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डिजिटल दुनिया का 'पेट्रोल' क्यों है सेमीकंडक्टर? भारत कितना मजबूत

मोदी कैबिनेट ने हाल ही में देश की छठी सेमीकंडक्टर यूनिट को मंजूरी दी है। यह यूनिट नोएडा में जेवर एयरपोर्ट के पास बनेगी। इससे हर महीने 3.6 करोड़ चिप तैयार होंगी।

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प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

आप घर में बैठकर मोबाइल चला रहे हों या कार में बैठकर ऑफिस जा रहे हों या फिर लैपटॉप पर कुछ काम कर रहे हों या फिर हवाई जहाज से कहीं जा रहे हों। इन सब चीजों में एक चीज कॉमन है और वह है 'सेमीकंडक्टर' या फिर माइक्रोचिप। सिलिकॉन से बनी आधे इंच की यह छोटी सी चिप की अहमियत का अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं कि मार्च 2021 में सैमसंग ने चेताते हुए कहा था कि अगर सेमीकंडक्टर की कमी हुई तो अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ सकती है। इस छोटी सी चिप की अहमियत का अंदाजा इस एक और बात से भी लगा सकते हैं कि अप्रैल 2022 में सेमीकंडक्टर की कमी से मारुति सुजुकी को 1.5 लाख कारें कम बनानी पड़ी थीं।


अब तेजी से डिजिटल होती दुनिया में सेमीकंडक्टर की मांग और बढ़ गई है। यही कारण है कि अब दुनियाभर के मुल्क सेमीकंडक्टर की दुनिया में अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश बनाने में जुटे हैं। भारत भी इनमें से एक है। 


मोदी कैबिनेट ने बुधवार को ही एक और सेमीकंडक्टर यूनिट बनाने को मंजूरी दी है। यह भारत में बनने वाली छठी यूनिट होगी। इसे उत्तर प्रदेश के नोएडा में जेवर एयरपोर्ट के पास बनाया जाएगा। दो साल में मोदी सरकार ने 6 सेमीकंडक्टर यूनिट को मंजूरी दी है। इनमें से 4 गुजरात, 1 असम और 1 यूपी में बन रही है। 

 

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भारत में कहां-कहां है सेमीकंडक्टर यूनिट?

  1. गुजरातः जून 2023 में कैबिनेट में साणंद में पहली यूनिट को मंजूरी दी थी। इसे टाटा ग्रुप और अमेरिकी कंपनी माइक्रोन मिलकर बना रहे हैं। इसमें 22,516 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। इस यूनिट से तकरीबन 20 हजार नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है।
  2. गुजरातः यह धोलेरा में बन रही है। इसे फरवरी 2024 में मंजूरी मिली थी। इसे टाटा ग्रुप और ताइवानी कंपनी पावरचिप सेमीकंडक्टर मैनुफैक्चरिंग कॉर्प (PSMC) मिलकर बना रही है। इसमें 91,000 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है। इस यूनिट में हर महीने 50,000 वेफर्स बनाए जाएंगे।
  3. असमः टाटा ग्रुप की टाटा सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्ट (TSAT) असम के मोरीगांव में बना रही है। इस यूनिट को 27 हजार करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया जा रहा है। इस यूनिट में हर दिन 4.8 करोड़ चिप बनाई जाएंगी।
  4. गुजरातः साणंद में भारत की CG पावर, जापान की Renesas और थाईलैंड की Stars Microelectronics मिलकर बना रही है। इसमें 7,600 करोड़ का निवेश किया गया है। इस यूनिट के तैयार हो जाने के बाद हर दिन 1.5 करोड़ चिप बनाई जाएंगी।
  5. गुजरातः सितंबर 2024 में मोदी कैबिनेट ने साणंद में केन्स सेमीकॉन की यूनिट को मंजूरी दी थी। इसमें 3,300 करोड़ का निवेश किया गया है। इस यूनिट में हर दिन 60 लाख चिप बनाई जाएंगी।
  6. उत्तर प्रदेशः नोएडा में जेवर एयरपोर्ट के पास यह यूनिट बनेगी। इसे भारत की HCL और ताइवान की कंपनी Foxconn मिलकर तैयार करेंगी। इसमें 3,700 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। इस यूनिट में हर महीने 20,000 वेफर्स बनेंगे, जिससे महीनेभर 3.6 करोड़ चिप तैयार होंगी।

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क्या होता है सेमीकंडक्टर?

सेमीकंडक्टर को सिलिकॉन से बनाया जाता है। इसके लिए सिलिकॉन को पिघलाकर क्रिस्टल यानी सिलिकॉन इंगॉट में बदला जाता है। इस इंगॉट को पतले-पलते टुकड़ों में काटा जाता है, जिन्हें वेफर्स कहा जाता है। इन वेफर्स में फॉस्फोरस या बोरोन मिलाया जाता है। इसके बाद इन वेफर्स पर छोटे-छोटे इलेक्ट्रिक सर्किट बनाए जाते हैं। आखिर में वेफर को छोटे-छोटे चिप में काटकर प्लास्टिक या मेटल के कवर में पैक कर दिया जाता है।


जेवर एयरपोर्ट के पास बनने वाली यूनिट में हर महीने 20 हजार सिलिकॉन वेफर्स तैयार होंगे, जिनसे 3.6 करोड़ चिप बनेंगी। इस यूनिट में डिस्प्ले ड्राइवर चिप्स तैयार होंगी, जिनका इस्तेमाल मोबाइल फोन, कम्प्यूटर, लैपटॉप, ऑटोमोबाइल और डिस्प्ले से जुड़े उपकरण में होगा।


सेमीकंडक्टर चिप का इस्तेमाल मोबाइल फोन, कम्प्यूटर, लैपटॉप, टीवी, वॉशिंग मशीन, माइक्रोवेव, कार, इलेक्ट्रिक गाड़ियां, मेडिकल इक्विपमेंट, सोलर पैनल, मिसाइल, सैटेलाइट, डेटा सर्वर और राउटर जैसी कई इलेक्ट्रॉनिक चीजों में होता है।

 

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क्या 'न्यू ऑयल' है सेमीकंडक्टर

आज जितनी तेजी से दुनिया डिजिटल हो रही है, उसने सेमीकंडक्टर की अहमियत को बढ़ा दिया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की दुनिया में इसकी अहमियत और बढ़ जाती है। माना जाता है कि जिस तरह से 20वीं सदी में अर्थव्यवस्था का इंजर 'तेल' था, उसी तरह से 21वीं सदी में सेमीकंडक्टर होगा। 


कोविड के दौरान जब दुनियाभर में सेमीकंडक्टर की सप्लाई ठप पड़ गई थी तो इसने दुनिया की बड़ी कंपनियों को हिला दिया था। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इससे कंपनियों को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ था। सेमीकंडक्टर की कमी की तुलना 1970 के तेल संकट से की जाने लगी थी। यही कारण है कि सेमीकंडक्टर को 'न्यू ऑयल' कहा जाता है।

 


20वीं सदी में जिस तरह से तेल के संसाधनों पर कब्जा करने वाले देशों को बोलबाला रहा, उसी तरह से 21वीं सदी में सेमीकंडक्टर की दुनिया में दबदबा रखने वालों का बोलबाला होगा। सेमीकंडक्टर को इलेक्ट्रॉनिक चीजों का 'दिमाग' कहा जा सकता है, क्योंकि इसके बिना कोई भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण काम नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए, स्मार्टफोन में भी चिप होती है, जो प्रोसेसिंग करती है, मेमोरी संभालती है और स्क्रीन पर डिस्प्ले दिखाती है।


आज दुनियाभर में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है। सेमीकंडक्टर बनाने वाली भारतीय कंपनी Cyient के मुताबिक, 2024 में दुनियाभर में सेमीकंडक्टर की इंडस्ट्री 600 अरब डॉलर की थी। 2032 तक यह इंडस्ट्री 2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। अभी सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में ताइवान का दबदबा है। ताइवान की ताइवान सेमीकंडक्टर मैनुफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। दुनिया की लगभग 50% सेमीकंडक्टर चिप की मैनुफैक्चरिंग यही कंपनी करती है।

 

भारत कहां ठहरता है?

सेमीकंडक्टर की रेस में भारत अभी नया खिलाड़ी है। हालांकि, भारत इस इंडस्ट्री में तेजी से बढ़ रहा है। दुनिया की कई बड़ी कंपनियों के यहां प्लांट हैं लेकिन चिप बनाने वाले फैब्रिकेशन प्लांट या फैब यूनिट अभी लगभग न के बराबर है। एक फैब यूनिट को पूरी तरह से तैयार होने में 4 से 5 साल का वक्त लगता है। 


हालांकि, भारत ने खुद को सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले मैनुफैक्चरिंग इकोसिस्टम में फिट करने के लिए 'सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम' शुरू किया है। इसकी लागत 76 हजार करोड़ रुपये है। अमेरिकी डॉलर में यह रकम 10 अरब के बराबर बैठती है। भारत की तुलना में अमेरिका ने 50 अरब डॉलर से ज्यादा का इंसेंटिव देने का ऐलान किया है। वहीं, चीन इसके लिए 150 अरब डॉलर खर्च कर रहा है।


लेकिन भारत जैसे बड़े बाजार में सेमीकंडक्टर का आयात यानी इम्पोर्ट भी काफी तेजी से बढ़ रहा है। यह दिखाता है कि अभी मैनुफैक्चरिंग में भारत काफी पीछे है। 2023-24 में भारत ने 1.71 लाख करोड़ रुपये की सेमीकंडक्टर चिप का आयात किया था। 2022-23 की तुलना में यह 18.5 फीसदी ज्यादा था। 2022-23 में सेमीकंडक्टर का आयात 1.29 लाख करोड़ रुपये था।


अभी दुनिया के सेमीकंडक्टर मार्केट में ताइवान का दबदबा है। चीन धीरे-धीरे इस मार्केट में अपनी पकड़ बना रहा है। अनुमान है कि इस साल तक सेमीकंडक्टर मार्केट में चीन की हिस्सेदारी 24 फीसदी तक पहुंच जाएगी। इसके बाद अमेरिका है, जिसकी हिस्सेदारी 11 फीसदी के आसपास है।

 


हालांकि, एक अच्छी बात यह है कि भारत का सेमीकंडक्टर मार्केट तेजी से बढ़ रहा है। हाल ही में आई फाइनेंशियल सर्विसेस UBS की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2025 से 2030 तक भारत का सेमीकंडक्टर मार्केट सालाना 15 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। अभी भारत का सेमीकंडक्टर मार्केट 4.65 लाख करोड़ रुपये यानी 54 अरब डॉलर है। 2030 तक यह दोगुना होकर 9.3 लाख करोड़ रुपये यानी 108 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। यह रिपोर्ट बताती है कि 2030 में भारत में बनी चिप्स से 1.13 लाख करोड़ रुपये (13 अरब डॉलर) की कमाई होने की उम्मीद है। UBS की रिपोर्ट बताती है कि 2025 में ग्लोबल सेमीकंडक्टर मार्केट में भारत की हिस्सेदारी 6.5 फीसदी है।


भारत के साथ अच्छी बात यह भी है कि अभी दुनियाभर के 20% चिप डिजाइनर्स भारत में काम कर रहे हैं। इनमें इंटेल और क्वालकॉम जैसी मल्टीनेशनल कंपनियां भी हैं। हालांकि, सरकार सिर्फ चिप डिजाइनर बनकर नहीं रहने वाली है। सरकार पूरे देश में ही सेमीकंडक्टर का इकोसिस्टम खड़ा करना चाहती है। भारत ने अपनी लॉजिस्टिक कैपेबिलिटीज यानी सप्लाई चेन और इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए 1.4 ट्रिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट शुरू किए हैं, ताकि सेमीकंडक्टर के मार्केट में अपनी पैठ बढ़ा सके।

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