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MR श्रीनिवासन: भारत को परमाणु ऊर्जा का खिलाड़ी बनाने वाले का निधन

डॉ. एमआर श्रीनिवासन नहीं रहे। 95 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। डॉ. श्रीनिवासन को भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम का आर्किटेक्ट कहा जाता है।

mr srinivasan

एमआर श्रीनिवासन। (Photo Credit: Social Media)

आज अगर भारत परमाणु ऊर्जा यानी न्यूक्लियर एनर्जी में आत्मनिर्भर है तो इसका श्रेय एमआर श्रीनिवासन को जाता है। श्रीनिवासन ने दुनिया को अलविदा कर दिया है। मंगलवार को 95 साल की उम्र में उनका निधन हुआ। उन्हें भारत के सिविल न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम का आर्किटेक्ट कहा जाता है। 


परमाणु विज्ञान और इंजीनियरिंग में उनके योगदान के लिए उन्हें दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने श्रीनिवासन के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि उनका जाना वैज्ञानिक समुदाय के लिए बड़ी क्षति है।

न्यूक्लियर प्रोग्राम के आर्किटेक्ट

एमआर श्रीनिवासन का पूरा नाम डॉ. मलूर रामास्वामी श्रीनिवासन था। 5 जनवरी 1930 को जन्मे श्रीनिवासन परमाणु वैज्ञानिक और मैकेनिकल इंजीनियर थे। उनका जन्म बेंगलुरु में हुआ था और उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियर में ग्रेजुएशन करने के बाद कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी से गैस टरबाइन टेक्नोलॉजी में PhD की थी।


उन्होंने 1955 में परमाणु ऊर्जा विभाग से अपना करियर शुरू किया था। उन्होंने भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले डॉ. होमी भाभा के साथ मिलकर काम किया था।

 

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6 पॉइंट्स में श्रीनिवासन का करियर

  • 1956: सितंबर 1955 में परमाणु ऊर्जा विभाग से अपना करियर शुरू करने के बाद श्रीनिवासन ने 'अप्सरा' प्रोजेक्ट पर काम किया था। अप्सरा भारत का पहला न्यूक्लियर रिसर्च रिएक्टर था। यह कामयाबी मील का पत्थर थी, क्योंकि इसने भारत को उन देशों के बराबर खड़ा कर दिया था, जिनके पास न्यूक्लियर रिसर्च रिएक्टर था।
  • 1959: इस साल उन्हें भारत के पहले न्यूक्लियर पावर स्टेशन के लिए प्रिंसिपल प्रोजेक्ट इंजीनियर नियुक्त किया गया था। यह भारत की स्वदेशी परमाणु ऊर्जा क्षमता को विकसित करने की दिशा में बड़ा कदम था।
  • 1967: मद्रास एटॉमिक पावर स्टेशन के लिए उन्हें चीफ प्रोजेक्ट इंजीनियर नियुक्त किया गया। यह एक और बड़ी उपलब्धि थी, जिसने भारत के न्यूक्लियर एनर्जी सेक्टर को आगे बढ़ाया। मद्रास प्लांट इसलिए भी काफी अहम था, क्योंकि इसने भारत की परमाणु सुविधाओं के निर्माण और प्रबंधन की क्षमता को मजबूत किया।
  • 1974: राजस्थान के पोखरण में भारत ने पहला न्यूक्लियर टेस्ट किया था। इससे नाराज होकर कनाडा ने भारत के साथ परमाणु सहयोग खत्म कर दिया था। तब श्रीनिवासन ने इसे चुनौती के तौर पर लिया और भारत के परमाणु कार्यक्रम को स्वदेशी रूप से आगे बढ़ाने में भूमिका निभाई।
  • 1984: इस साल श्रीनिवास को न्यूक्लियर पावर बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। यह भारत के एटॉमिक एनर्जी सेटअप में सबसे ऊंचे पदों में से एक है। इस पद पर रहते हुए उन्होंने देश के न्यूक्लियर पावर प्लांट के विकास में अहम भूमिका निभाई थी।
  • 1987: इस साल उन्हें एटॉमिक एनर्जी कमिशन का अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग का सचिव नियुक्त किया गया। श्रीनिवासन इस पर 1990 तक रहे। 1987 में ही वे न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) के संस्थापक अध्यक्ष भी बने।

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इसलिए हमेशा याद किए जाएंगे श्रीनिवासन

भारत में परमाणु ऊर्जा का विकास करने में एमआर श्रीनिवासन का अहम योगदान रहा है। श्रीनिवासन के निधन पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने X पर लिखा, 'होमी भाभा ने खुद श्रीनिवासन को चुना था और उन्होंने 60 के दशक के आखिर में तारापुर में भारत के पहले न्यूक्लियर पावर प्लांट की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी। बाद में उन्होंने कलपक्कम में भारत के न्यूक्लियर पावर कॉम्प्लेक्स की स्थापना करने वाली टीम को लीड किया था।'

 


जयराम रमेश ने लिखा, 'यह उनकी लीडरशिप ही थी कि मई 1974 में पहले न्यूक्लियर टेस्ट के बाद भारत ने कनाडा के अलग होना का मजबूती से सामना किया। कलपक्कम, रावतभाटा, कैगा, काकरापार और नरोरा में अभी जो न्यूक्लियर पावर प्लांट है, वह उनके योगदान के सबूत हैं।'


NPCIL का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने अपने कार्यकाल में देश में 18 न्यूक्लियर पावर यूनिट को मंजूरी दी थीं। उनके पद पर रहते हुए 7 शुरू भी हो गई थीं और 7 पर काम चल रहा था जबकि 4 पर काम शुरू होने वाला था।

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