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डॉक्टर्स पर शर्तें, इंजीनियर्स को छूट, सर्विस बॉन्ड पर क्यों छिड़ी बहस

देश के डॉक्टरों को MBBS और MD की पढ़ाई पूरी करने के बाद सर्विस बॉन्ड के तहत 5 साल तक किसी सरकारी अस्पताल में काम करना पड़ता है। क्या यही नियम IIT से पढ़े इंजीनियरों पर भी लागू होता है?

IITians service bond debate

सांकेतिक तस्वीर, Photo Credit: Freepik

इसरो (ISRO) के पूर्व अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने एक इंटरव्यू में बताया कि IIT से पढ़े हुए छात्र अब इसरो जैसी बड़ी और देश की सेवा करने वाली संस्था में काम करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब इसरो की टीम IIT कॉलेजों में जाती है और छात्रों को इसरो की नौकरी और मिलने वाली सैलरी के बारे में बताती है, तो करीब 60% छात्र तो उसी वक्त पीछे हट जाते हैं। बहुत कम, सिर्फ 1% छात्र ही इसरो जॉइन करने का मन बनाते हैं।

 

अब इस पुराने इंटरव्यू की क्लिप फिर से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है और इसी बहस के बीच डॉक्टरों ने एक अहम मुद्दा उठाया है 'सर्विस बॉन्ड' यानी सरकारी नौकरी के लिए अनिवार्य सेवा शर्तें।  दरअसल, भारत में जो छात्र मेडिकल की पढ़ाई (MBBS) पूरी करते हैं, उन्हें अक्सर कुछ सालों तक सरकारी अस्पतालों या ग्रामीण क्षेत्रों में काम करना अनिवार्य होता है। इसे 'बॉन्ड सर्विस' कहा जाता है लेकिन IIT से इंजीनियर बनने वाले छात्रों पर ऐसी कोई शर्तें नहीं होती। उन्हें बिना किसी शर्त के देश या विदेश में कहीं भी नौकरी करने की पूरी आजादी होती है।

 

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डॉक्टरों के साथ हो रही नाइंसाफी?

इस बात से कई डॉक्टरों को लग रहा है कि उनके साथ नाइंसाफी हो रही है। उनका कहना है कि अगर देशसेवा के लिए डॉक्टरों पर जबरदस्ती बॉन्ड लागू किया जाता है, तो फिर इंजीनियरों, खासकर IIT ग्रैजुएट्स पर भी ऐसा क्यों नहीं होता? वे चाहते हैं कि सभी पेशों के साथ बराबरी का व्यवहार हो चाहे वह डॉक्टर हों या इंजीनियर। इस पूरे मामले से एक बड़ा सवाल उठता है कि क्या देशसेवा की जिम्मेदारी सिर्फ डॉक्टरों की है? या फिर ये सबके लिए बराबर होनी चाहिए?

 

इसरो के पूर्व प्रमुख एस. सोमनाथ के इस बयान पर अब 2 साल बाद किम्स अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर दीपक कृष्णमूर्ति ने सवाल उठाया कि आखिर सिर्फ डॉक्टरों पर ही सरकारी नौकरी के लिए बॉन्ड क्यों होता है? उन्होंने कहा कि IIT से निकले छात्रों पर भी ऐसा ही बॉन्ड होना चाहिए, जिससे वे ISRO, DRDO जैसी संस्थाओं में काम करें।

 

 

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2 डॉक्टरों ने उठाए सावल 

इसी तरह की बात कोझिकोड के सरकारी मेडिकल कॉलेज में कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. जी. राजेश ने भी कही। उन्होंने कहा कि अगर IIT वाले अमेरिका जाना चाहते हैं तो जाएं लेकिन डॉक्टरों को तो MBBS, MD या सुपर स्पेशलाइजेशन के बाद भी कुछ राज्यों में 10 साल तक का बॉन्ड पूरा करना पड़ता है। फिर IIT वालों को इतनी छूट क्यों दी जा रही है? सरकार उनके ऊपर भी तो बहुत पैसे खर्च करती है! सभी का कहना ये है कि जैसे डॉक्टरों को पढ़ाई के बाद सरकार के लिए काम करना जरूरी होता है, वैसे ही इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के लिए भी ये नियम होना चाहिए।

 

क्या है 'सर्विस बॉन्ड'?

'सर्विस बॉन्ड' का मतलब होता है सरकारी खर्चे से पढ़ाई करने के बाद तय समय तक सरकार के लिए काम करना। आसान भाषा में समझें तो अगर आप MBBS,MD या किसी और सरकारी स्कीम के तहत कम फीस या स्कॉलरशिप लेकर पढ़ाई करते हैं, तो बदले में सरकार कहती है 'हमने तुम्हारी पढ़ाई में पैसा लगाया है, अब तुम इतने साल हमारे लिए काम करो।' यह जो इतने साल काम करना जरूरी है उसी को सर्विस बॉन्ड कहते हैं। अगर कोई स्टूडेंट उस तय समय से पहले सरकारी नौकरी छोड़ देता है, तो उसे एक बड़ी रकम (जुर्माने के तौर पर) सरकार को चुकानी पड़ती है। इसे ही बॉन्ड अमाउंट कहते हैं।

 

उदाहरण के लिए

अगर किसी डॉक्टर ने सरकारी मेडिकल कॉलेज से MBBS किया और उसका 2 साल का सर्विस बॉन्ड है, तो उसे 2 साल किसी सरकारी अस्पताल में काम करना पड़ेगा। अगर वह नहीं करना चाहता, तो उसे बॉन्ड तोड़ने के बदले में ₹10 लाख या जितनी रकम तय की गई है, उतनी भरनी पड़ेगी।

सरकार ऐसा इसलिए करती है ताकि जो गरीब या दूर-दराजके इलाके हैं, वहां डॉक्टर या प्रोफेशनल्स की कमी न हो। सरकारी पैसे से पढ़े लोग समाज को कुछ लौटाएं लेकिन यही नियम IIT जैसे संस्थानों पर आमतौर पर लागू नहीं होता। 

 

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किन-किन राज्यों में सर्विस बॉन्ड?

भारत में सर्विस बॉन्ड नियम हर राज्य में एक जैसा नहीं होता। हर राज्य सरकार अपने हिसाब से तय करती है कि मेडिकल, डेंटल या अन्य सरकारी कोर्सेस के स्टूडेंट्स को पढ़ाई के बाद कितने साल काम करना होगा और कितना बॉन्ड अमाउंट देना पड़ेगा अगर वे काम नहीं करते।

 

तमिलनाडु
MBBS: कोई सर्विस बॉन्ड नहीं (पहले था लेकिन अब हटा दिया गया)।

PG (MD/MS): लगभग 2 साल का सर्विस बॉन्ड।

बॉन्ड अमाउंट: 40–50 लाख तक (PG के लिए)।

 

केरल
MBBS: 1 साल का बॉन्ड (कुछ समय पहले तक लागू था)।

PG: 1–2 साल का बॉन्ड।

बॉन्ड तोड़ने पर जुर्माना देना पड़ता है।

 

कर्नाटक
MBBS: 1 साल का बॉन्ड।

PG: 3 साल तक का बॉन्ड हो सकता है।

बॉन्ड अमाउंट: 10–50 लाख तक (कोर्स के अनुसार)।

 

महाराष्ट्र
MBBS: 1 साल का बॉन्ड।

PG: 1 साल या उससे ज़्यादा।

नौकरी नहीं की तो 10–25 लाख तक जुर्माना।

 

राजस्थान
MBBS/PG: 2 साल तक का बॉन्ड।

बॉन्ड अमाउंट: 5–25 लाख तक।

 

उत्तर प्रदेश (UP)
MBBS: 2 साल का सर्विस बॉन्ड।

PG: 1–2 साल का बॉन्ड।

जुर्माना: 10–20 लाख तक हो सकता है।

 

उत्तराखंड, हिमाचल, पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में भी सर्विस बॉन्ड लागू हैं, खासकर मेडिकल PG में।

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