बीजापुर से गढ़चिरौली तक, 6 जिलों में ही क्यों जानलेवा बने हैं नक्सली?
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• BIJAPUR 22 Aug 2025, (अपडेटेड 22 Aug 2025, 7:03 AM IST)
भारत में वामपंथी उग्रवाद के पांव सिमट रहे हैं। अप्रैल 2018 तक देश में वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों की संख्या 126 थी, अप्रैल 2024 तक सिर्फ 38 जिले वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित रहे। देश में नक्सलवाद का हाल क्या है, समझिए।

2026 तक गृह मंत्रालय ने नक्सलमुक्त भारत का वादा किया है। (Photo Credit: Khabargaon)
छत्तीसगढ़, झारखंड और महाराष्ट्र। देश के तीन राज्य अब ऐसे हैं, जहां अब भी सुरक्षाबलों के लिए नक्सलवाद अब भी बड़ी चुनौती है। बीजापुर, नारायणपुर, सुकमा, पश्चिमी सिंहभूम और गढ़चिरौली जैसे जिलों से आए दिन मुठभेड़, एंटी नक्सल ऑपरेशन और जवानों की शहादत की खबरें सामने आती हैं। बीजापुर में ही 18 सितंबर को हुए एक IED ब्लास्ट में एक डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड के जवान दिनेश नाग शहीद हो गए थे। कुछ जवान घायल भी हुए थे। छत्तीसगढ़ का यह जिला, आतंकियों का सबसे ताकतवर गढ़ अब भी बना है। सिर्फ एक जिला नहीं, 5 जिला और है जहां जवानों की जन हमेशा खतरे में बनी रहती है।
नक्सलवाद अब भी देश की सबसे गंभीर आंतरिक सुरक्षा चुनौती बनी हुई है। नक्सलियों का 'रेड कॉरिडोर' छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, केरल, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना कुछ हिस्सों में आज भी जिंदा है। माओवादी आदिवासी समूहों के अधिकार पर लड़ने का दावा करते हैं, शसस्त्र हिंसा, जबरन वसूली, लोकतांत्रिक ढांचे को तबाह करके हिंसा फैला रहे हैं। माओवादियों के निशाने पर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कनेक्टिविटी, बैंकिंग और डाक सेवाओं रहती हैं, जिससे देश के अन्य हिस्सों से ये इलाके कटे रहें।
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कैसे सिमट रहा नक्सलवाद?
देश में वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों की संख्या अब देश में 38 है। कुल नक्सलवाद प्रभावित जिलों में से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों की संख्या 12 से घटकर 6 हो गई है। इन जिलों को समझते हैं-
- छत्तीसगढ़: बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा
- झारखंड: पश्चिमी सिंहभूम\
- महाराष्ट्र: गढ़चिरौली
चिंता वाले जिले कौन हैं?
जिन इलाकों में वामपंथी उग्रवाद अब भी चिंताजनक स्थिति में है, जहां अतिरिक्त ध्यान देने की जरूरत है, उन्हें सरकार 'डिस्ट्रिक्ट ऑफ कंसर्न' के तौर पर लिस्ट किया है। ये जिले हैं-
- आंध्र प्रदेश: अल्लूरी सीताराम राजू
- मध्य प्रदेश: बालाघाट
- ओडिशा: कालाहांडी, कंधमाल और मलकानगिरी
- तेलंगाना: भद्राद्री-कोथागुडम
वामपंथी उग्रवाद और कहां हावी है?
- छत्तीसगढ़: दंतेवाड़ा, गरियाबंद और मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी
- झारखंड: लातेहार
- ओडिशा: नुआपाड़ा
- तेलंगाना: मुलुगु
क्यों इन्हीं इलाकों में मारे जा रहे हैं जवान?
गृह मंत्रालय की मानें बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर, सुकमा, पश्चिमी सिंहभूम और गढ़चिरौली जैसे जिले, माओवादी हिंसा इसलिए खतरनाक है क्योंकि ये क्षेत्र घने जंगलों, पहाड़ी इलाकों और दुर्गम भूभाग से भरे हैं। माओवादियों के छिपने और गुरिल्ला युद्ध के लिए ये अनुकूल जगहें हैं। ये इलाके आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। यहां गरीबी, बेरोजगारी और सरकारी पहुंच की कमी की वजह से माओवादी स्थानीय आदिवासियों को भर्ती करने और समर्थन जुटाने में सफल होते हैं। कई इलाके ऐसे हैं जो पहाड़ों और नदियों की वजह से मुख्य धारा से अलग हैं। एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने के लिए पुल और सड़कें तक नहीं है। ये इलाके, विशाल खनिज भंडार वाले इलाके हैं। यहां नक्सली अवैध उगाही करते हैं, तस्करी करते हैं, विकास विरोधी प्रचार और हिंसक हमलों में शामिल रहते हैं।
ये वही इलाके हैं, जहां सबसे ज्यादा IED धमाके होते हैं, हिंसक झड़पें होती हैं। नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बल महीनों से ऑपरेशन क्लीन चला रहे हैं। नक्सलियों की कड़ी ट्रेनिंग आतंकियों की तरह ही होती है। वे प्रशिक्षित लड़ाके हैं, जो एके-47, आईईडी, और रॉकेट लांचर जैसे हथियारों का इस्तेमाल करते हैं। नक्सली, जंगल के जर्रे-जर्रे से वाकिफ हैं। वे स्थानीय भाषा समझते हैं, जनजातीय समूहों से जुड़े रहते हैं, बार-बार आदिवासी समुदायों में सरकार के खिलाफ बगावत की भावना भड़काते हैं। सधी रणनीति की वजह से सुरक्षा बल इनके जाल में फंस जाते हैं, ऑपरेशन और चुनौतीपूर्ण हो जाते हैं। माओवादी इन इलाकों में घात बनाकर बैठे रहते हैं। बारूदी सुरंग बिछाते हैं, अचानक हमला करते हैं। हर साल जवान मारे जाते हैं।
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नक्सलवाद सच में घट रहा है?
गृहमंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि बीते 10 साल में 8,000 से अधिक नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है। नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 20 से भी कम हो गई है। सरकार नक्सल प्रभावित जिलों में स्पेसल सेंट्रल असिस्टेंट (SCA) के तहत प्रभावित और चिंता वाले जिलों को 30 करोड़ रुपये और 10 करोड़ रुपये की वित्तीय मदद दी जाती है। साल 2010 में वामपंथी उग्रवाद की घटनाएं अप्रत्याशित तौर पर बढ़ गई हैं। एक ही साल में 1936 हमले हुए थे, 2024 में ऐसी घटनाएं 374 तक आ गईं। साल 2010 में 1005 लोग मारे गए थे, साल 2024 में 150 मौतें दर्ज की गई थीं।
क्यों दशकों से जिंदा है माओवाद?
गृह मंत्रालय का मानना है कि माओवादी विद्रोह को लंबे समय तक गंभीर खतरा नहीं माना गया। माओवादियों ने कुछ राज्यों के दूरदराज और दुर्गम आदिवासी इलाकों में अपनी पकड़ बनाई। इन क्षेत्रों में अरसे तक अस्थिरता रही। नक्सली सरकारी संस्थाओं को इन इलाकों से धीरे-धीरे हटाते गए, लगातार हिंसा ने डर पैदा किया। सैकड़ों लोग, माओवादी हिंसाओं में मारे गए हैं। पुलिस, प्रशासन और सुरक्षाबलों की गैर मौजूदगी की वजह से माओवादी इन इलाकों में गहरी पैठ बनाते गए। माओवादियों ने स्कूल, बैंक, स्वास्थ्य, सड़क जैसे सरकारी प्रतिष्ठानों पर हिंसक हमले किए, तबाह किए। जिन इलाकों में ये सक्रिय हैं, वहां घने जंगल हैं, पहाड़ियां हैं। जमीन के मुख्य हिस्से से कटे इलाकों में सर्च ऑपरेशन सुरक्षाबलों के लिए हमेशा चुनौती रहे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी:-
यह सच है कि माओवादी हिंसा ने मध्य और पूर्वी भारत के कई जिलों की प्रगति को रोक दिया था। इसीलिए 2015 में हमारी सरकार ने माओवादी हिंसा को खत्म करने के लिए एक व्यापक 'राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना' तैयार की। हिंसा के प्रति शून्य सहिष्णुता के साथ-साथ, हमने इन क्षेत्रों में गरीब लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए बुनियादी ढांचे और सामाजिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केन्द्रित किया है।
नक्सली, जो अब भी सरकारों की नजर में चुभ रहे हैं
- माड़वी हिड़मा: यह शख्स नक्सलियों का सबसे बड़ा कमांडर है। बेहद खतरनाक युद्ध रणनीति तैयार करता है, देशभर में कुख्यात है। 50 से ज्यादा हमले कर चुके हैं। बीजापुर और सुकमा में जवानों के लिए काल बनता है। यह जिंदा है या मारा गया, कुछ भी नहीं पता है। बस्तर क्षेत्र में माओवादियों की बटालियन नंबर वन का कमांडर, जो अपनी आक्रामक रणनीति के लिए कुख्यात है। वह बीजापुर और सुकमा में कई हमलों का मास्टरमाइंड रहा है।
- नितेश यादव: बिहार के लखीसराय-जमुई क्षेत्र में सक्रिय एकमात्र इनामी नक्सली, जो पुलिस की पकड़ से बाहर है।
- मिसिर बेसरा भास्कर: इन नक्सली के कई नाम हैं। यह नक्सली गिरिडीह से आता है। वह सुनिर्मल और सागर के तौर पर भी जाना जाता है। वह कम्युनिस्ट पार्ट ऑफ इंडिया (माओवादी) का पोलित ब्यूरो सदस्य है। उसके सिर पर 1 करोड़ रुपये का इनाम झारखंड सरकार ने रखा है।
- असीम मंडल: आकाश और तिमिर भी इस नक्सली का नाम है। यह पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले से आता है। इसके सिर पर भी 1 करोड़ रुपये का इनाम है।
- अनल दा: तूफान और पतिराम मांझी भी इसका नाम है। यह भी गिरिडीह जिले है। इसके सिर पर भी 1 करोड़ रुपये का इनाम है।
- अनुज: सहदेव सोरेन और अमलेश नाम से यह शख्स कुख्यात है। इसके सिर पर भी 1 करोड़ रुपये का इनाम है।
- मुप्पला लक्ष्मण राव: यह माओवादी संगठनों का प्रमुख नेता है। इसके होने या न होने के बारे में अभी स्पष्ट सूचना नहीं है। इसे गणपति के तौर पर भी लोग जानते हैं।
- मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ अभय: यह नक्सली पोलित ब्यूरो का सदस्य है। संगठन और प्रचार में इसका अहम रोल है। वह तेलंगाना से है। कभी छत्तीसगढ़, कभी महाराष्ट्र और कभी झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में सक्रिय रहता है।
- देव कुमार सिंह: देवजी नाम से कुख्यात यह शख्स पोलित ब्यूरो का सदस्य है। यह नक्सली छत्तीसगढ़ और झारखंड में सक्रिय है।
सरकार कब मिटाएगी नक्सलवाद?
अमित शाह:-
हमने 370 को समाप्त कर दिया। हमने इस देश से आतंकवाद को समाप्त कर दिया। आज मैं कहकर जाता हूं, 31 मार्च 2026 से पहले हम इस देश से नक्सलवाद को खत्म कर देंगे।
कैसा होता है नक्सलियों का संगठन
केंद्रीय स्तर पर
- सेंट्रल कमेटी
- पोलित ब्यूरो
- सेंट्रल मिलिट्री कमीशन
A. रीजनल कमांड
B. स्पेशल एक्शन टीम (हत्यारा दस्ता)
C. मिलिट्री इंटेलिजेंस
D. जंग (पब्लिकेशन और संपादकीय बोर्ड)
E. सेंट्रल मिलिट्री इंस्ट्रक्टर्स टीम
F. टैक्टिकल काउंटर अफेंसिव कैंपेन
G. पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी
H. पीपुल्स सिक्योरिटी सर्विस
राज्य स्तर पर
- पीपुल्स सिक्योरिटी सर्विस
- स्टेट कमेटी
- स्टेट मिलिट्री कमीशन
- जोन कमेटी
- एरिया कमेटी
3 साल में नक्सली हिंसा में मारे गए लोगों की संख्या
- आंध्र प्रदेश
2022: 3
2023: 3
2024: 1 - बिहार
2022: 11
2023: 4
2024: 2 - छत्तीसगढ़
2022: 246
2023: 305
2024: 267 - झारखंड
2022: 96
2023: 129
2024: 69 - केरल
2022: शून्य
2023: 4
2024: शून्य - मध्य प्रदेश
2022: 16
2023: 7
2024: 11 - महाराष्ट्र
2022: 16
2023: 19
2024: 10 - ओडिशा
2022: 16
2023: 12
2024: 6 - तेलंगाना
2022: 9
2023: 3
2024: 8 - पश्चिम बंगाल
2022: शून्य
2023: शून्य
2024: शून्य
कुल मौतें
2022: 413
2023: 485
2024: 374
सोर्स: गृह मंत्रालय
नक्सली हमलों में आम नागरिकों की मौतों के आंकड़े
- 2010: 720 मौतें
- 2014: 222 मौतें
- 2024: 121 मौतें
सोर्स: गृह मंत्रालय
नक्सलियों की मूल विचारधारा क्या है?
भारत दुनिया की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। लोकतांत्रिक तरीके से यहां की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है लेकिन नक्सलवाद, देश के विकास के लिए हमेशा चुनौती रहा है। साल 1967 में नक्सलबाड़ी में शुरू हुआ यह आंदोलन, जमींदारों के खिलाफ किसानों का विद्रोह था। नक्सलियों को पालने-पोसने वाले संगठन का नाम CPI-माओवादी है। भारत में यह प्रतिबंधित संगठन है। यह संगठन आदिवासियों की जमीन बचाने के नाम पर खनन कंपनियों और सरकारी परियोजनाओं के खिलाफ हथियार उठाता है, लोगों को भड़काता है। नक्सली भारत सरकार को सामंती और साम्राज्यवादी मानते हैं। नक्सली आदिवासियों को भड़काकर, इस जंग को जारी रखना चाहते हैं। जहां-जहां उनकी मौजूदगी है, वहां वे आतंक फैलाते हैं, आम नागरिक और सुरक्षाबलों को मारते हैं।
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माओवाद क्या है?
माओत्से तुंग ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन की स्थापना की थी। साल 1949 में उन्होंने पूरे चीन को अपने कब्जे में लिया था। साल 1976 तक वह चीन की सबसे बड़ी ताकत बने रहे। माओत्से तुंग की ही मूल विचारधारा माओवाद है। यह कम्युनिज्म का ही एक रूप है। यह विचारधारा सशस्त्र विद्रोह, जन समर्थन और रणनीतिक गठबंधनों के जरिए सत्ता हासिल करने की विचारधारा है। माओवादी सरकारी तंत्रों के खिलाफ प्रचार और अफवाह फैलाते हैं, आम नागरिकों में सरकार के खिलाफ नफरत फैलाते हैं। जिन इलाकों में माओवाद ने जड़े जमाई हैं, वहां अब तक जवान शहीद हो रहे हैं।
भारत में नक्सलवाद को खाद पानी कैसे मिलता है?
भारत में सबसे बड़ा और सबसे हिंसक माओवादी संगठन CPI (M) है। साल 2004 में दो सबसे बड़े माओवादी समूह, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) एंड पीपुल्स वार और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया का विलय हुआ था। यह संगठन, इन्हीं दो संगठनों के मिलने से मिला है। अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेशन) एक्ट 1967 के तहत यह प्रतिबंधित संगठन है।
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