सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि बिहार में होने वाले चुनावों के लिए मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) को लेकर भ्रम ज्यादातर 'विश्वास की कमी' का मामला है। कोर्ट ने राजनीतिक दलों से कहा कि वे खुद को इस मामले में 'सक्रिय' करें।
जस्टिस सूर्य कांत और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने बिहार के राजनेताओं द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई की। इन याचिकाओं में चुनाव आयोग द्वारा जारी मसौदा मतदाता सूची पर दावे और आपत्तियां दर्ज करने की 1 सितंबर की समय सीमा बढ़ाने की मांग की गई थी।
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चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि 1 सितंबर की समय सीमा के बाद भी दावे और आपत्तियां स्वीकार की जाएंगी। आयोग ने कहा कि मतदाता सूची के अंतिम रूप लेने के बाद भी दावे और सुधार पर विचार किया जाएगा। यह प्रक्रिया नामांकन की अंतिम तारीख तक जारी रहेगी।
राजनीतिक दलों की शिकायतें
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि कुछ राजनीतिक दल मतदाता सूची में नए नाम जोड़ने के बजाय मतदाताओं के नाम हटाने की आपत्तियां दर्ज कर रहे हैं, जो 'अजीब' है। वहीं, वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि आधार कार्ड को लेकर आदेश 22 अगस्त को जारी हुआ था लेकिन चुनाव आयोग अपनी ही पारदर्शिता की नीतियों का पालन नहीं कर रहा।
सुप्रीम कोर्ट का सुझाव
जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि इस प्रक्रिया का पहला कदम दावे और आपत्तियां जमा करना है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों की मौजूदगी में इन मुद्दों पर बेहतर चर्चा हो सकती है। कोर्ट ने 'विश्वास की कमी' को दूर करने के लिए जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण से वॉलंटियर्स की मदद लेने का सुझाव दिया।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, '1 सितंबर के बाद भी दावे, आपत्तियां और सुधार जमा किए जा सकते हैं। ये अंतिम मतदाता सूची बनने के बाद भी स्वीकार किए जाएंगे। यह प्रक्रिया नामांकन की अंतिम तारीख तक चलेगी।' कोर्ट ने राजनीतिक दलों और याचिकाकर्ताओं से इस संबंध में हलफनामा जमा करने को कहा।
साथ ही, कोर्ट ने बिहार कानूनी सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष से मंगलवार दोपहर तक सभी जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों को निर्देश देने को कहा कि वे पैरा-लीगल वॉलंटियर्स के नाम और मोबाइल नंबर के साथ एक नोटिस जारी करें। ये वॉलंटियर मतदाताओं और राजनीतिक दलों को दावे, आपत्तियां या सुधार ऑनलाइन जमा करने में मदद करेंगे।
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सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची को लेकर भ्रम को दूर करने के लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करना होगा। कोर्ट ने इस प्रक्रिया को पारदर्शी और सुगम बनाने के लिए ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।