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वक्फ एक्ट पर SC में आज सुनवाई, 6 BJP शासित राज्य क्यों पहुंचे कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को वक्फ (संशोधन) कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होनी है। इस बीच 6 बीजेपी शासित राज्यों ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

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सुप्रीम कोर्ट। (Photo Credit: PTI)

वक्फ (संशोधन) कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई होनी है। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को 2 बजे इन पर सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच इन पर सुनवाई करेगी। 


हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी समेत कई पार्टियों ने इस कानून के खिलाफ याचिका दायर की है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच 10 याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। इस कानून के खिलाफ और भी कई याचिकाएं दायर हुईं हैं, लेकिन उन पर अभी सुनवाई नहीं होगी। 


सुनवाई से पहले 6 बीजेपी शासित राज्य भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं। इन्होंने कानून के समर्थन में याचिका दायर की है। इनमें हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम शामिल है।

 

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किन याचिकाओं पर होगी सुनवाई?

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को 10 याचिकाओं पर सुनवाई होगी। वक्फ कानून के खिलाफ ओवैसी के खिलाफ AAP नेता अमानतुल्लाह खान, एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, अरशद मदनी, समस्त केरल जमीयत-उल उलेमा, अंजुम कादरी, तैयब खान सलमानी, मोहम्मद शफी, मोहम्मद फजलुर्रहीम और RJD नेता मनोज कुमार झा ने याचिका दायर की हैं। इन सभी पर आज सुनवाई होगी।


इनके अलावा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क ने भी इ कानून के खिलाफ याचिका दायर की है। आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम जगन मोहन रेड्डी की पार्टी YSR कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी और तमिल एक्टर विजय की पार्टी TMK ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। DMK ने अपनी याचिका में दावा किया है कि विरोध और आपत्तियों के बावजूद बिना चर्चा के इस कानून को पास किया गया।


ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB), जमीयत उलेमा-ए-हिंद, DMK, कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद समेत कई और राजनेताओं ने भी इस कानून के खिलाफ याचिका दाखिल की है।

 

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याचिकाओं में क्या दलीलें दी गईं?

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने एक बयान जारी कर वक्फ कानून में हुए इन संशोधनों को 'मनमाना' बताया है। उन्होंने कहा कि यह संशोधन न सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत मिले संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, बल्कि यह वक्फ के प्रशासन पर सरकार के नियंत्रण की मंशा को भी जाहिर करते हैं।


उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 25 और 26 सभी लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देने के साथ-साथ धार्मिक उद्देश्यों के लिए संस्थानों को बनाने और उनका प्रबंधन करने की इजाजत भी देती है।


जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में दावा करते हुए यह मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने की 'खतरनाक साजिश' है। जमीयत ने अपनी याचिका में नए कानून को संविधान पर सीधा हमला बताया है।


वहीं, समस्त केरल जमीयत-उल उलेमा ने अपनी याचिका में इस कानून को धार्मिक मामलों में सीधा 'दखल' बताया है।


कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों और उनके प्रबंधन पर 'मनमाने प्रतिबंध' लगाता है, जिससे मुस्लिमों की धार्मिक स्वायत्तता कमजोर होती है। उन्होंने अपनी याचिका में यह भी दावा किया कि यह कानूम मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है।


ओवैसी ने अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून वक्फ को मिलने वाली सुरक्षा को कम करता है, जो मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव है और इससे अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन होता है, जो धार्मिक आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।


एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स ने अपनी याचिका में इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। वहीं, AAP विधायक अमानतुल्लाह खान ने इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30 और 300-A का उल्लंघन बताया है।

 

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बीजेपी शासित राज्य क्यों पहुंचे कोर्ट?

इस बीच 6 बीजेपी शासित राज्यों ने भी इस कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। हरियाणा सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए नए कानून की जरूरत थी।


मध्य प्रदेश सरकार का कहना है कि इस कानून का मकसद वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और रेगुलेशन में सुधार लाना है। राजस्थान सरकार ने अपनी याचिका में चिंता जताते हुए कहा कि पहले निजी और सरकारी संपत्तियों को वक्फ की संपत्ति घोषित किया जा रहा था। छत्तीसगढ़ सरकार ने दावा किया है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए डिजिटल पोर्टल बनाने से इन संपत्तियों की ट्रैकिंग और    ऑडिटिंग में मदद मिलेगी।


असम सरकार ने अपनी याचिका में इस कानून की धारा 3E का जिक्र किया है, जो संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची में आने वाले आदिवासी इलाकों में आने वाली किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करने पर रोक लगाती है। असम का कहना है कि राज्य के 35 में से 8 जिले 6वीं सूची में आते हैं, इसलिए इस मामले में उसकी सीधी भागीदारी है। महाराष्ट्र सरकार ने भी इस कानून के समर्थन में याचिका दायर की है। उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने भी नए कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।


वहीं, सीनियर एडवोकेट हरि शंकर जैन और मणि मुंजाल ने भी इस कानून के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए एक अलग से याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने इस कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर दावा किया है कि यह गैर-मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

 

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केंद्र की क्या है तैयारी?

वक्फ (संशोधन) के खिलाफ 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। हालांकि, बुधवार को 10 याचिकाओं पर ही सुनवाई होगी। इस बीच 8 अप्रैल को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दाखिल की थी, जिसमें मांग की गई थी कि इस मामले में कोई भी आदेश जारी करने से पहले उसे सुना जाए।


दरअसल, किसी भी अदालत या सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की जाती है, ताकि उसका पक्ष सुने बिना कोई कोई भी आदेश जारी न किया जाए।

 

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क्या है वक्फ कानून?

लोकसभा और राज्यसभा से पास होने के बाद 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) बिल को मंजूरी दे दी थी। इसके बाद 8 अप्रैल को केंद्र सरकार ने इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी थी और अब यह कानून लागू हो चुका है।


वक्फ (संशोधन) कानून में कई अहम बदलाव किए गए हैं। नए कानून में सेंट्रल वक्फ काउंसिल और वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम और दो महिला सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान भी किया गया है। इसके साथ ही 'वक्फ बाय यूजर' के प्रावधान को भी खत्म कर दिया है। अब अगर किसी संपत्ति पर सालों से कोई इस्लामिक इमारत बनी है तो उसे वक्फ की संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकता। अब कोई भी संपत्ति तभी वक्फ की संपत्ति मानी जाएगी, जब उसके वैध और कानूनी दस्तावेज होंगे।


वक्फ कानून में एक बड़ा बदलाव भी यह भी किया है कि अब कोई भी मुस्लिम व्यक्ति तभी अपनी संपत्ति को वक्फ के लिए दे सकता है, जब वह कम से कम 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा होगा। इसके अलावा सर्वे का अधिकार भी अब कलेक्टर को दे दिया गया है। 


एक और बड़ा बदलाव इसमें यह भी किया गया है कि अब तक अगर किसी संपत्ति को लेकर विवाद होता था, तो उसे सिर्फ ट्रिब्यूनल में ही चुनौती दी जा सकती थी और ट्रिब्यूनल का फैसला ही आखिरी होता था। मगर नए कानून के बाद इसे ऊपरी अदालत या हाईकोर्ट में भी चुनौती दी जा सकती है।

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