क्या है वह पेच जिस कारण CBI को लेनी पड़ती है राज्यों की मंजूरी?
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• NEW DELHI 28 Mar 2025, (अपडेटेड 28 Mar 2025, 2:19 PM IST)
संसदीय समिति ने CBI को लेकर एक नया और अलग कानून बनाने की सिफारिश की है, ताकि एजेंसी को जांच के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेने की जरूरत न पड़े।

प्रतीकात्मक तस्वीर। (Photo Credit: PTI)
केंद्र की जांच एजेंसी CBI को लेकर एक नया कानून बनाने की सिफारिश की गई है। संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि जांच के लिए CBI को राज्यों की अनुमति न लेनी पड़े, इसके लिए एक कानून बनाया जाए।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब संसदीय समिति ने CBI की राज्यों में एंट्री को लेकर एक नया और अलग कानून बनाने की सिफारिश की है। इससे पहले भी संसदीय समिति ऐसी सिफारिश कर चुकी है। अब संसदीय समिति की सिफारिश है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा कोई मामला हो तो उसकी जांच के लिए CBI को राज्यों की अनुमति न लेनी पड़े, इसलिए कानून बनाया जाए।
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मगर ऐसी सिफारिशें क्यों?
दरअसल, अभी CBI अगर किसी राज्य में किसी मामले की जांच करने जाती है तो उसके लिए राज्य सरकार की अनुमति लेनी होती है। पिछले कुछ सालों में सामने आया है कि कई राज्य सरकारों ने CBI को जांच की अनुमति नहीं दी है। इससे केंद्र और राज्य के बीच टकराव हुआ है।
अभी कई राज्य ऐसे हैं, जहां CBI की एंट्री बैन है। झारखंड, पंजाब, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, केरल, मिजोरम, तमिलनाडु में CBI की एंट्री पूरी तरह से बैन है। महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में भी CBI की एंट्री पर रोक लगा दी थी लेकिन यहां बीजेपी की सरकार बनने के बाद इस रोक को हटा दिया गया।
पिछले साल जुलाई में मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ने भी CBI जांच को लेकर एक नया नोटिफिकेशन जारी किया था। अब अगर राज्य सरकार से जुड़े किसी अफसर या कर्मचारी के खिलाफ जांच करनी है तो उसके लिए CBI को लिखित अनुमति लेनी पड़ेगी। हालांकि, केंद्र सरकार के अफसर-कर्मचारियों की जांच पर यह नियम लागू नहीं होता।
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लेकिन CBI को अनुमति की जरूरत क्यों?
CBI का गठन दिल्ली पुलिस एस्टैब्लिशमेंट एक्ट 1946 के तहत हुआ है। इस कानून की धारा 6 कहती है कि केंद्र सरकार और रेलवे को छोड़कर बाकी सभी मामलों की जांच के लिए CBI को राज्य सरकार की लिखित अनुमति लेनी होगी।
राज्य सरकारों की तरफ से CBI को दो तरह की अनुमति दी जाती है। एक अनुमति किसी खास मामले की जांच से जुड़ी होती है और दूसरी 'सामान्य सहमति' होती है। आमतौर पर ज्यादातर राज्य सरकारों ने CBI को 'सामान्य सहमति' दे रखी है। ऐसी स्थिति में CBI को जांच के लिए राज्य सरकार की अनुमति की खास जरूरत नहीं पड़ती।
जब कोई राज्य सरकार 'सामान्य सहमति' वापस ले लेती है तो CBI को हर जांच के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। सहमति वापस लिए जाने पर CBI उस राज्य के किसी अफसर-कर्मचारी के खिलाफ केस भी दर्ज नहीं कर सकती।
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तो क्या राज्य में जांच नहीं कर सकती CBI?
अगर कोई राज्य सामान्य सहमति वापस ले लेती है तो CBI को वहां छोटी-छोटी कार्रवाई के लिए भी सरकार की अनुमति लेनी होती है।
असल में CBI खुद से कोई जांच शुरू नहीं करती है। CBI तभी किसी मामले की जांच करती है, जब हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट या केंद्र सरकार से आदेश मिलता है। मामला किसी राज्य का है तो वहां की सरकार की अनुमति जरूरी होती है।
हालांकि, अघर किसी राज्य ने सामान्य सहमति वापस ले ली है तो इसका मतलब यह नहीं हुआ कि CBI वहां जाकर जांच नहीं कर सकती। अगर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का आदेश होता है तो CBI उस राज्य में जाकर जांच भी करती है। पिछले साल कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के रेप और मर्डर का मामला सामने आया था। बाद में कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर मामले की जांच CBI को सौंपी गई थी। अभी इस मामले की जांच CBI ही कर रही है।
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बाकी एजेंसियों के लिए क्या?
CBI केंद्र की जांच एजेंसी है, लेकिन कानूनन इसे राज्य सरकार की अनुमति लेनी होती है। हालांकि, केंद्र की बाकी एजेंसी ED या NIA को राज्यों की अनुमति की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसा इसलिए क्योंकि ED और NIA की जांच का दायरा राज्यों तक सीमित नहीं है।
ED के अधिकार में मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों की जांच करती है। ऐसे अपराध आर्थिक और अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति के होते हैं, जो राज्य की सीमाओं से परे होते हैं, इसलिए इन्हें केंद्रीकृत रखा गया है। इसलिए राज्यों की अनुमति नहीं लेनी पड़ती।
इसी तरह, NIA आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों की जांच करती है। NIA एक्ट की धारा 6 में साफ लिखा है कि केंद्र सरकार किसी भी मामले की जांच NIA को सौंप सकती है और इसके लिए राज्यों की सहमति जरूरी नहीं है।
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