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सिंधु जल समझौते पर 'दुश्मनी' का असर, बेअसर क्यों?

भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में दुश्मनी है, रंजिश है, सियासत है लेकिन सिंधु जल संधि पर इसका असर नहीं होता है। वजह क्या है, आइए समझते हैं।

Sidhu water treaty

भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता 1960 में हुआ था। (फोटो क्रेडिट- britannica.com/Pierre-Jean DURIEU)

तिब्बत के मानसरोवर झील से निकलकर, लद्दाख के रास्ते पाकिस्तान तक जाने वाली सिंधु नदी, पाकिस्तान की जीवनरेखा कही जाती है। यह पाकिस्तान की सबसे लंबी नदियों में से एक है। यह नदी, कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र से गुजरकर पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों से होकर बहती है। साल 1947 में जब देश का विभाजन हुआ, तब भारत और पाकिस्तान के बीच इसके पानी को लेकर विवाद बढ़ने लगा। सिर्फ सिंधु ही नहीं, सहायक नदियों के पानी के हक पर भी विवाद बढ़ा। सिंधु नदी की 5 सहायक नदियां भी हैं। झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास और सुतलज। यह समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल मोहम्मद अयूब खान के बीच हुआ था।

19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें सिंधु नदी के पानी पर अधिकार को लेकर कुछ शर्तें तय हुईं। इसलिए ही इस समझौते को सिंधु जल समझौता भी कहते हैं। समझौते में नदियों के पानी का बंटवारा हुआ था। भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध कितने तनावपूर्ण क्यों न हों, दुश्मनी कितनी भी क्यों न बढ़ जाए, इस समझौते को खारिज नहीं किया जा सकता। भारत नदियों के प्रवाह को पूरी तरह से रोक नहीं सकता है, न ही इनकी दिशा बदल सकता है।

सिंधु जल समझौते का मकसद क्या था?
भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों की बहुसंख्यक आबादी किसान है। आजादी के करीब दो दशक बाद, विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच कराची में सिंधु-तास समझौता हुआ था। दोनों देश, गांवों में बसते हैं। साझा संस्कृति और विरासत वाले इन देशों में रहने वाले किसानों के लिए यह समझौता बेहद अहम है। इसे दोनों देशों के बीच दोस्ती को मजबूत करने वाला समझौता माना जा रहा था लेकिन दोनों देशों के खराब संबंध आए दिन, इस समझौते को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। राष्ट्रवादियों का एक धड़ा कहता कि पाकिस्तान को मिलने वाला पानी रोक दिया जाना चाहिए। वैश्विक नियम-कानून कहते हैं कि नदियों के पानी पर किसी एक देश का हक नहीं हो सकता।

क्या है सिंधु जल समझौता?
समझौते के मुताबिक भारत सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का पानी, पाकिस्तान को देता है। भारत ने 30 अगस्त 2024 को पाकिस्तान को औपचारिक नोटिस भेजा था। भारत ने इस संधि की समीक्षा और संशोधन पर विचार करने के लिए कहा है। पाकिस्तान नहीं चाहता है कि इस संधि में कोई बदलाव हो। भारत में आबादी बढ़ने के साथ-साथ पानी की खपत भी बढ़ी है। भारत का तर्क है कि कृषि और दूसरे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अब संधि में बदलाव होना चाहिए।

भारत ने सिंधु जल समझौता (IWT) के अनुच्छेद XXI (3) के तहत समझौते पर विचार करने के लिए कहा है। यह अनुच्छेद कहता है कि इसे समय-समय पर दोनों सरकारों के बीच संशोधित किया जा सकेगा। भारत की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वह पाकिस्तान की ओर बहने वाली नदियों के पानी को कंट्रोल कर सकता है। पाकिस्तान चाहता है कि इन नदियों के पानी को भारत न रोके, इन्हें सीधे ही पाकिस्तान में जाने दे। भारत एक बड़ा देश है, जिसकी पानी की अपनी जरूरतें हैं। पाकिस्तान चाहता है कि ज्यादा से ज्यादा पानी, उसे मिले।
  

हेज स्थित पर्मानेंट कोर्ट ऑफ अर्बिटरेशन (PCA) से पाकिस्तान ने पर्यावरण के आधार पर अनुच्छेद IV (6) के तहत राहत मांगी थी। PCA ने भारत के हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स पर रोक नहीं लगाई। भारत के किशनगंगा प्रोजेक्ट पर शर्त बस इतनी लगाई गई कि भारत कम से कम 9 क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड की न्यूतनम जलधारा, प्रवाहित होने देगा। यह नियम, पश्चिमी सहायक नदियों पर भी लागू होगा।

क्या नदियों के पानी को रोक सकता है भारत?
भारत के लिए पानी का न्यूतनम प्रवाह बरकरार रख पाने में कई मुश्किलें हैं। इसे नियमित करने के लिए बेहतर जल प्रबंधन और विस्तृत तटीय इलाके की जरूरत है। सिंधु जल समझौते के मुताबिक जल प्रवाह को पूर्वी और पश्चिमी भाग में बांटा गया है। समझौते का अनुच्छेद II कहता है कि भारत का पूर्वी नदियों पर अधिकार है। इन नदियों में रावी, सुतलज और ब्यास है। वहीं पाकिस्तान के अधिकार पश्चिमी नदियों पर है। अनुच्छेद III के मुताबिक सिंधु, झेलम और चेनाब के पानी पर पाकिस्तान का अधिकार है। इन नदियों के 80 फीसदी पानी पर पाकिस्तान का हक है। 

सिंधु जल समझौते से दोनों देश बंधे हैं। भारत नदियों के पानी को कंट्रोल कर सकता है लेकिन मनमाने ढंग से नहीं। समझौते के मुताबिक दोनों देशों को ध्यान रखना होगा कि वे नदियों का दोहन इस हद तक न करें, जिससे किसी को नुकसान पहुंचे। सिंधु जल समझौता, एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, इसलिए द इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (IJC) के साल 2010 के उरुग्वे रिवर केस पर दिए गए फैसले का भी पालन, करना होगा। इस फैसले में ICJ ने कहा था कि अगर दो देशों की सीमाओं के बीच पर्यावरण हित प्रभावित होते हैं तो पर्यावरण प्रभाव की समीक्षा करनी चाहिए भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में अगर इसे देखें तो दोनों देशों को पहले यह समीक्षा कर लेनी चाहिए कि उनके इन फैसलों का असर क्या होगा।
 

भारत किन शर्तों पर चाहता है बदलाव?
भारत के पास इन नदियों पर हाइड्रो थर्मल प्लांट लगाने का हक है। भारत इसके पानी को रोक नहीं सकता, इसकी धाराओं में बदलाव नहीं कर सकता है। भारत पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण करता है तो पाकिस्तान आपत्ति जताता है। पाकिस्तान का कहना है कि इससे उसे मिलने वाला पानी कम हो जाएगा। साल 1978 में बगलिहार बांध के मुद्दे पर टकराव बढ़ा था। वहीं किशनगंगा परियोजना पर भी हंगामा बरपा था। यह मामला अंतरराष्ट्रीय कोर्ट तक पहुंचा था, जिसे सिंधु आयोग की बैठकों में सुलझा लिया गया था। भारत और पाकिस्तान के बीच कितने भी बुरे संबंध क्यों न हों, सिंधु समझौते को प्रभावित नहीं किया जा सकता क्योंकि नदियों को अंतराष्ट्रीय सम्मेलन, नियम और कानूनों के हिसाब से ही डील किया जाता है। इन नियमों को जल विशेषज्ञ और वैज्ञानिकों की राय के साथ तैयार की जाती है। 

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