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अल्पसंख्यक संस्थान और RTE कानून का मामला क्या है? समझिए

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को शिक्षा का अधिकार कानून (RTE) से बाहर रखे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले पर सवाल उठाए हैं। क्या है यह मामला? समझते हैं।

supreme court rte act

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

9 साल पहले 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि शिक्षा का अधिकार कानून या राइट टू एजुकेशन ऐक्ट (RTE) अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों पर लागू नहीं हो सकता है। अब इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट फिर से विचार करेगा। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि RTE सभी अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू होना चाहिए, चाहे उन्हें सरकार से कोई मदद मिल रही हो या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे लेकर 2014 में जो फैसला दिया गया था, शायद वह 'गलत' था।


जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने कहा कि 2014 के फैसले ने अनजाने में जरूरी शिक्षा की नींव को कमजोर किया है। कोर्ट ने इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजा है, ताकि 2014 के फैसले पर दोबारा विचार किया जा सके। 


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2014 के फैसले को चीफ जस्टिस बीआर गवई के सामने रखा जाए, ताकि एक बड़ी बेंच का गठन हो और इस पर दोबारा विचार किया जा सके।

 

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क्या है पूरा मामला?

2009 में RTE ऐक्ट लागू हुआ था। इसे इसलिए लागू किया गया था, ताकि 6 से 14 साल के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिल सके।


कानून के तहत, सभी स्कूलों को 25% सीटें गरीब और वंचित वर्ग के लिए आरक्षित रखना जरूरी है। बच्चों के लिए किताबें, यूनिफॉर्म और पढ़ाई-लिखाई का सारा खर्च सरकार देती है।


2014 में प्रमित एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने फैसला दिया था कि RTE ऐक्ट अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर लागू नहीं होता। कोर्ट ने कहा था कि ऐसे सभी शैक्षणिक संस्थान, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों की ओर से स्थापित किया गया है और संचालित किया जाता है, उन पर RTE ऐक्ट लागू नहीं होगा। 


कोर्ट ने RTE ऐक्ट से अल्पसंख्यक संस्थानों को पूरी तरह छूट देते हुए कहा था कि इसे इन पर लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह संविधान के खिलाफ होगा।

 

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अब कैसे उठा यह मामला?

सुप्रीम कोर्ट में कई सारी याचिकाएं दायर हुई थीं। RTE कानून के तहत, स्कूलों में पढ़ाने के लिए शिक्षकों का टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) पास करना जरूरी है। 


अदालत के सामने दो बड़े सवाल थे। पहला- क्या 29 जुलाई 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों को भी प्रमोशन के लिए TET पास करना जरूरी है? और दूसरा- क्या अल्पसंख्यक संस्थान TET पास करने पर जोर दे सकते हैं?


सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा कि स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को TET पास करना जरूरी होगा। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने कहा कि जिन टीचर्स के रिटायर होने में 5 साल से कम समय बचा है, उन्हें TET पास करना जरूरी नहीं है। हालांकि, अगर ऐसे टीचर्स प्रमोशन चाहते हैं तो उन्हें TET पास करना होगा। 


कोर्ट ने यह भी कहा कि जिन टीचर्स के रिटायर होने में 5 साल से ज्यादा समय बाकी है, उन्हें दो साल के भीतर TET पास करना होगा। अगर कोई शिक्षक TET पास नहीं कर पाता है तो उसे नौकरी छोड़नी होगी या रिटायरमेंट लेना पड़ेगा। 

 

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अल्पसंख्यक संस्थानों के मामले पर क्या?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 2014 में प्रमति केस में जो फैसला दिया था, वह शायद सही नहीं था। कोर्ट ने इस फैसले पर दोबारा विचार करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि RTE ऐक्ट सभी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर लागू होना चाहिए, चाहे उन्हें सरकार से मदद मिलती है या नहीं।

  • कोर्ट ने कहा कि इस बात पर संदेह है कि प्रमति केस में अल्पसंख्यक संस्थानों को जो RTE कानून से छूट मिली थी, वह सही फैसला था या नहीं।
  • कोर्ट ने कहा कि अगर अल्पसंख्यक संस्थानों को पूरी तरह छूट दी गई तो इस बात की आशंका है कि इससे अनुच्छेद 30(1) का दुरुपयोग हो सकता है।
  • अदालत ने अपने फैसले में यह भी साफ कहा कि अनुच्छेद 21(A) (शिक्षा का अधिकार) और 30(1) (अल्पसंख्यक संस्थानों का अधिकार) आपस में टकराते नहीं हैं। 
  • कोर्ट ने कहा कि RTE ऐक्ट के तहत जो 25% सीटें गरीबों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है, उसे अल्पसंख्यक संस्थान अपने ही समुदाय के बच्चों को देकर भर सकते हैं।

हालांकि, कोर्ट ने यह भी साफ किया कि TET पास करने का फैसला अभी अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होगा। बेंच ने कहा कि इस मामले पर फैसला बड़ी बेंच करेगी।

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