बांग्लादेश के रंगपुर डिवीजन के लालमोनिरहाट में द्वितीय विश्व के समय का एयरबेस है। बांग्लादेश इस एयरबेस को अपग्रेड कर रहा है। उसने चीन से मदद मांगी है। चीन ने भी इस एयरबेस पर अपनी रूचि जाहिर की है, लेकिन सामरिक लिहाज से भारत इसे खतरे के तौर पर देखता है। कुछ समय पहले ही चीनी अधिकारियों ने लालमोनिरहाट का दौरा भी किया। बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस के सत्ता में काबिज होने के बाद से ही वहां भारत विरोधी रुख को खाद-पानी मिल रहा है, लेकिन अब भारत भी उसी तर्ज पर बांग्लादेश को जवाब देने की तैयारी में है। भारत ने त्रिपुरा के कैलाशहर में स्थित 1971 युद्ध के एयरबेस को एक्टिव करना शुरू कर दिया है।
चीन लंबे समय से भारत के करीब अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाना चाहता है। उसने श्रीलंका और मालदीव में दांव चला, लेकिन उतनी कामयाबी नहीं मिली। अब बांग्लादेश ने खुद ही चीन को लालमोनिरहाट एयरबेस पर अपनी मौजूदगी का न्योता दिया है। यह एयरबेस भारत-बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा से 20 किमी दूर है। लालमोनिरहाट एयरबेस का सिलीगुड़ी कॉरिडोर यानी चिकन नेक के बेहद करीब होना भारत के लिए चिंता का सबब है।
अंग्रेजों ने किया था लालमोनिरहाट एयरबेस का निर्माण
आजादी से पहले लालमोनिरहाट भारत का हिस्सा था। साल 1931 में अंग्रेजों ने यहां एयरबेस का निर्माण करवाया। यहां दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी हवाई पट्टी बनाई गई थी। तब हवाई पट्टी की लंबाई 4 किलोमीटर थी। यह एयरबेस 1166 एकड़ में फैला है। द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन समेत मित्र देशों ने बर्मा में अपने हवाई हमलों को इसी एयरबेस से अंजाम दिया। 1971 में बांग्लादेश को आजादी मिली तो यहां एयरफोर्स का मुख्यालय बनाने पर विचार किया गया, लेकिन भारतीय हवाई क्षेत्र करीब होने के कारण बाद में इसे टाल दिया गया था।
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लालमोनिरहाट में चीन की दिलचस्पी क्यों?
चिकन नेक 22 किमी चौड़ा एक गलियारा है। यह पूर्वोत्तर के सात राज्यों को देश के बाकी हिस्से से जोड़ता है। चिकन नेक के उत्तर में नेपाल और भूटान हैं। वहीं दक्षिण में बांग्लादेश पड़ता है। चिकन नेक ऊपर भूटान के पास चीन सेना की तैनाती है। अगर दक्षिण में बांग्लादेश में चीन की वायुसेना अपनी मौजूदगी बढ़ाती है तो यह भारत के सामने एक नई चुनौती होगी। चिकन नेक की वजह से चीन बांग्लादेश के इस एयरबेस पर खासा रुचि ले रहा है। एयरबेस को अपग्रेड करने के लिए चीन ही फंड मुहैया कराएगा। ऐसे में समझौते के तहत वह लालमोनिरहाट में निगरानी यंत्र, रडार और लड़ाकू विमानों की तैनाती कर सकता है।
भारत क्यों एक्टिव कर रहा कैलाशहर एयरबेस?
लालमोनिरहाट के जवाब में भारत ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी। बांग्लादेश सीमा के बेहद करीब त्रिपुरा के कैलाशहर में स्थित हवाई अड्डे का नवीनीकरण किया जा रहा है। 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ कैलाशहर एयरबेस ने अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि 1990 में इसे बंद कर दिया गया था। माना जा रहा है कि यहां जमीनी सुविधाओं को बढ़ाया जाएगा। इसे आपातकाल या युद्ध जैसी स्थित में लड़ाकू विमानों के उतरने और उड़ान भरने जैसी सुविधाओं से लैस किया जाएगा। बाकी समय में यह एयरपोर्ट सिविलियन इस्तेमाल के लिए होगा। पूर्वोत्तर में अधिकांश एयरपोर्ट का सैन्य और नागरिक इस्तेमाल किया जाता है। त्रिपुरा में अभी सिर्फ राजधानी अगरतला में एकमात्र हवाई अड्डा है। इस लिहाज से भी कैलाशहर एयरपोर्ट को एक्टिव करना अहम है। 26 मई को भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण की टीम ने कैलाशहर हवाई अड्डे का दौरा किया था।
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चीन को घेरने की रणनीति
पिछले साल भारत ने चीन सीमा के करीब अपने दो एयरबेसों को अपग्रेड करना शुरू किया था। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में बागडोगरा एयरबसे और असम के डिब्रूगढ़ स्थित चबुआ एयरबेस को अपग्रेड किया जा रहा है। इन दोनों एयरबेस की अहमियत यह है कि ये सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) के बेहद करीब हैं। उधर, भारत लद्दाख में स्थित न्योमा हवाई पट्टी को एयरबेस की तरह अपग्रेड कर रहा है। भारत की यह सभी सामरिक तैयारियां चीन को ध्यान में रखकर की जा रही हैं।