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यह राजनीति है, रॉकेट साइंस नहीं; मस्क की पार्टी के सामने चुनौती क्या?

रॉकेट साइंस में तहलका मचाने वाले एलन मस्क के सामने राजनीतिक में चुनौतियां खूब हैं। अब देखना यह होगा कि सियासी साइंस में वह सफल होंगे या नहीं है।

Elon Musk.

एलन मस्क। (AI Generated Image)

दुनिया के सबसे रईस इंसान एलन मस्क ने अमेरिका में तीसरी पार्टी बनाने का एलान किया है। 4 जुलाई को मस्क ने एक पोल के माध्यम से लोगों से पार्टी बनाने पर राय मांगी। अगले दिन यानी 5 जुलाई को उन्होंने 'अमेरिका पार्टी' की घोषणा की। मस्क ने यह पार्टी रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक का तिलिस्म तोड़न के उद्देश्य से बनाई है। उनका कहना है कि यह पार्टी लोगों को असली आजादी दिलाएगी। एलन मस्क ने एलान किया है कि उनकी पार्टी अगले साल मध्यावधि चुनाव लड़ेगी। आइए जानते हैं कि अमेरिका में एक नया सियासी दल बनाना कितना कठिन, कानूनी चुनौतियां और मस्क का लक्ष्य क्या है?

 

टेस्ला जैसी आधुनिक कार बनाने वाले मस्क नवाचार पर विश्वास रखते हैं। स्टारलिंक से दुनियाभर में सैटेलाइट इंटरनेट पहुंचाने वाले मस्क के सामने अमेरिकी जनता तक अपनी पार्टी का विजन पहुंचाने की चुनौती है। हालांकि उनके पास तकनीकी पकड़ और धनबल बहुत अधिक है। मगर एलन मस्क चाहकर भी अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ सकते। इसकी वजह अमेरिका का एक कानून है। अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद II खंड 1 के मुताबिक अमेरिका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को जन्मजात नागरिक होना जरूरी है, जबकि एलन मस्क का जन्म दक्षिण अफ्रीफा में हुआ है। 

 

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एलन मस्क का लक्ष्य: अमेरिका में अभी अघोषित तौर पर द्विपक्षीय दलीय व्यवस्था है। ट्रंप से भिड़ने के बाद एलन मस्क रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के दबदबे को खत्म करना चाहते हैं। मस्क का लक्ष्य कांग्रेस में रणनीतिक सीटों हासिल करना है, ताकि किसी भी कानून को कांग्रेस पर रोका जा सके। मस्क ने खुद कहा है कि उनकी पार्टी कांग्रेस की कुछ प्रमुख सीटों पर ध्यान केंद्रित करेगी। अमेरिका पार्टी तीन सीनेट सीटों और आठ से 10 हाउस जिलों पर फोकस करेगी। एक्स पर एलन मस्क के पोल पर लगभग 12 लाख लोगों ने वोट किया। इनमें से लगभग 65.4 फीसदी लोगों ने अमेरिका पार्टी का समर्थन किया। इससे साफ है कि मस्क की पार्टी को समर्थन तो जरूर मिल रहा है, लेकिन उनके सामने कानूनी और राजनीतिक बाधाएं हैं।   

एलन मस्क के सामने क्या चुनौतियां?

  • अमेरिका में किसी भी दल को संघ के अलावा राज्य कानूनों का पालन करना होता है। अधिकांश राज्यों में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी का पूरा सिस्टम, मतदाता नेटवर्क और फंडिंग व्यवस्था है। इस व्यवस्था में तीसरे दल के लिए जगह बनाना आसान नहीं है। पूरा सिस्टम, शक्ति, धन और मीडिया डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के बीच बंटा है।

 

  • अमेरिका की चुनाव प्रणाली में किसी भी दल को बैलेट पर नाम लाने की प्रक्रिया कठिन है। यह सिस्टम ऐसे बनाया गया कि तीसरी पार्टी का सफल होना लगभग असंभव है। खास बात यह है कि अमेरिका के हर राज्य के अपने नियम हैं। नई पार्टी को इन नियम का पालन करना होगा। हजारों लोगों के हस्ताक्षर के बाद ही किसी पार्टी का नाम बैलेट पर आता है। 

 

  • अमेरिका में चुनाव प्रणाली भारत से बिल्कुल अलग है। भारत में कम मत प्रतिशत के साथ अगर कोई पार्टी अधिक सीट जीतती है तो उसको विजेता माना जाता है, जबकि अमेरिका में यह बिल्कुल अलग है। इस लिहाज से अगर कोई तीसरी पार्टी कुछ फीसदी मत हासिल भी कर लेता है तो उसका कोई आधार नहीं है। जब तक कि वह सबसे अधिक मतों पर कब्जा न कर ले।  

 

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  • अमेरिका में नई पार्टी को फंड का हिसाब रखना होता है। फंड लेने की एक सीमा भी है। अमेरिका के मैककेन-फिंगोल्ड द्विदलीय अभियान सुधार अधिनियम 2022 के मुताबिक सियासी दलों की फंड की सीमा निर्धारित है। मौजूदा सीमा 450,000 डॉलर से थोड़ा कम है। मस्क के पास अपार धन है, लेकिन वह अकेले इतनी रकम दान नहीं कर सकते हैं। उनको हजारों सह दाताओं की जरूरत होगी।  

 

  • अमेरिका के टीवी चैनलों में राष्ट्रपति पद की बहस होती है। मौका सिर्फ डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी को मिलता है। तीसरी पार्टी अगर 15 फीसदी तक वोट हासिल करती है तो उसे डिबेट में भाग लेने की अनुमति है। अधिकांश पार्टियां यह आकंड़ा नहीं छू पाती हैं। इस वजह से बहस में मौका नहीं मिल पाता। अमेरिका की ज्यादातर जनता तीसरे दल का विजन नहीं सुन पाती है। 

 

  • अमेरिका के हर राज्य में चुनाव से जुड़े नियम सख्त और मंहगे हैं। बड़ी पार्टियों के पास अरबों की रकम होती है। मगर कानून के तौर पर नई पार्टी को इतनी छूट नहीं मिल होती है। अमेरिका में नई पार्टी के सामने वोटरों का नेटवर्क स्थापित करना कठिन है। हालांकि एलन मस्क के सामने यह अच्छा संकेत है कि वह अपने एक्स प्लेटफॉर्म से मीडिया कवरेज को मैनेज कर सकते हैं। एलन मस्क की पार्टी के अलावा अमेरिका में ग्रीन और लिबर्टेरियन जैसी पार्टिया हैं। मगर इन्हें कुछ ही वोटों से संतोष करना पड़ता है। 

 

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