संजय सिंह, पटना। महागठबंधन के घटक दलों ने रक्षा बंधन के बाद पूरे बिहार के जिलों में यात्रा और प्रमंडल में रैली करने का फैसला लिया है। इस विरोध की वजह मतदाता सूची के पुनरीक्षण के नाम पर बेवजह लोगों के नाम काटना बताया गया है। इस विरोध से भले ही कुछ हो ना हो पूरे प्रदेश में महागठबंधन का माहौल बनेगा और वर्कर रिचार्ज होंगे। मुस्लिम, दलित और यादव वोटों के बिखराव को रोकने का मौका मिलेगा। महागठबंधन में राष्ट्रीय चेहरा राहुल गांधी ही हैं। इसलिए उन्हें रैली में आमंत्रित किया गया है। रैली के बहाने कांग्रेस प्रदेश में अपनी खोई हुई जमीन को तलाशने का काम करेगी। आरजेडी की भी मंशा है कि रैली के बहाने परंपरागत वोट को अपने पाले में बांधे रखे।
बिहार में कांग्रेस की जमीन 1977 से जेपी आंदोलन के बाद ही खिसकती चली गई। जेपी पर लाठी चार्ज के बाद सवर्ण वोट के एक बड़े हिस्से ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। साल 1989 में भागलपुर दंगे के बाद कांग्रेस के खेमें से मुसलमान वोट भी खिसक गए। मुसलमानों का झुकाव लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल की ओर हो गया। कांग्रेस ने मुसलमानों को वापस लाने की पुरजोर कोशिश की लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।
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कांग्रेस की कैसे निकली हवा?
मंडल और मंदिर आंदोलन ने भी कांग्रेस की हवा निकाल दी। लालू का 'माई' समीकरण मजबूत होते चला गया। यादव और मुस्लिम वोट बैंक पर एकाधिकार लालू प्रसाद का हो गया। आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने अपनी राजनीतिक कला कौशल की बदौलत पिछड़ा, अतिपिछड़ा, दलित और महादलित को भी अपने पाले में कर लिया। कांग्रेस के बड़े नेता बाबू जगजीवन राम का निधन होने के बाद दलित वोट भी कांग्रेस से खिसक गया।
बिहार की राजनीतिक विरासत तेजस्वी ने संभाली
बिहार की राजनीतिक विरासत लालू प्रसाद के बाद तेजस्वी यादव ने संभाला लिया, लेकिन कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो कांग्रेस की राजनीतिक विरासत को संभाल पाए। कुछ चेहरे हैं भी तो वे एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं। ऐसे में राहुल गांधी ही एक सर्वमान्य चेहरा हैं जो बिहार में कांग्रेस को संजीवनी दे सकते हैं। देशव्यापी 'भारत जोड़ो यात्रा' के बाद राहुल गांधी की छवि कुछ सुधरी है। यही कारण है कि अब तेजस्वी यादव रैली में राहुल गांधी को ढूंढने लगे हैं।
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हाल के दिनों में कांग्रेस ने बिहार की राजनीति में अपनी सक्रियता और आक्रमकता बढ़ाई है। प्रधानमंत्री के लगातार बिहार दौरे के बाद महागठबंधन के घटक दलों को राहुल गांधी की याद ज्यादा आने लगी है।
महागठबंधन के सामने चुनौती
महागठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि नीतीश सरकार ने चुनाव को सामने देखकर हर वर्ग के लिए सरकारी खजाना खोल दिया है। लोगों को लुभाने वाले वायदों की झड़ी भी लगा दी गई है। रोजगार देने और पलायन रोकने का आश्वासन भी दिया जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने 29 हजार आशा कार्यकर्ताओं की नियुक्ति जल्द करने की बात कही है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि को भी बढ़ाया गया है। किसानों को साधने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान दो अगस्त को पटना आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में राहुल का बिहार आना महागठबंधन के लोगों को जरूरी लग रहा है।
बहरहाल मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण महागठबंधन की पार्टियों को वोट बंदी लग रहा है। उन्हें यह लगता है कि ज्यादातर वोट अल्पसंख्यकों और दलितों के काटे जाएंगे। विरोध तो एक बहाना है असली उद्देश्य माहौल बनाना और वर्करों को रिचार्ज करना है। इस रैली में राहुल सहित घटक दल के बड़े नेता सहभागी होंगे। इससे वोटरों के बीच एकजुटता का बेहतर संदेश जायेगा।
(यह लेख पत्रकार संजय सिंह ने लिखा है।)