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दुश्मन पर 24x7 नजर, आसमान से चलेगी जासूसी, एयरशिप भारत का गेम-चेंजर

DRDO ने मध्य प्रदेश के श्योपुर ट्रायल साइट से ‘स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म’ का पहला सफल फ्लाइट ट्रायल किया। भारत के लिए यह कैसे गेम-चेंजर साबित होगा, आइये समझें।

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स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप, Photo Credit: X/@DRDO_India

भारत ने रक्षा तकनीक के क्षेत्र में एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है। शनिवार को देश में पहली बार स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म की उड़ान का टेस्ट सफल रहा। इस खास तकनीक से अब सेना दुश्मनों पर और बेहतर नजर रख सकेगी। दुनिया के कुछ ही देशों के पास ऐसी एडवांस्ड तकनीक मौजूद है। ऐसे में स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप भारतीय सेना के लिए एक गेम-चेंजर कैसे साबित होगा, आइये समझते है। 

 

स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप आसमान से निगरानी और युद्ध की रणनीति को पूरी तरह बदल सकती है। दरअसल, यह एक खास तरह का गु्ब्बारा जैसा यान है, जो 17 किमी ऊंचाई (स्ट्रैटोस्फेयर) तक उड़ सकता है। इसमें कैमरे, सेंसर और संचार उपकरण लगे हैं, जो दुश्मन की हर हरकत पर नजर रख सकते हैं। इसे डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) ने लॉन्च किया है और इसका पहला टेस्ट 3 मई को मध्य प्रदेश में हुआ। इसे आगरा स्थित एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट ने तैयार किया है। 

 

भारतीय सेना के लिए कैसे फायदेमंद?

दुश्मन पर 24/7 नजर रखेगा
यह एयरशिप लंबे समय तक हवा में रह सकती है, जैसे कई घंटे या दिन। सैटेलाइट या ड्रोन जल्दी थक जाते हैं लेकिन यह नहीं। भारत-पाक सीमा, खासकर कश्मीर में, जहां हाल में आतंकी हमले हुए, वहां यह घुसपैठ, आतंकियों या हथियारों की हलचल को पकड़ सकती है। उदाहरण के लिए अगर पाकिस्तान की तरफ से कोई संदिग्ध गतिविधि हो, तो यह तुरंत तस्वीरें और वीडियो भेजेगी। 

 

सस्ता और ताकतवर
ड्रोन या सैटेलाइट के मुकाबले इसे बनाना और चलाना सस्ता है। यह एक बार में बहुत बड़ा इलाका देख सकती है, जैसे पूरी LOC पर नजर रख सकती है। इससे सेना को कम खर्च में ज्यादा जानकारी मिलेगी। 

 

युद्ध में तेज मदद
यह एयरशिप दुश्मन के रेडियो सिग्नल या मैसेज पकड़ सकती है, जिससे सेना को पता चलेगा कि दुश्मन क्या प्लान कर रहा है। अगर कश्मीर में कोई हमला हो, तो यह तुरंत सेना को सही जगह पर भेजने में मदद करेगी। यह रियल-टाइम जानकारी देगी, जिससे सेना तेजी से जवाब दे सकती है। 

 

आपदा में भी काम आएगी
बाढ़, भूकंप या जंगल में फंसे सैनिकों को ढूंढने में यह मदद करेगी।  यह हवा से तस्वीरें लेगी और राहत टीमें सही जगह पर पहुंच सकेंगी। यह एयरशिप सीमा पर हर गतिविधि को देखकर सेना को तुंरत जवाबी कार्रवाई करने में मदद करेगी। यह पाकिस्तान की हर चाल को पकड़ लेगी, जैसे हथियारों की तस्करी या आतंकी घुसपैठ।

 

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क्यों है गेम-चेंजर?

पुराने तरीकों जैसे गश्त या छोटे ड्रोन से ज्यादा इलाका और ज्यादा समय तक देख सकती है। पाकिस्तान को नहीं पा होगा कि भारत इतनी ऊंचाई से उसकी हर हरकत पर नजर रख रहा है। एयरशिप युद्ध की जानकारी तुरंत देगी। बता दें कि दुनिया में कुछ ही देशों के पास यह तकनीक है। भारत का इसे बनाना देश को रणनीतिक तौर पर मजबूत करता है। हालांकि, इसके साथ कई चुनौतियां भी सामने आ सकती है जैसे तेज हवा या तूफान इसकी उड़ान को मुश्किल कर सकता है। इसे बनाने और तैनात करने में पैसा लगेगा लेकिन लंबे समय में यह सस्ता है। 

 

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किन देशों के पास है स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप तकनीक?

स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप तकनीक बहुत कम देशों के पास है क्योंकि यह जटिल, महंगी और तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है। अमेरिका इस तकनीक में सबसे टॉप पर है। Aerostar ने 1969 में पहली बार स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप, High Platform II, को 70,000 फीट (21 किमी) की ऊंचाई पर 2 घंटे तक उड़ाया था। 2005 में Southwest Research Institute (SwRI) और Aerostar ने HiSentinel एयरशिप को 74,000 फीट (23 किमी) पर उड़ाया, जो 30-90 दिनों तक निगरानी के लिए डिज़ाइन की गई थी। अमेरिका में नासा और निजी कंपनियां जैसे Worldwide Aeros और LTA Research इस तकनीक पर काम कर रही हैं। 

 

फ्रांस का Stratobus प्रोजेक्ट: Thales Alenia Space ने फ्रांसीसी सरकार के Direction Générale de l’Armement (DGA) के साथ मिलकर Stratobus एयरशिप विकसित की, जो 20 किमी ऊंचाई पर निगरानी और संचार के लिए डिज़ाइन की गई है। इसका प्रोटोटाइप 2023 में उड़ान के लिए तैयार था।

 

जापान के Japan Aerospace Exploration Agency (JAXA) ने 2004 में होक्काइडो के ताइकी में स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप का परीक्षण किया। JAXA और IHI Aerospace ने सौर-शक्ति और रीजेनरेटिव फ्यूल सेल (RFC) तकनीक पर काम किया, जो लंबी अवधि की उड़ानों के लिए ऊर्जा भंडारण में सुधार करता है।

 

2002 में दक्षिण कोरिया की Korea Aerospace Research Institute ने अमेरिकी कंपनी Worldwide Aeros के साथ मिलकर स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप का प्रदर्शनकारी मॉडल विकसित किया। यह प्रोजेक्ट सैन्य और नागरिक दोनों उद्देश्यों के लिए था लेकिन व्यापक परिचालन की जानकारी सीमित है।

 

यूनाइटेड किंगडम ने सौर-शक्ति से चलने वाली स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप डिज़ाइन की, जो 3-5 साल तक 500 किग्रा पेलोड ले जा सकती है। यूके में प्रोटोटाइप विकास हुआ लेकिन कोई परिचालन मॉडल अभी तक तैनात नहीं है।

 

चीन की China Aerospace Science and Technology Corporation ने 2017 में सौर-शक्ति से चलने वाले UAV का 65,000 फीट (20 किमी) पर 15 घंटे का परीक्षण किया। यह स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप तकनीक से संबंधित है।

 

रूस
LA-252 UAV: Lavochkin Design Bureau ने 100 दिनों तक स्ट्रैटोस्फेयर में रहने वाले सौर-शक्ति से चलने वाले UAV का परीक्षण किया। यह तकनीक स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप से मिलती-जुलती है।


भारत की एंट्री
3 मई 2025 को Aerial Delivery Research and Development Establishment (ADRDE), आगरा ने 17 किमी ऊंचाई पर 62 मिनट तक स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप का सफल परीक्षण किया।

 

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