होर्मुज बंद हुआ तो वैश्विक व्यापार और भारत के लिए खड़ा होगा गंभीर संकट
विचार
• NOIDA 23 Jun 2025, (अपडेटेड 23 Jun 2025, 1:39 PM IST)
ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमलों के बाद आशंका बढ़ गई है कि ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसका बुरा असर भारत पर भी पड़ेगा।

होर्मुज जलडमरूमध्य, Photo Credit: Social Media
ईरान की संसद (मजलिस) ने एक महत्वपूर्ण और संभावित रूप से वैश्विक स्तर पर अस्थिरता उत्पन्न करने वाले प्रस्ताव को पारित किया है, जिसमें कहा गया है कि जरूरत पड़ने पर ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है। यह प्रस्ताव अमेरिका और इजरायल की सैन्य गतिविधियों और क्षेत्र में उनके कथित आक्रामक रुख के विरोध में लाया गया। प्रस्ताव को संसद के कट्टरपंथी धड़े का समर्थन प्राप्त है और इसे ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा का हिस्सा बताया गया है।
अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार ईरानी संसद द्वारा होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने से संबंधित प्रस्ताव पारित होने के साथ ही वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और समुद्री व्यापार पर बड़ा खतरा मंडराने लगा है क्योंकि यह संधि मार्ग दुनिया के एक तिहाई समुद्री तेल परिवहन का केंद्र है। भारत जैसे ऊर्जा-निर्भर देश के लिए यह प्रस्ताव न सिर्फ आर्थिक झटका बन सकता है बल्कि पश्चिम एशिया में अस्थिरता और भू-राजनीतिक तनाव को और गहरा कर सकता है, जिससे वैश्विक बाजारों में तेल की कीमतें उछलने और आपूर्ति शृंखलाएं बाधित होने की आशंका बढ़ गई है।
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होर्मुज जलडमरूमध्य, फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को जोड़ने वाला एक संकरा समुद्री मार्ग है, जो विश्व के सबसे रणनीतिक समुद्री चोक पॉइंट्स में से एक है। होर्मुज से प्रतिदिन लगभग 2 करोड़ बैरल कच्चा तेल गुजरता है, जो कि वैश्विक खपत का लगभग 20% है। इसके साथ-साथ तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) का भी बड़ा हिस्सा इसी मार्ग से होकर एशिया और यूरोप की तरफ जाता है। यह लगभग 21 मील चौड़ा है लेकिन टैंकर ट्रैफिक के लिए केवल दो 2-मील चौड़े रास्ते उपलब्ध हैं। समुद्री चोक पॉइंट्स, रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण संकीर्ण समुद्री मार्ग होते हैं जो दो बड़े क्षेत्रों को जोड़ते हैं और जहाजों के आवागमन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। ये आमतौर पर जलडमरूमध्य या नहरें होती हैं, जहां भारी मात्रा में यातायात होता है। दुनियाभर में उपयोग होने वाले समुद्री तेल का करीब 17-20% हिस्सा इसी मार्ग से होकर गुजरता है। सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत, बहरीन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के तेल व गैस निर्यात इसी रास्ते से होते हैं। अमेरिका की पांचवीं नौसेना फ्लीट बहरीन में इसी चोकपॉइंट की सुरक्षा के लिए तैनात रहती है। अगर यह रास्ता बंद हुआ तो वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला टूट सकती है और भू-राजनीतिक तनाव चरम पर पहुंच सकता है।
भारत के लिए खास महत्व
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का करीब 85% तेल आयात करता है, जिसमें बड़ा हिस्सा फारस की खाड़ी के देशों से आता है। भारत के लिए होर्मुज जलडमरूमध्य तेल और एलएनजी (लिक्वीफाइड नेचुरल गैस) आयात का प्रमुख समुद्री मार्ग है। अगर यह रास्ता बंद होता है तो भारत को वैकल्पिक मार्ग अपनाने होंगे जो लंबे, महंगे और अस्थिर हो सकते हैं। भारत, ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह परियोजना में शामिल है, जो अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच के लिए जरूरी है। अगर ईरान अमेरिका से और अधिक अलगाव की ओर जाता है, तो विशेषकर अमेरिका और इजरायल के साथ रिश्तों को ध्यान में रखते हुए भारत को भू-राजनीतिक संतुलन साधने में मुश्किल हो सकती है।
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होर्मुज में जब भी तनाव बढ़ता है तो बीमा दरें बढ़ जाती हैं, शिपिंग महंगी हो जाती है और तेल की कीमतें चढ़ जाती हैं। 2019 में जब ईरान-अमेरिका के बीच तनाव बढ़ा था, तब भारत को कच्चे तेल के आयात पर करोड़ों डॉलर अतिरिक्त चुकाने पड़े थे। यही कारण है कि भारत लगातार ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने और वैकल्पिक मार्गों की तलाश में जुटा है। भारत चाबहार पोर्ट और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारा (आईएनएसटीसी ) जैसे विकल्पों पर काम कर रहा है, जिससे ईरान और रूस के जरिए यूरोप और मध्य एशिया तक बिना होर्मुज पर निर्भर हुए पहुंचा जा सके लेकिन यह अभी भी एक दीर्घकालिक रणनीति है। फिलहाल, भारत समेत दुनिया की अधिकांश ऊर्जा नीतियां होर्मुज की सलामती पर ही टिकी हैं।
चीन और भारत दोनों होंगे प्रभावित
सिर्फ भारत ही नहीं चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों की भी तेल निर्भरता इसी मार्ग पर है, जिससे पूरे एशिया में ऊर्जा संकट गहरा सकता है।
भविष्य की संभावनाएं
फिलहाल यह प्रस्ताव एक राजनीतिक संकेत है और इसकी व्यवहारिकता ईरान की सरकार और रिवोल्यूशनरी गार्ड्स (आईआरजीसी) के रुख पर निर्भर करेगी। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की प्रतिक्रिया यह तय करेगी कि यह प्रस्ताव वास्तविक नाकाबंदी में बदलेगा या कूटनीतिक दबाव का साधन मात्र रहेगा।
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अमेरिका पर राजनीतिक दबाव बनाने की एक रणनीति
पश्चिम एशिया मामलों के जानकार और जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. करीम सादिक का कहना है कि ईरान द्वारा होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का प्रस्ताव राजनीतिक दबाव बनाने की एक रणनीति है लेकिन अगर इसे वास्तव में लागू किया गया तो यह दुनिया के ऊर्जा बाजारों को भारी झटका दे सकता है। उनके अनुसार यह कदम ईरान की सैन्य शक्ति से अधिक उसके राजनीतिक साहस की परीक्षा होगा क्योंकि अमेरिका और उसके खाड़ी सहयोगी देश कभी नहीं चाहेंगे कि यह रास्ता बंद हो। वे मानते हैं कि ऐसी स्थिति में अंतरराष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा बलों की तैनाती और सैन्य टकराव की आशंका तेजी से बढ़ सकती है।
वहीं, ऊर्जा नीति विशेषज्ञ और भारत के ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन(ओआरएफ) से जुड़े डॉ. समीर पटेल का मानना है कि भारत जैसे देश जो होर्मुज पर भारी ऊर्जा निर्भरता रखते हैं, उन्हें इस स्थिति से गंभीर रणनीतिक चेतावनी लेनी चाहिए। स्टेट ऑफ होर्मुज केवल एक भूगोलिक जलमार्ग नहीं, बल्कि दुनिया की ऊर्जा राजनीति का दिल है। भारत के लिए यह सिर्फ व्यापारिक रास्ता नहीं बल्कि राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा की रीढ़ है। जब तक दुनिया कच्चे तेल और गैस पर निर्भर है, तब तक होर्मुज का रणनीतिक महत्व बना रहेगा और भारत को यहां हर तनाव, हर हलचल और हर अवसर पर चौकस रहना होगा।
Note: यह लेख वरिष्ठ पत्रकार डॉ. संजय पांडेय ने लिखा है।
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