वक्फ कानून को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी नोटिस भेजा है। मंगलवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को पहले दायर की गई याचिकाओं के साथ टैग कर दिया है। वक्फ (संशोधन) कानून, 1995 को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में पहले ही दायर की जा चुकी हैं।
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ए जी मसीह की बेंच ने की। याचिका निखिल उपाध्याय की ओर से दायर की गई थी। निखिल उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय सुप्रीम कोर्ट में पेश हुआ। मामले की सुनवाई शुरू होते ही CJI गवई ने अश्विनी उपाध्याय से पूछा कि आखिर इस कानून को क्यों चुनौती दी जा रही है?
यह भी पढ़ें- 'हम भिखारी नहीं जो सपा से भीख मांगें,' इमरान मसूद ने क्यों कहा?
CJI ने 30 साल की देरी पर उठाए सवाल
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई शुरू होते ही CJI बी आर गवई ने कहा, 'इस याचिका को देरी के आधार पर खारिज किया जा सकता है। आप 1995 में आए कानून को 2025 में चुनौती दे रहे हैं। इसे अब क्यों स्वीकार किया जाना चाहिए?'
इस पर अश्विवी उपाध्याय ने जवाब दिया, '2013 में हुए संशोधन को भी चुनौती दी गई थी।' CJI ने इस पर कहा कि तब भी 12 साल लंबा समय है। इस पर अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट 1991 और नेशनल माइनॉरिटी कमीशन ऐक्ट 1992 को साल 2020-21 में चुनौती दी गई और सुप्रीम कोर्ट इन पर सुनवाई कर रहा है।
यह भी पढ़ें- कौन हैं वे लोग जिन्होंने मुशर्रफ के बाप-दादाओं की प्रॉपर्टी खरीद ली?
अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि कोर्ट ने साल 2025 में वक्फ कानून में हुए संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका के साथ इसकी सुनवाई की अनुमति नहीं दी थी। उन्होंने यह भी कहा कि इस पर कोई आपत्ति नहीं है कि वक्फ कानून, 1995 को चुनौती देने वाली याचिका को अन्य याचिकाओं के साथ टैग कर दिया जाए। इसके बाद इस बेंच ने नोटिस जारी कर दिया और इस याचिका को बाकी याचिकाओं के साथ टैग कर दिया।
यह भी पढ़ें-- मौसम का अंदाजा लगाने वाला ऐसा सिस्टम जो सिर्फ भारत ने बनाया
क्यों दायर की है याचिका?
याचिकाकर्ता का कहना है कि सिर्फ मुस्लिम ही हैं जिनके पास उनकी चैरिटेबल संपत्तियों के प्रबंधन का अधिकार है, बाकी धर्मों के लोगों को यह अधिकार नहीं है इसलिए वक्फ कानून 1995 भेदभाव पैदा करता है। याचिकाकर्ता ने वक्फ कानून, 1995 की धारा 3 (4), 4, 5, 6(1), 7(1), 8, 28, 28, 33,36, 41, 52, 83, 85, 89 और 101 की संवैधानिक वैधता को ही चुनौती दे डाली है।