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आर्टिकल 142 क्या है? जिसका जिक्र कर जगदीप धनखड़ चर्चा में आए

राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका को लेकर बयान दिया है।

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जगदीप धनखड़। Photo Credit- PTI

देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया। उनके बयान को लेकर पूरे देश में एक नई बहस छिड़ गई है 'सरकार बनाम न्यायपालिका'। दरअसल, यह पूरा मामला तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि द्वारा डीएमके सरकार के कई विधेयकों को सालों तक रोकने को लेकर शुरू हुआ है। राज्यपाल रवि के अड़ियल रवैया की वजह से तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा निर्धारित कर दी। जगदीप धनखड़ का ताजा बयान इसी को लेकर आया है।  

  

डीएमके की एमके स्टालिन सरकार कहा था कि तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने कई बिल काफी समय से पेंडिंग रखे थे। इसी के चलते तमिनलाडु सरकार ने न्यायपालिका से हस्तक्षेप की अपील की थी और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

 

धनखड़ का वो बयान जिसपर मचा बवाल

 

राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका को लेकर कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है। इसके अलावा धनखड़ ने अनुच्छेद 145(3) का भी जिक्र किया।

 

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उन्होंने कहा है कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां जज कानून बनाएंगे और कार्यपालिका का काम खुद संभालकर एक 'सुपर संसद' की तरह काम करेंगे। धनखड़ ने कहा कि संविधान ने न्यायपालिका को शक्ति दी है कि वह कानून की व्याख्या कर सके लेकिन उसे यह शक्ति नहीं मिली है कि वह राष्ट्रपति को ही निर्देश दें।

 

हम कहां जा रहे हैं?

 

जगदीप धनखड़ ने कहा है, 'हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना होगा। यह कोई समीक्षा दायर करने या न करने का सवाल नहीं है। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र का सौदा नहीं किया था। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से फैसला करने के लिए कहा जा रहा है और अगर ऐसा नहीं होता है तो संबंधित विधेयक अपने-आप कानून बन जाता है।' उन्होंने न्यायपालिका पर तंज सकते हुए कहा, 'हमारे पास ऐसे जज हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यपालिका का कार्य स्वयं संभालेंगे, जो ‘सुपर संसद’ के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता।'

 

इसके अलावा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर पर मिले कैश के मामले का जिक्र किया। उन्होंने कहा, 'राष्ट्रपति और राज्यपाल को मुकदमों के खिलाफ संरक्षण मिला है, यह संरक्षण आम जनता और यहां तक कि जज तक को नहीं मिलता।'

 

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विपक्ष ने क्या कहा?

 

वहीं, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान पर वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा, 'जगदीप धनखड़ का बयान देखकर मुझे दुख और आश्चर्य हुआ। आज के समय में अगर पूरे देश में किसी संस्था पर भरोसा किया जाता है तो वह न्यायपालिका है। जब सरकार के कुछ लोगों को न्यायपालिका के फैसले पसंद नहीं आते तो वे उस पर अपनी सीमाएं लांघने का आरोप लगाने लगते हैं। क्या उन्हें पता है कि संविधान ने अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय देने का अधिकार दिया है? राष्ट्रपति केवल नाममात्र का मुखिया होता है। राष्ट्रपति कैबिनेट के अधिकार और सलाह पर काम करता है। राष्ट्रपति के पास अपना कोई निजी अधिकार नहीं होता। जगदीप धनखड़ को यह बात पता होनी चाहिए।'

 

संविधान का अनुच्छेद 142 क्या है?

 

न्यायपालिका पर भड़कते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अनुच्छेद 142 का जिक्र किया। दरअसल, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 एक ऐसा प्रावधान है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट को कुछ विशेषाधिकार मिले हुए हैं। संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है, चाहे वह किसी भी मामले में हो। 

 

अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में न्याय सुनिश्चित करने के लिए कोर्ट को कानून के अनुसार ऐसा कोई भी आदेश देने की अनुमति देता है जो न्याय के हित में हो।

 

अनुच्छेद 142 क्यों है खास?

 

अनुच्छेद 142 से सुप्रीम कोर्ट केवल कानून के अनुसार नहीं बल्कि न्याय के मुताबिक फैसला कर सकती है। यह कोर्ट को एक मनोवैज्ञानिक संतुलन देने वाला टूल है। साफ शब्दों में कहें तो जहां कानून काम नहीं करता वहां यह कानून करता है।

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