पुणे की सड़कों पर चलाया ऑटो, ऐसा करने वाली पहली महिला को जानते हैं आप?
देश
• PUNE 07 Mar 2025, (अपडेटेड 07 Mar 2025, 1:26 PM IST)
भारत की पहली महिला ऑटो-रिक्शा चालक हैं शिला दावरे। हाथ में महज 12 रुपये लिए माता-पिता का घर छोड़ पुणे आना शिला के लिए आसान नहीं था। आज विघ्नहर्ता टूरिज्म का बिजनेस चलाती हैं।

शिला दावरे, Photo Credit: X/Social Media
सलवार कमीज पहने, पुणे की सड़कों पर ऑटो रिक्शा चलाने वाली शिला दावरे ने उन सभी को चुप करा दिया जो उन पर संदेह करता था। उन्होंने साबित किया कि एक महिला पुरुष-प्रधान देश में अपना रास्ता खुद बना सकती है। हाथ में केवल 12 रुपये और दृढ़ संकल्प के साथ, 18 वर्षीय शिला दावरे ने पुणे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपने माता-पिता का घर छोड़ दिया। उन्हें शायद ही पता था कि उनका एक साहसी कदम उन महिलाओं को प्रेरित करेगी जो अपने सपनों को पूरा करने की हिम्मत रखती हैं।
1988 में ऑटो-रिक्शा चलाने वाली भारत की पहली महिला ऑटो-रिक्शा चालक हैं। उन्होंने महज 18 साल की उम्र में वर्ष 1988 में पुणे में ऑटो चलाना शुरू किया था। उन्होंने ऐसी हिम्मत ऐसे समय पर दिखाई जब इस पेशे में महिलाओं की भागीदारी जीरो के बराबर रहती थी। उनका यह कदम महिलाओं के लिए बड़ी प्रेरण बना और उन्होंने लिंग-आधारित रूढ़ियों को तोड़ते हुए अपनी पहचान बनाई।
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शिला दावरे से जुड़ी कुछ खास बातें
भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर शिला दावरे ने 1988 में पुणे की सड़कों पर ऑटो चलाना शुरू किया। एक पुरुष-प्रधान पेशे में कदम रखकर उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी और लिंग भेदभाव को चुनौती दी। शिला ने अपने संघर्ष और साहस से दिखाया कि महिलाएं किसी भी पेशे में सफलता हासिल कर सकती हैं। उनकी कहानी न केवल महिला सश्कितकरण का उदाहरण है बल्कि यह भी दर्शाती है कि इच्छाशक्ति और मेहनत से हर चुनौती को पार किया जा सकता है।
Shila Dawre, a trailblazer who broke through the barriers of a male-dominated auto-rickshaw world, became India's first woman auto-rickshaw driver back in 1988.
— U.S. Embassy India (@USAndIndia) March 13, 2024
Her story is not just about driving an auto, it's about steering through societal norms and proving that passion… pic.twitter.com/3og4yWSmCN
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज
शिला दावरे का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज किया गया। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा फर्स्ट लेडीज’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
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'मैं केवल 18 साल की थीं...'
शिला महज 18 साल की थी जब वह परभणी में अपने माता-पिता के घर से पुणे आ गई। पॉकेट में केवल 12 रुपये, कोई काम नहीं और न ही रहने का कोई ठिकाना। दिसंबर 1988 में शिला को परमिच और खुद का रिक्शा चलाने को मिला।
एक पॉकेट में पाव तो दूसरे पॉकेट में मिर्च का पाउडर लेकर वह ऑटो चलाती थीं। शिला की लड़ाई उस समय न केवल अपने परिवार और समाज से बल्कि व्यवस्था के खिलाफ भी थी। शिला के लिए परमिट पाना आसान नहीं था और लोग उन्हें अपमानित करते थे मजाक उड़ाते थे। हालांकि, जब शिला ने लिम्का रिकॉर्ड जीता तो चीजों में कुछ बदलाव आया।
1991 में शादी और फिर सबकुछ बदल गया
वर्ष 1991 में शिला ने अपने एक करीबी दोस्त से शादी की। 1994 में शिला ने पहली बेटी और 2001 में दूसरी बेटी को जन्म दिया। इस बीच शिला और उनके पति ने बसों और रिक्शा का अपना बिजनेस खड़ा किया। हालांकि, इस दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
शिला 14 घंटे तक ऑटो चलाती थी फिर परिवार की जिम्मेदारियां भी संभालती थी। दूसरी बेटी के जन्म के बाद शिला की तबीयत खराब रहने लगी और ऑटो रिक्शा चलाना छोड़ दिया। सारी जिम्मेदारियां पति को दी जिसके बाद शिला की जिंदगी और बदतर हो गई। शिला पर कर्ज बढ़ने लगा और धीरे-धीरे उनका बिजनेस डूब गया। इस वजह से शिला डिप्रेशन में आ गई। शिला को नहीं पता था कि उनका पति क्या कर रहा था। हालात बिगड़ने लगे तो शिला को आत्महत्या के अलावा कोई ऑप्शन नहीं दिखा।
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विघ्नहर्ता टूरिज्म को फिर से किया खड़ा
गणपति विसर्जन के दौरान शिला के पति को काम मिला और धीरे-धीरे कमाई होने लगी। इसके बाद शिला ने विघ्नहर्ता टूरिज्म की स्थापना की जिससे उन्हें अच्छी सफलता हासिल हुई। हालांकि, जब कोविड-19 आया और लॉकडाउन लगा तो फिर से परिवार को मंदी का दौर देखना पड़ा। शिला की बड़ी बेटी ने घर का खर्च उठाने के लिए नौकरी की। वहीं, उनके पति घर में पैसे देना बंद कर चुके थे। शिला को पता चला कि उनके पति का किसी और के साथ अवैध संबंध था।
घरेलू हिंसा सहने के बाद शिला अपनी बेटियों के साथ घर छोड़कर चली गई। हालांकि, इस दौरान शिला ने बिल्कुल हार नहीं माना और अपनी बेटियों के साथ मिलकर दोबारा विघ्नहर्ता टूरिज्म को शुरू किया।
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