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वक्फ बिल के खिलाफ स्टालिन सरकार के प्रस्ताव का असर क्या होगा?

पहले केरल, फिर कर्नाटक और तमिलनाडु ने भी वक्फ बिल के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पास किया है। ऐसे में जानते हैं कि इसका असर क्या होगा? और क्या राज्य सरकारें केंद्र के कानून को रोक सकती हैं?

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सीएम एमके स्टालिन। (Photo Credit: X@mkstalin)

तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने वक्फ बिल के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पास किया है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस बिल को 'मुस्लिमों की भावनाओं का आहत करने वाला' बताया है। उन्होंने दावा किया कि इस बिल को लाने का मकसद वक्फ बोर्ड को कमजोर करना और वक्फ की संपत्तियों में दखल करना है।


सीएम स्टालिन ने कहा, 'यह धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है और इससे मुस्लिमों की भावनाएं आहत हो रहीं हैं।' स्टालिन ने कहा, 'केंद्र सरकार ने वक्फ बिल में संशोधन करने की कोशिश कर रही है, जिससे वक्फ बोर्ड की शक्तियां कमजोर होंगी। इससे मुस्लिमों की भावनाएं आहत हो रही हैं और केंद्र सरकार को इसकी परवाह ही नहीं है।'

 

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और क्या बोले स्टालिन?

विधानसभा में स्टालिन ने कहा, 'भारत में लोग धार्मिक सद्भाव के साथ रह रहे हैं। संविधान न सभी लोगों को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार दिया है। चुनी हुई सरकारों को इसकी रक्षा करने का अधिकार है। विधानसभा सर्वसम्मति से इस बात पर जोर देती है कि केंद्र सरकार को वक्फ बिल वापस लेना चाहिए।'


उन्होंने कहा, 'यह सिर्फ कानूनी मुद्दा नहीं है। यह अल्पसंख्यकों और उनके संस्थानों के संवैधानिक अधिकारों पर हमला है। हम इसका विरोध करेंगे।'


स्टालिन ने कहा, 'मुसलमानों में यह डर बढ़ रहा है कि वक्फ बिल उनके संस्थानों की स्वायतत्ता को कमजोर करने की एक और कोशिश है।'

 

कर्नाटक भी पास कर चुका है प्रस्ताव

तमिलनाडु सरकार से पहले कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार भी वक्फ बिल के खिलाफ प्रस्ताव पास कर चुकी है। कर्नाटक सरकार ने 19 मार्च को यह प्रस्ताव पास किया था।


कर्नाटक के प्रस्ताव में लिखा था, 'यह सदन केंद्र सरकार से अनुरोध करता है कि वह देश के सर्वसम्मत विचारों का सम्मान करते हुए वक्फ बिल को तुरंत वापस ले, जिसमें ऐसे प्रावधान हैं जो संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।'


कर्नाटक और तमिलनाडु के अलावा केरल की सरकार भी वक्फ बिल के खिलाफ प्रस्ताव पास कर चुकी है। केरल सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में प्रस्ताव पास किया था।

 

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प्रस्ताव पास करने से क्या होगा?

विधानसभा में वक्फ बिल के खिलाफ प्रस्ताव पास करने से कोई खास असर नहीं पड़ेगा। यह असल में एक 'प्रतीकात्मक विरोध' का तरीका है। विधानसभा में इस तरह से प्रस्ताव पास कर राज्य सरकारें अपनी असहमति जताती हैं। यह केंद्र सरकार पर निर्भर करता है कि वह इस बिल को वापस लेती है या नहीं।

क्या राज्य कानून लागू करने से मना कर सकती हैं?

ऐसे में सवाल उठता है कि राज्य सरकारें वक्फ बिल का विरोध कर रहीं हैं तो अगर यह कानून बन जाता है क्या इसे लागू करने से भी मना कर सकती हैं? इसे समझने के लिए संवैधानिक प्रावधानों को समझना जरूरी है।


दरअसल, संविधान में संघ, राज्य और समवर्ती सूची है। इसमें बताया गया है कि केंद्र और राज्य सरकार के अधिकार में कौन-कौन से विषय आते हैं। सातवीं अनुसूची में इसका जिक्र है।


संघ सूची में वह विषय आते हैं, जिन पर कानून सिर्फ केंद्र सरकार ही बना सकती है। इस सूची में रक्षा, विदेश मामले और नागरिकता जैसे 97 विषय हैं। राज्य सूची में वह विषय हैं, जिन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों के पास है। इसमें कानून व्यवस्था, जंगल, जमीन, सड़क, पंचायती राज जैसे 66 विषय हैं। वहीं, समवर्ती सूची में उन विषयों को रखा गया है, जिन पर केंद्र और राज्य सरकारें दोनों कानून बना सकती हैं। इसमें शिक्षा, बिजली, जनसंख्या नियंत्रण और कारखाने जैसे 47 विषय हैं।


धार्मिक संस्थानों से जुड़ा विषय समवर्ती सूची में आता है। वक्फ बोर्ड धार्मिक संस्थान है, इसलिए इस पर केंद्र और राज्य सरकारें, दोनों ही कानून बना सकती हैं।

 

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... लेकिन

भले ही वक्फ का मामला समवर्ती सूची में आता हो और इस पर केंद्र और राज्यों को कानून बनाने का अधिकार हो लेकिन यहां भी संवैधानिक पेंच फंस जाता है।


दरअसल, संविधान का अनुच्छेद 254 कहता है कि अगर राज्य के किसी कानून और केंद्र के किसी कानून में कोई टकराव होता है तो ऐसी स्थिति में संसद से पास कानून ही मान्य होगा। इसका मतलब हुआ कि इस पर अगर राज्य सरकारें कानून भी बना लेती हैं तो भी केंद्र का कानून ही लागू होगा।

फिर राज्यों के पास क्या है रास्ता?

अगर केंद्र सरकार कोई कानून लाती है तो उसे राज्यों को मानना ही पड़ता है। हालांकि, राज्य सरकारें इसे लागू करने में ढील बरत सकती हैं।


इसके अलावा, अगर केंद्र के किसी कानून से राज्यों को आपत्ति है तो वे सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती हैं। अनुच्छेद 131 के तहत, राज्यों के पास केंद्र के कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट फिर उस कानून को लागू करने पर रोक लगा सकता है या रद्द कर सकता है या फिर राज्यों की अपील को खारिज कर सकता है।


इससे पहले केंद्र और राज्यों के बीच तीन कृषि कानून और नागरिकता (संशोधन) कानून को लेकर भी टकराव हुआ था। तीन कृषि कानूनों को तो केंद्र सरकार ने वापस ले लिया था लेकिन नागरिकता कानून लागू हो गया है। 

 

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वक्फ बिल अगर कानून बना तो क्या बदलेगा?

  • अभी वक्फ की संपत्ति का सर्वे करने का अधिकार एडिशनल कमिश्नर के पास है। प्रस्तावित बिल में वक्फ संपत्ति को जिला कलेक्टर के पास रजिस्टर करवाना होगा। सर्वे का अधिकार भी कलेक्टर और डिप्टी कमिश्नर को दिया गया है।
  • प्रस्तावित बिल में सबसे बड़ा बदलाव वक्फ बोर्ड के प्रशासनिक ढांचे में किया गया है। अब तक बोर्ड में गैर-मुस्लिम और महिला सदस्य नहीं होते थे। नया बिल अगर कानून बनता है तो वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम और दो महिला सदस्य भी होंगी।
  • अब तक किसी संपत्ति को वक्फ घोषित किए जाने पर कोई आपत्ति होती थी तो उसे वक्फ ट्रिब्यूनल में चुनौती दी जाती थी। ट्रिब्यूनल ही तय करता था कि संपत्ति वक्फ है या नहीं? मगर प्रस्तावित बिल के मुताबिक, आपत्ति होने पर कोर्ट भी जा सकेंगे। संपत्ति वक्फ है या नहीं, इसका फैसला राज्य सरकार की ओर से नामित अधिकारी करेंगे। 
  • प्रस्तावित बिल में सबसे बड़ा बदलाव 'वक्फ बाय यूजर' के प्रावधान को खत्म करने का किया गया है। इसका मतलब हुआ कि अगर किसी संपत्ति पर विवाद है या उस पर सरकार का मालिकाना हक है तो उसे वक्फ की संपत्ति नहीं माना जाएगा।

विपक्ष को क्या है आपत्ति?

वक्फ बिल को पहली बार पिछले साल अगस्त में पेश किया गया था। बाद में विपक्ष के विरोध के चलते इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया था। बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल की अगुवाई वाली संसदीय समिति ने संशोधन के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को दी थी। 13 फरवरी को इस रिपोर्ट को सदन में पेश किया गया था। 


संसदीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर नया वक्फ बिल तैयार किया गया है। हालांकि, विपक्ष का दावा है कि संसदीय समिति ने उनकी आपत्तियों को इसमें शामिल नहीं किया है।


विपक्षी सांसदों ने वक्फ बोर्डों को खत्म करने की कोशिश बताते हुए असहमति नोट जमा कराए थे। विपक्ष ने वक्फ बिल को लेकर कई आपत्तियां दर्ज कराई थीं। इसके अलावा 'वक्फ बाय यूजर' प्रावधान को हटाने के प्रस्ताव का विरोध भी किया था। इसके अलावा विपक्ष इसे एंटी-मुस्लिम भी बता रहा है।

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