ बीनते और गैराज में काम करते करते मुकेश पत्रकार बने थे। करीब एक दशक तक उन्होंने स्थानीय रीजनल चैनलों के लिए काम किया। काफी कम सैलरी पर। एक स्टोरी के लिए उन्हें 150 से 250 रुपए तक ही मिला करते। लेकिन मुकेश जोखिम लेने से कभी पीछे नहीं हटे। दिल्ली से बीजापुर आने वाले हर पत्रकार का ठिकाना मुकेश का घर होता। साथी पत्रकार प्यार से मुकेश के घर को चंद्राकर धर्मशाला कहते थे। बारिश में उफनते नदी नाले की बीच रिपोर्टिंग हो। नक्सल अटैक की सटीक जानकारी हो। मारे गए आदिवासियों की सच्चाई हो। या फिर बस्तर के स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण का मुद्दा हो। मुकेश ने खुल कर इन मामलों की रिपोर्टिंग की। 2021 में नक्सल अटैक के बाद बंधक बनाए जवान को मुकेश छुड़ा लाए थे।

 

 

2 अप्रैल 2021। बीजापुर-सुकमा के जंगलों में हमेशा की तरह CRPF के जवान सर्चिंग के लिए निकलते हैं लेकिन उस रात घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने जवानों पर अटैक कर दिया। इस हमले में 23 जवान शहीद हो जाते हैं। जबकि एक जवान राकेश्वर सिंह को नक्सली किडनैप कर लेते हैं। कई दिनों तक बातचीत चलती है। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलता है। घटना के छठवें दिन मुकेश और एक साथी रिपोर्टर गणेश मिश्रा जंगल जाते हैं। फिर आती है ये वीडियो। मुकेश बाइक चला रहे होते हैं और किडनैप हुए जवान उनके पीछे बैठे होते हैं। उन लोगों ने जवान को नक्सलियों के चंगुल से आजाद करा लिया था। आज भी मुकेश के एक्स हैंडल पर ये वीडियो पिन किए हुए सबसे ऊपर दिखाई देता है।

 

देशभर की मीडिया में इस उपबल्धि की खूब चर्चा हुई थी लेकिन कहीं न कहीं मुकेश इस घटना के बाद परेशान थे। कारण क्रेडिट न मिलना। इंडियन एक्सप्रेस में आशुतोष भारद्वाज ने मुकेश के साथ बिताए पलों पर एक लेख पब्लिश की है। जिसमें इस उपबल्धि के बाद मुकेश से हुई बातचीत का उन्होंने जिक्र किया है। मुकेश उनसे कहते हैं कि गणेश मिश्रा और मैंने उस कमांडो को नक्सलियों के चुंगल से बचाया था। नेशनल मीडिया जुटी हुई थी और सभी हमारी बाइट ले रहे थे लेकिन मेरे अपने चैनल पर मेरे संपादक और एंकर ने पूरी स्क्रीन घेर ली। मुझे कोई क्रेडिट नहीं दिया गया।

अपना चैनल क्यों खोला?

 

मुकेश जहां से रिपोर्टिंग करते थे। वहां सैलरी तो कम थी ही लेकिन जोखिम के बीच खबरें खोज कर निकालने के बावजूद पहचान नहीं मिलती थी। जवान को छुड़ाने वाली घटना के करीब 2 महीने बाद 11 मई 2021 को मुकेश ने अपना खुद का यूट्यूब चैनल खोल लिया। बस्तर जंक्शन। इससे उन्हें बाइलाइन के व्हाइटवॉश होने का डर खत्म हो गया। मुकेश दूर-दूर गांव तक जाते, ग्रामीणों की, आदिवासियों की असली स्टोरी खोज कर निकालते।

 

मई 2021 में ही हुई सिलगेर की घटना की रिपोर्टिंग करने वाले मुकेश पहले रिपोर्टर्स में से एक थे। पुलिस कैंप के विरोध में बड़ी संख्या में आदिवासी प्रदर्शन कर रहे थे। जिनके ऊपर सुरक्षा बलों ने गोलियां चला दी थीं। इस गोलीबारी में 3 आदिवासियों की मौत हुई। मुकेश ने खुल कर इस घटना की रिपोर्टिंग की।

 

बस्तर टॉकीज के नाम से यूट्यूब चैनल चलाने वाले और एक फ्रीलांस जर्नलिस्ट, रानू तिवारी बताते हैं कि मुकेश उनके कॉपी पेस्ट थे। मुझसे कहता था कि मैं आपकी ही तरह रिपोर्टिंग करूंगा। गमछा रखना, कमर पर हाथ रखकर रिपोर्टिंग करना, ये सब उसने मुझे देखकर ही शुरू किया। बीजापुर में मेरा अंतिम ठिकाना मुकेश का घर ही होता था। मैं उसके घर को अपने लिए चंद्राकर धर्मशाला कहता।

 

छत्तीसगढ़ के स्थानीय पत्रकार देवेश तिवारी बताते हैं कि बीजापुर से जुड़ी किसी भी खबर को लेकर मुझे सबसे पुख्ता जानकारी मुकेश चंद्राकर से ही मिलती थी। चाहे जंगल के अंदर के इलाके में कोई घटना हो जाए या नक्सली भीतर से कोई संदेश दें। वो सब अपने सच्चे रूप में मुकेश के जरिए ही निकलती थी। मुठभेड़ सच्ची है या पुलिस द्वारा प्लांटेड, ये भी मुकेश को पता होता था।

 

मुकेश फ्रीलांसर के तौर पर NDTV के लिए काम कर रहे थे। उनकी आखिरी रिपोर्ट 24 दिसंबर 2024 को छपि। जिसमें उन्होंने साथी रिपोर्टर के साथ मिलकर सड़क के घटिया निर्माण को उजागर किया था। गंगालूर से नेलशनार तक 52 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई जा रही थी। जिसमें 40 किलोमीटर का काम पूरा कर लिया गया था। मुकेश ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कैसे बन चुकी सड़क में 1 किलोमीटर के अंदर 35 गड्ढे मौजूद थे। साथ ही बिना अनुमति के पहाड़ी काटकर इस्तेमाल करने का मामला भी उठाया था। इस रिपोर्ट के बाद PWD विभाग ने ठेकेदार को नोटिस जारी किया। इस सड़क का ठेका करीब 120 करोड़ रुपए का बताया जा रहा है। ठेका बीजापुर के स्थानीय ठेकेदार सुरेश चंद्राकर ने उठाया था।

मुकेश के साथ क्या हुआ?

 

1 जनवरी की शाम मुकेश को आखिरी बार देखा गया। मुकेश के भाई यूकेश जो खुद मीडिया में काम करते हैं। उन्होंने पुलिस में लापता होने की शिकायत दर्ज कराई। यूकेश ने बीबीसी रिपोर्टर आलोक पुतुल को बताया कि "मैं और मुकेश अलग-अलग रहते हैं। नए साल की पहली तारीख की शाम को मेरी मुकेश से अंतिम मुलाकात हुई। अगले दिन सुबह मुकेश अपने घर में नहीं था और उसका फोन भी बंद था तो मैंने उसकी जान-पहचान के लोगों को फोन लगाना शुरू किया। लेकिन उसका कहीं पता नहीं चल पाया। इसके बाद शाम को मैंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई।"

 

यूकेश ने दावा किया है कि ठेकेदार सुरेश चंद्राकर 1 जनवरी की शाम भाई से मिलने वाले थे। सुरेश चंद्राकर इनके करीबी रिश्तेदार भी हैं। यूकेश ने बीबीसी से कहा कि भाई के लापता होने के बाद हमने उनके लैपटॉप पर मोबाइल का अंतिम लोकेशन देखा तो वो ठेकेदार दिनेश चंद्राकर, सुरेश चंद्राकर और रितेश चंद्राकर के मजदूरों के लिए बनाए गए कैंपस में नजर आ रहा था। यूकेश की शिकायत पर पुलिस ने जांच शुरू की। मुकेश के मोबाइल का आखिरी लोकेशन मिला चट्टान पारा बस्ती में मौजूद ठेकेदार के मजदूर आवास पर। पुलिस ने वहां खोजबीन शुरू की। बस्तर आईजी पुलिस, सुंदरराज पी ने बताया कि खोजबीन के दौरान वहां एक ताजा कंक्रीट की ढलाई नजर आई। पता चला की ये पुराना सेप्टिक टैंक है। जिसके ढक्कन को बंद करके दो दिन पहले ही कंक्रीट की ढलाई की गई है। पुलिस ने शक के आधार पर जेसीबी बुलाकर ढ़लाई को तोड़ा तो अंदर पानी में मुकेश चंद्राकर का तैरता हुआ शव मिला। उसके शव पर चोट के गहरे निशान थे।

 

मुकेश चंद्राकर की हत्या की बात सामने आते ही मीडिया में कोहराम मच गया। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज तक सब एक दूसरे पर आरोप मढ़ने लगे। स्थानीय पत्रकारों ने आरोप लगाया ठेकेदार पर। कहा सड़क की रिपोर्टिंग की तो ठेकेदार ने हत्या कर दी। 6 जनवरी को ही मुकेश चंद्राकर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आई है। जो हत्या की भयावहता को बता रही है। मुकेश के सिर पर चोट के 15 निशान मिले हैं। माथे पर कई इंच गहरा गड्ढा है। लीवर के चार टुकड़े कर दिए गए हैं और 5 पसली टूट गई है। गर्दन की हड्डी टूटी हुई है और हार्ट भी फट चुका है।

अब तक केस में क्या हुआ?

 

मुकेश की लाश मिलने के बाद पुलिस ने आनन फानन में तीन गिरफ्तारियां की। ठेकेदार सुरेश चंद्राकर फरार हो गया। वन विभाग की जमीन में बने उसके अवैध ठिकाने पर बुलडोजर चलाया गया। 6 जनवरी को पुलिस ने सुरेश चंद्राकर को हैदराबाद से गिरफ्तार कर लिया है। हालांकि अभी हत्या के आरोप तय नहीं हुए हैं। पुलिस और जांच कर रही है और साक्ष्य जुटा रही है। इन सब के बीच सबसे ज्यादा सुर्खियों में है ठेकेदार सुरेश चंद्राकर का नाम। जिसे बीजेपी नेता कांग्रेस का कैशियर बता रहे हैं। सुरेश चंद्राकर कौन हैं ये जान लेते हैं। सुरेश चंद्रकार बस्तर में सरकारी निर्माण कार्यों और माइनिंग से जुड़े बड़े ठेकेदारों में शुमार है। वो छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के राज्य उपाध्यक्ष भी हैं। कुछ महीनों पहले हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें नवापुर विधानसभा का आब्जर्वर भी बनाया था।

 

सुरेश चंद्राकर बेहद गरीब परिवार में बड़े हुए। सलवा जुड़ूम के दौरान वो इसमें शामिल हुए और इसके नेता के तौर पर उभरे। यहीं से उसकी छोटी मोटी ठेकेदारी भी शुरू हुई। पिछले कुछ सालों में वो नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क निर्माण के सरकारी ठेके लेने वाले सबसे बड़े ठेकेदारों में से एक बन गए हैं। 40 साल के सुरेश पहली बार 23 दिसंबर 2021 में अपनी शादी को लेकर चर्चा में आए थे। जब उन्होंने आदिवासी बाहुल और बिलकुल पिछड़े क्षेत्र में ऐसी शादी की थी जो बड़े-बड़े शहरों में देखने को नहीं मिलती। उन्होंने हेलीकॉप्टर से अपनी बारात निकाली थी। शादी में नाच गाने के लिए रशियन डांसर्स बुलाई गई थीं। शादी के अगले दिन बीजापुर स्टेडियम में दावत दी गई थी। कहा जाता है कि बस्तर में इससे पहले ऐसी शाही शादी किसी ने नहीं देखी थी। इस शादी की तस्वीरें और वीडियोज सोशल मीडिया में खूब वायरल हुए थे।

 

मुकेश की इस स्टोरी से हमें क्या समझ में आता है? यही की रिपोर्टिंग के लिए हत्या की जा सकती है। देश में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां सच्चाई उजागर करने वाले पत्रकारों की हत्या कर दी गई। ऐसी खबरें देख कर, पढ़ कर, सुन कर लोगों का खून खौलता है, लेकिन कई बार ये दूसरे पत्रकारों को हतोत्साहित भी करती है। आज पत्रकारों के ऊपर जब राजनीतिक पक्ष लेने के आरोप लगते हैं, उन सब के बीच मुकेश जन उत्थान की खबरें किया करते थे। उनके चैनल बस्तर जंक्शन में जो आखिरी वीडियो उन्होंने पब्लिश की थी। उसमें भी वो आदिवासी युवक के नक्सलियों द्वारा अपहरण कर हत्या करने की जानकारी दे रहे थे। बता रहे थे कि कैसे माओवादियों ने आदिवासी को मुखबिर करार दे कर मार डाला। मुकेश कभी कीचड़ भरी सड़क पर जाते तो कभी लकड़ी के पटरों से ग्रामीणों द्वारा बनाए पुल की खबर लाते। लेकिन अब वो इस दुनिया में नहीं है। मुकेश की खबरें याद आएंगी।

 

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