अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन। दुनिया के ये 5 देश ऐसे हैं जो परमाणु हथियारों पर एकाधिकार चाहते हैं। ये चाहते हैं कि दुनिया अपने परमाणु हथियारों को नष्ट कर दे और सारे परमाणु हथियार इन्हीं देशों के पास रहें, जिससे ये दुनिया को अपने इशारे पर नचा सकें। जो देश, इनके नियमों को नहीं मानते हैं, उन पर प्रतिबंध लगाए जाते हैं। इन प्रतिबंधों का खामियाजा, किम जोंग का देश नॉर्थ कोरिया भुगत रहा है। अमेरिका की यही चाहत तब भी थी, जब भारत ने अपना पहला परमाणु टेस्ट किया।
साल था 1974। वैश्विक घटनाक्रम इस ओर इशारा कर रहे थे कि अगर भारत ने परमाणु हथियार नहीं बनाए तो पड़ोसी पाकिस्तान और चीन जीने नहीं देंगे। तब देश की प्रधानमंत्री थीं इंदिरा गांधी। उनके बारे में लोगों ने यही लिखा है कि जब वे ठान लेती थीं तो वे अपने किसी फैसले से पीछे नहीं हटती थीं।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वह कर दिखाया, जिससे अमेरिका चिढ़ता था। साल 1945 के द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका के बाद बाद संयुक्त राष्ट्र ने एक समझौता पत्र जारी किया, जिसे न्यूक्लियर नॉनप्रिलिफेरेशन ट्रिटी (NPT) का दर्जा दिया गया। देशों के बीच हस्ताक्षर हुए कि 1 जनवरी 1967 के बाद कोई परमाणु हथियार नहीं बनाएगा। इस समझौते की सबसे बड़ी खामी ये थी कि उस पर बात ही नहीं की गई कि जिनके पास पहले से हथियार हैं वे क्या करें। भारत ने इस समझौते का तभी विरोध जता दिया। वजह थी भारत की अपनी सुरक्षा।
कैसे भारत बना परमाणु ताकत
भारतीय परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा और विक्रम साराभाई ने परमाणु का पूरा खाका तैयार कर लिया था। प्लान था कि जनवरी में ही देश में परमाणु ऊर्जा का परीक्षण होगा। साल 1954 में डिपार्टमेंट ऑफ एटमिक एनर्जी (DAE) की स्थापना हुई। इसके निदेशक बने भाभा। डॉ। भाभा परमाणु ऊर्जा को लेकर बहुत महत्वाकांक्षी थे। उनका कहना था कि अगर भारत अपने परमाणु ऊर्जा तंत्र को विकसित कर लेता है तो ऊर्जा के क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर हो जाएगा।
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को परमाणु ऊर्जा पर संदेह था, वे इसे बढ़ावा नहीं देना चाहते थे। साल 1960 तक बहुत कुछ देश में बदल गया था। 1962 की हार से देश ने सबक ली थी। चीन ने 1964 में परमाणु परीक्षण कर लिया। पाकिस्तान से 1965 में लड़ाई छिड़ी और 1971 में भी फिर लड़ाई छिड़ी। दोनों लड़ाइयों में देश को जीत मिली। अब भारत का प्लान बदल गया। जिस परमाणु परीक्षणों से देश बचता था, अब उसे करने की बारी आ गई।
नेहरू बचते थे, इंदिरा भिड़ती थीं
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू परमाणु हथियार नहीं चाहते थे, इंदिरा गांधी चाहती थीं। उनका नजरिया परमाणु हथियारों को लेकर बेहद साफ था। भारत ने परमाणु परीक्षण का प्लान तो बनाया लेकिन दुनिया को कानोंकान इसकी खबर नहीं मिली। राजा रममन्ना, पीएन हसकर और पीएन धार इंदिरा गांधी के मुख्य सलाहकार थे। दोनों को यह प्लान पसंद नहीं था। एटमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमन होमी सेठना चुप थे। रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डी नाग चौधरी भी चुप थे। इंदिरा गांधी ने एटमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन राजा रमन्ना से कहा कि आप परमाणु परीक्षण कीजिए। यह देश के लिए बेहतर साबित होगा।
कैसे हुआ पहला पोखरण टेस्ट?
न्यूक्लियर डिवाइस को पूरी तरह से तैयार किया गया। इसमें 12 से 13 किलोटन टीएनटी प्लांट किया गया। 18 मई 1974 को यह तय हुआ कि परीक्षण पोखरण में होगा। राजस्थान का यह इलाका रेत से पटा हुआ था। इस प्रोजेक्ट में कुल 75 वैज्ञानिक शामिल रहे। देश का प्लान सफल हो गया। टेस्ट हुआ। इसका कोड नाम स्माइलिंग बुद्धा रखा या था। इस परीक्षण को शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट (PNE) नाम दिया गया। 1967 से लेकर 1974 तक वैज्ञानिकों ने कई साल इस प्रोजेक्ट पर काम किया था। जब टेस्ट हो गया तो आकाशवाणी पर घोषणा हुई की सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर 18 मई 1974 को भारत ने पश्चिमी भारत के एक अज्ञात स्थान पर शांतिपूर्ण कार्यों के लिए भूमिगत परमाणु परीक्षण किया है।'
इस फैसले का असर क्या हुआ?
भारत के इस फैसले की दुनिया में आलोचना हुई।अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने नॉन प्रोलिफेरेशन एक्ट पर दस्तखत कर दिया। भारत पर प्रतिबंध लगाए गए। इसी राह पर कनाडा चला। भारत के साथ परमाणु मुद्दों पर चर्चा ब्रिटेन ने भी टाल दिया। भारत पर अब भी प्रतिबंध हैं। देश में पोखरण-2 के बाद कोई परमाणु परीक्षण नहीं हुआ। दुनिया में एक संदेश लेकिन साफ गया कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए वैश्विक प्रतिबंधों को दरकिनार करके कोई भी कदम उठा सकता है। भारत स्वतंत्र है और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा का हुनर इसे आता है।