भारत ब्रिटिश व्हिस्की का दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार
विचार
• NEW DELHI 27 Jul 2025, (अपडेटेड 27 Jul 2025, 8:07 PM IST)
स्कॉच व्हिस्की एसोसिएशन और कन्फेडरेशन का ब्रिटिश इंडस्ट्री (सीबीआई) द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया में सबसे ज्यादा व्हिस्की खपत करने वाला देश है।

प्रतीकात्मक तस्वीर। Photo Credit- Freepik
नई दिल्ली/लंदन। भारत और ब्रिटेन के बीच संपन्न हुए हुए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के केंद्र में एक महत्वपूर्ण उत्पाद है व्हिस्की। दिलचस्प बात यह है कि भारत न केवल ब्रिटेन से बड़ी मात्रा में व्हिस्की मंगाता है बल्कि यह ब्रिटिश व्हिस्की के लिए दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार भी बन चुका है।
स्कॉच व्हिस्की एसोसिएशन और कन्फेडरेशन का ब्रिटिश इंडस्ट्री (सीबीआई) द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया में सबसे ज्यादा व्हिस्की खपत करने वाला देश है, जहां हर वर्ष करीब 22 करोड़ लीटर से अधिक व्हिस्की का उपभोग होता है। ब्रिटेन, खासतौर पर स्कॉटलैंड, भारत को स्कॉच व्हिस्की निर्यात करने वाला सबसे बड़ा स्रोत है। भारत ब्रिटेन से हर साल करीब 13,000 करोड़ रुपए की प्रीमियम और स्टैंडर्ड स्कॉच ब्रांड्स जैसे जॉनी वॉकर, चिवास रीगल, बैलेनटाइंस, ग्लेनफिडिक और द मैकऐलन आयात करता है। इसके अलावा भारत आयरलैंड, जापान, अमेरिका और कनाडा से भी उच्च गुणवत्ता की व्हिस्की मंगाता है। इस समझौते के तहत भारत द्वारा स्कॉच व्हिस्की पर लगाए गए 150% आयात शुल्क को चरणबद्ध रूप से 75% या उससे नीचे तक लाने पर सहमति बनी है। इससे भारतीय बाजार में स्कॉच की खुदरा कीमतों में 10 से 30 प्रतिशत तक की गिरावट आने की संभावना है। इससे जॉनी वॉकर ब्लैक लेबल, ग्लेनफिडिक जैसी प्रीमियम व्हिस्की आम ग्राहकों की पहुंच में आ सकती हैं।
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दोनों देशों को होगा आर्थिक लाभ
केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) की वेबसाइट के अनुसार भारत सरकार को वर्तमान में शराब से सालाना 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का टैक्स राजस्व प्राप्त होता है, जिसमें से बड़ा हिस्सा विदेशी ब्रांड्स से आता है। विशेषज्ञों का मानना है कि कीमतों में गिरावट से भले ही शुरुआती तौर पर टैक्स संग्रह में कुछ कमी हो, लेकिन मांग में वृद्धि के चलते कुल बिक्री और अंततः राजस्व में दीर्घकालिक वृद्धि संभव है। इसी प्रकार सीबीआई का आकलन है कि ब्रिटेन सरकार को भी स्कॉच व्हिस्की निर्यात से हर साल 5 अरब पाउंड से अधिक का टैक्स राजस्व मिलता है, जिसमें भारत एक सबसे बड़ा बाजार है।
व्यापार पारदर्शिता दोनों में सुधार होगा
सीबीआई की महानिदेशक रेन न्यूटन स्मिथ ने इस समझौते को ब्रिटेन की हाई क्वालिटी शराब निर्यात नीति में एक बड़ी सफलता बताया। भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के पूर्व सचिव डॉ. रजत कटोच का कहना है कि यह समझौता उच्च गुणवत्ता वाले आयात को बढ़ावा देगा और उपभोक्ताओं के लिए विकल्पों को विस्तृत करेगा। स्कॉच व्हिस्की एसोसिएशन (एसडब्ल्यूए) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में टैक्स कटौती के साथ स्कॉच की बिक्री में 20-25% की वृद्धि संभव है जो निर्यात लक्ष्यों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि स्कॉच व्हिस्की की बिक्री में 20-25% की वृद्धि होती है तो राज्यों को शराब टैक्सों से होने वाली आमदनी में भी उल्लेखनीय इजाफा हो सकता है। इसके अलावा, व्हिस्की की घटती कीमतें देश में अवैध आयात और नकली शराब पर भी अंकुश लगा सकती हैं, जिससे टैक्स संग्रह और व्यापार पारदर्शिता दोनों में सुधार होगा।
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अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक कूटनीति भी प्रभावित होगी
एसडब्ल्यूए का आकलन है कि भारत-ब्रिटेन व्हिस्की व्यापार अब केवल लक्जरी सेगमेंट तक सीमित नहीं रहा। यह एक ऐसा संवेदनशील व्यापारिक मुद्दा बन चुका है जो टैरिफ नीतियों, उपभोक्ता व्यवहार और अंतरराष्ट्रीय व्यापार कूटनीति को सीधे प्रभावित करता है। मुक्त व्यापार समझौते के तहत यदि आयात शुल्क में वास्तविक कटौती होती है तो आने वाले वर्षों में भारत का आयात 2500 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है जो ब्रिटिश कंपनियों के लिए लिए भी एक नई उपलब्धि होगी। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यह समझौता यूरोपीय संघ, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को भारत के साथ अपने व्यापार समझौतों पर पुनर्विचार करने को प्रेरित कर सकता है। अमेरिका और आयरलैंड, जो भारत को प्रीमियम व्हिस्की निर्यात करते हैं, उन्हें संभावित प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। इससे भविष्य में टैरिफ संतुलन और कूटनीतिक व्यापार वार्ताओं की नई श्रृंखला शुरू हो सकती है।
जिसकी जितनी खपत उसको उतना भारी राजस्व
दुनिया में व्हिस्की की सबसे अधिक खपत करने वाले देशों को इससे भारी राजस्व प्राप्त होता है। भारत सरकार को केवल विदेशी और घरेलू व्हिस्की पर राज्य उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) और जीएसटी के माध्यम से हर साल लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व प्राप्त होता है, जो भारत के कुल शराब टैक्स संग्रह का 80% हिस्सा है। अमेरिका को व्हिस्की पर फेडरल एक्साइज टैक्स और राज्य शुल्क से सालाना लगभग 10 अरब डॉलर से अधिक की आमदनी होती है। फ्रांस को भी शराब पर भारी टैक्सों के जरिए सालाना लगभग 4 अरब यूरो का राजस्व प्राप्त होता है। जापान में व्हिस्की पर उत्पाद शुल्क और उपभोग टैक्स से सरकार को करीब 300 अरब येन (लगभग 2 अरब डॉलर) की प्राप्ति होती है। वहीं ब्रिटेन को स्कॉच व्हिस्की से न केवल घरेलू बिक्री बल्कि भारी निर्यात शुल्क और उत्पाद करों के माध्यम से हर साल 5 अरब पाउंड से अधिक का राजस्व प्राप्त होता है। ये आंकड़े बताते हैं कि व्हिस्की केवल एक उपभोग उत्पाद नहीं बल्कि देशों के लिए महत्वपूर्ण टैक्स राजस्व स्रोत भी है।
(यह लेख वरिष्ठ पत्रकार डॉ. संजय पांडेय ने लिखा है।)
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