गुजरात के वडोदरा में 9 जुलाई को गंभीरा ब्रिज टूट गया था। पुल टूटने से एक ट्रक बीच में ही लटक गया था। इस दुर्घटना के 25 दिन बीत जाने के बाद भी यह ट्रक अब तक लटका हुआ है। इस ट्रक को यहां से निकालने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं। अब इस ट्रक को निकालने का जिम्मा पोरबंदर के विश्वकर्मा ग्रुप को दिया गया है। आणंद के कलेक्टर प्रवीण चौधरी ने बताया कि ट्रक को निकालने में 2 से 3 दिन लग सकता है।
वडोदरा में महिसागर नदी पर बने गंभीरा पुल का एक हिस्सा 9 जुलाई को टूट गया था। इस कारण कई गाड़ियां नदी में गिर गई थीं। इस दुर्घटना में 21 लोगों की मौत हो गई थी।
9 जुलाई से ही पुल पर ट्रक लटका हुआ है। अब इसे हटाने की जिम्मेदारी विश्वकर्मा ग्रुप को दी गई है। पुल टूटा हुआ है और अस्थिर है, इसलिए यहां क्रेन नहीं पहुंच सकती। यही कारण है कि 25 दिन बाद भी ट्रक यहां फंसा हुआ है।
कैसे हटाया जाएगा ट्रक?
अब इस ट्रक को 'एयर बलून टेक्नोलॉजी' से ट्रक को हटाया जाएगा। गुजरात में यह पहली बार होगा जब इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा।
विश्वकर्मा ग्रुप की मरीन इंजीनियरिंग एक्सपर्ट की टीम इस काम में लगी है। इस ऑपरेशन में न्यूमैटिक बलून, हाइड्रोलिक जैक, ह्यूमैटिक रोलर बैग्स और होरिजोंटल कैंटीलिवर सिस्टम हैं। इन सबको पुल पर नहीं, बल्कि नदी के तल पर लगाया गया है।
आणंद के कलेक्टर प्रवीण चौधरी ने कहा, 'यह एक बेहद जटिल ऑपरेशन है और हम कोई भी जोखिम नहीं उठा सकते। ट्रक टूटे हुए हिस्से पर है। कोई क्रेन उस तक नहीं पहुंच सकती।'
उन्होंने बताया, 'विश्वकर्मा ग्रुप की इंजीनियरिंग की 50-60 लोगों की टीम कई दिनों से गंभीरा ब्रिज पर रहकर मुआयना कर रही है। इन्होंने पूरा सेटअप तैयार कर लिया है। सारी सेफ्टी का ध्यान रखा जा रहा है। पूरा ऑपरेशन ब्रिज से 900 मीटर दूर रहकर करना है, इसलिए जब तक यह सुनिश्चित नहीं हो जाता कि सुरक्षा का कोई खतरा नहीं है, तब तक ऑपरेशन शुरू नहीं होगा।' उन्होंने बताया कि 2-3 दिन में ट्रक को यहां से हटा लिया जाएगा।
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कैसे काम करती है यह तकनीक?
इसे 'एयर बलून टेक्नोलॉजी' कहा जाता है। आशान भाषा में कहें तो इसमें गुब्बारे होते हैं जो भारी चीज को ऊपर उठाते हैं। यह आर्कमिडीज के सिद्धांत पर काम करता है।
इस ऑपरेशन से जुड़े डॉ. निकुल पटेल ने मीडिया को बताया कि 'इसमें प्रोपेन गैस से भरे बड़े क्षमता वाले गुब्बारे लगाने के लिए नदी के तल को आधार बनाया जा रहे है। जब गुब्बारे टैंकर के नीचे और चारों ओर सुरक्षित हो जाएंगे तो इन्हें धीरे से ऊपर उठाने के लिए फुलाया जाएगा।' इन्हें न्यूमैटिक बलून कहा जाता है।
उन्होंने कहा, 'टैंकर का वजन करीब 10 से 15 टन है। इसलिए इससे ज्यादा वजन उठाने की क्षमता रखने वाले बलून का इस्तेमाल किया जाएगा।'
उन्होंने बताया कि दो बड़े गुब्बारों का इस्तेमाल होगा, ताकि बैलेंस बना रहा। अगर जरा सी भी बैलेंस बिगड़ा तो बड़ी दुर्घटना हो सकती है। उन्होंने कहा, 'मैंने आजतक भारत में इस तकनीक का इस्तेमाल होते नहीं देखा है। अगर यह सफल होता है तो यह भविष्य की आपातकालीन स्थितियों के लिए बेंचमार्क होगा।'
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पूरे काम में कितना वक्त लगेगा?
कलेक्टर प्रवीण चौधरी ने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया में 5 घंटे का वक्त लग सकता है। उन्होंने कहा, 'हमारी सबसे पहली प्रायोरिटी सेफ्टी है। पूरी प्रक्रिया के दौरान कोई भी व्यक्ति पुल पर या उसके आसपास नहीं होगा। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 5 घंटे लगेंगे।'
उन्होंने कहा कि अगर यह ऑपरेशन कामयाब होता है तो यह न केवल भारत में पहली बार होगा, बल्कि उन चुनौतीपूर्ण इलाकों में नए तकनीक का रास्ता खोलेगा, जहां क्रेन नहीं पहुंच सकती।
उन्होंने कहा, 'हम विज्ञान को साहस के साथ जोड़ रहे हैं। यह केवल रेस्क्यू ऑपरेशन नहीं है बल्कि यह इस बात का प्रमाण है कि गुजरात संकट में इनोवेशन के लिए तैयार है।'