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बोधगया: जहां बुद्ध को मिला ज्ञान, वहां धरने पर भिक्षु, चाहते क्या हैं?

बौद्ध समुदाय की मांग है कि उन्हें महाबोधि मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया जाए। सैकड़ों बौद्ध भिक्षु यहां कई दिनों से अनशन पर बैठे हैं। माजरा क्या है, आइए समझते हैं।

Mahabodhi Protest

महाबोधि परिसर में धरने पर बैठे श्रद्धालु। (Photo Credit: X/AIB_Forum)

हाथों में संविधान, आंखों में काली पट्टी और अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणियां। बिहार के बोधगया की महाबोधि मंदिर के बाहर कई दिनों से ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। बौद्ध संतों का एक बड़ा समूह धरने पर है, मांग यह है कि 'बोध गया मंदिर अधिनियम 1949' को खत्म कर दिया जाए और महाविहार का प्रबंधन, बौद्धों को सौंप दिया जाए।

बिहार के बोधगया में महाबोधि मंदिर के पास सैकड़ों बौद्ध अनुयायी सड़क पर अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं। बौद्ध संतों की मांग है कि महाबोधि महाविहार मंदिर को गैर बौद्धों के नियंत्रण से पूरी तरह मुक्त कर दिया जाए। उनका कहना है कि इस मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्ध समाज के लोगों के हाथों में ही हो।

12 फरवरी से ही हड़ताल पर हैं संत
बौद्ध संत 12 फरवरी से ही अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर हैं। वे सर्दी में खुले आसमान के नीचे शांतिपूर्ण तरीके से धरना दे रहे हैं। उनकी मांग है कि बौद्धों के धार्मिक मामलों, परिसरों से सरकारी हस्तक्षेत खत्म हो जाए, महाबोधि मंदिर का प्रबंधन बौद्ध समुदाय को मिले। महाबोधि मंदिर के बाहर देश के कोने-कोने से बौद्ध संत जुट रहे हैं। सैकड़ों बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणियां एक सुर से मांग कर रहे हैं कि बोधगया का महाबोधि महाविहार बौद्धों को सौंप दिया जाए। 

उनका कहना है कि बोध गया टेंपल एक्ट 1949 को खत्म खत्म कर दिया जाए, बौद्धों के हक में न्याय किया जाए। यह अधिनियम बौद्ध मंदिर की देखरेख और प्रबंधन से जुड़ा है। 6 जुलाई 1949 से ही यह अस्तित्व में है। बौद्ध संत दशकों से मांग कर रहे हैं इस कानून को हटा दिया जाए।

महाबोधि परिसर में धरने पर बैठे श्रद्धालु। (Photo Credit: X/AIB_Forum)





किस प्रावधान पर है ऐतराज?
महाबोधि मंदिर की देखरेख सही हो, मूर्तियां संरक्षित रहें, प्रबंधन दुरुस्त रहे, इसलिए साल 1949 में बोध गया मंदिर अधिनियम बनाया गया था। बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी (BTMC) की 9 सदस्यीय टीम, मंदिर के प्रबंधन में शामिल है। 9 सदस्यों में सिर्फ 4 सदस्य बौद्ध होते हैं, दूसरे सदस्य गैर बौद्ध हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इस बोर्ड में ब्राह्मणों का बोलबाला है, जिसकी वजह से असंतुलन है। बौद्ध समुदाय के मूल्यों और हितों को नजर अंदाज किया जा रहा है। बौद्ध भिक्षु इस अधिनियम के हटाने का मांग कर रहे है। उनकी मांग है कि इसकी जगह नई स्वायत्त संस्था 'महाबोधि महाविहार चैत्य ट्रस्ट का गठन हो। बौद्ध समुदाय का ही इस मंदिर पर पूरी तरह से नियंत्रण हो। 

बौद्ध या हिंदू मंदिर, विवाद क्या है?
देश में हिंदुओं के कई ऐसे मंदिर हैं, जिन्हें बौद्ध धर्म के कुछ संत बौद्ध मठ बताते रहे हैं। ज्यादातर बौद्धकालीन मंदिरों को बौद्ध मंदिर होने का दावा किया जाता है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश से लेकर बिहार तक ऐसे मंदिरों की एक बड़ी ऋृंखला है। तमिलनाडु के तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर पर भी बौद्ध संतों का एक धड़ा दावा करता है कि यह बौद्ध मंदिर था। महाबलीपुरम, एलोरा, अजंता, खजुराहो के कई मंदिरों को बौद्ध मंदिर बताया जाता है। 

महाबोधि परिसर में धरने पर बैठे श्रद्धालु। (Photo Credit: X/AIB_Forum)



क्या है अखिल भारतीय बौद्ध मंच की मांग?
अखिल भारतीय बौद्ध मंच का कहना है, 'बोधगया का महाबोधि विहार बौद्धों के लिए दुनियाभर में पवित्र स्थल है। यूनेक्सो का विश्व धरोहर स्थल है। यहां बोधगया मंदिर अधिनियम 1949 के तहत शासन चल रहा है, यह लाखों बौद्धों के अधिकारों का उल्लंघन है।'



अखिल भारतीय बौद्ध मंच ने अपने ज्ञापन में कहा, 'महाबोधि महाविहार में भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। यह दुनिया भर के 50 करोड़ से ज्यादा बौद्धों के आध्यात्मिक महत्व का स्थल है। वैश्विक और धार्मिक महत्व के बाद भी मंदिर का प्रबंधन बिहार सरकार बोधगया मंदिर अधिनियम 1949 के तहत कर रही है। यह बौद्धों को उनकी धार्मिक प्रथाओं और विरासत को प्रबंधित और संरक्षित के हक से रोकता है। बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति की मौजूदा संरचना बौद्धों के धार्मिक और संवैधानिक अधिकारों को कमजोर कर रही है।'

देशभर से जुट रहे बौद्ध श्रद्धालु
बोधगया मंदिर अधिनियम का विरोध ऐसे वक्त में हो रहा है, जब बिहार में चुनाव भी होने वाले हैं। बौद्ध समुदाय से जुड़े कुछ संगठनों ने कहा है कि अगर सरकार ने उनकी बात नहीं मानी तो वे उनके खिलाफ वोट करेंगे। बौद्धों के इस प्रदर्शन से देशभर के बौद्धिक संगठन जुड़े हैं। श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार और श्रीलंका जैसे देशों के बौद्ध संगठनों ने इसे समर्थन दिया है। आंदोलनकारियों का कहना है कि हर समुदाय के मंदिरों से जुड़े अधिनियमों में उसी समुदाय से जुड़े लोगों को अधिकार दिया जाता है लेकिन यहां ऐसी स्थिति नहीं है। हमें हमारा ही अधिकार नहीं दिया जा रहा है। 

मंदिर अधिनियम में क्या कमी बता रहे लोग? 
मंदिर अधिनियम में कहा गया है कि यहां न तो बौद्धों को प्रवेश से रोका जाएगा न हिंदुओं को। हिंदू यहां पिंडदान और पूजा कर सकते हैं। अगर बौद्धों और हिंदुओं में विवाद की स्थिति बनती है तो बिहार सरकार का निर्णय ही अंतिम निर्णय होगा। 

महाबोधि परिसर में धरने पर बैठे श्रद्धालु। (Photo Credit: X/AIB_Forum)



क्या चाहते हैं बौद्ध संत?
बौद्ध संतों की मांग है कि यह अधिनियम पूरी तरह से निरस्त कर दिया जाए और मंदिर का प्रबंधन बौद्ध समुदायों को सौंप दिया जाए। 

विवाद की और वजहें क्या हैं?
बौद्ध संतों को इस बात से भी ऐतराज है कि मंदिर प्रबंधन से जुड़े कुछ लोग वहां मौजूद भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों की 4 मूर्तियों को 5 पांडवों की मूर्ति बता देते हैं। महाबोधि महाविहार में बुद्ध की कुछ मूर्तियों को ब्राह्मण पुजारिोयं ने कपड़े पहना दिए और पांचों पांडव और कुंती के तौर पर प्रचारित कर दिया। तब भी हंगामा मचा था। सोशल मीडिया पर यह वीडिोय वायरल हो गया था। महाबोधि परिसर में पिंडदान को लेकर भी आवाजें उठती हैं। 

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