तीन बड़े ठिकाने तबाह फिर भी खत्म नहीं हुआ ईरान का परमाणु कार्यक्रम?
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• NOIDA 23 Jun 2025, (अपडेटेड 23 Jun 2025, 1:06 PM IST)
हाल ही में ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर अमेरिका ने हमला किया। चर्चा है कि इन हमलों के बावजूद ईरान का परमाणु कार्यक्रम जारी है।

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अमेरिका ने एक सटीक सैन्य अभियान में ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों को निशाना बनाकर उन्हें नष्ट कर दिया है। इन हमलों में नतांज, फोर्दो और ईरान के इस्फहान क्षेत्र के कुछ अज्ञात भूमिगत केंद्र बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं। नतांज और फोर्दो वे ठिकाने हैं जहां यूरेनियम संवर्धन (एनरिचमेंट) का कार्य किया जाता था, जो परमाणु बम निर्माण की प्रक्रिया में अहम पड़ाव होता है। हालांकि, ईरानी परमाणु कार्यक्रम चलाने वाले विशेषज्ञों का दावा है कि हमले में उनके परमाणु ठिकानों को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा है।
ईरानी मीडिया के अनुसार एटॉमिक एनर्जी आर्गेनाइजेशन ऑफ ईरान(एईओआई) से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को झटका जरूर लगा है लेकिन यह समाप्त नहीं हुआ है। यह संस्था ईरान के पूरे असैन्य परमाणु कार्यक्रम की निगरानी और संचालन करती है। इस हमले के बाद पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर है। जहां एक ओर अमेरिका और उसके सहयोगी इसे परमाणु हथियार निर्माण रोकने की दिशा में बड़ी सफलता बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर परमाणु नीति के विशेषज्ञों का मानना है कि यह हमला सिर्फ एक अस्थायी असर डालेगा, बल्कि इससे ईरान अधिक आक्रामक और गुप्त तरीके से परमाणु कार्यक्रम को तेज कर सकता है।
ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लंबे समय से नजर रखने वाले और इस विषय पर शोध, रिपोर्टिंग और विश्लेषण करने वाले पश्चिमी मीडिया और सुरक्षा विशेषज्ञ डेविड अलब्राइट और पूर्व CIA अधिकारी बॉब बैकर के हवाले से ईरानी मीडिया ने कहा है कि अमेरिकी हमले के बावजूद ईरान के पास अब भी 6 से 8 प्रमुख परमाणु ठिकाने बचे हुए हैं, जिनमें यूरेनियम संवर्धन किया जा सकता है। इनमें सबसे चर्चित हैं।
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1- बुशेहर: नागरिक परमाणु ऊर्जा केंद्र,परंतु रणनीतिक रूप से अहम। ईरान का इकलौता परमाणु ऊर्जा संयंत्र, रूस की मदद से।
2- लशकराबाद और इस्फहान के अन्य केंद्र: प्रयोगशाला स्तर के कार्यक्रम।
3-खोनदाब (पूर्व नाम अराक): वॉटर रिसर्च रिएक्टर, प्लूटोनियम उत्पादन संभव।
4-तेहरान रिसर्च सेंटर: चिकित्सा कार्यों की आड़ में यूरेनियम उपयोग।
5- करज:कृषि अनुसंधान केंद्र, सेंट्रीफ्यूज निर्माण की आशंका।
6- रगहंद यूरेनियम खनन क्षेत्र।
7- पारचिन सैन्य अड्डा, विस्फोटक ट्रिगर परीक्षण का संदेह।
इसके अलावा अन्य खोजित भूमिगत ठिकाने भी हैं जिनकी जानकारी उपग्रहों या गुप्तचर रिपोर्टों से पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। ये अब ज्यादा भूमिगत एवं सुरक्षित ढांचे में संचालित हो रहे हैं।
क्या ईरान के पास अब भी परमाणु बम बनाने की क्षमता है?
विशेषज्ञों की मानें तो अमेरिका द्वारा किए गए ताजा हमलों से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पीछे जरूर धकेला गया है लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सका है। ईरान के पास पर्याप्त मात्रा में 60% तक संवर्धित यूरेनियम मौजूद है, जिसे 90% तक संवर्धित कर परमाणु हथियार में बदला जा सकता है। यदि ईरान पूरी क्षमता से फिर काम शुरू करता है तो यह स्तर हासिल करने में अब भी कुछ महीने लग सकते हैं।
इस घटना के बाद विशेषज्ञों का मत बंटा नहीं बल्कि लगभग एकमत है। यह हमला परमाणु खतरे को समाप्त करने के बजाय उसे नई शक्ल देने जा रहा है। परमाणु अप्रसार विशेषज्ञ डेविड अलब्राइट ने कहा है कि अमेरिकी हमले से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूर्णतः निष्क्रिय नहीं किया जा सका है। उनकी संस्था इंस्टीट्यूट फॉर साइंस एंड इंटरनेशनल सिक्योरिटी (आईएसआईएस) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ईरान के पास अभी भी कई अज्ञात और अंडरग्राउंड सुविधाएं मौजूद हैं, जो भविष्य में हथियार-निर्माण की क्षमता को फिर जिंदा कर सकती हैं। उन्होंने इसे खतरे को कुछ समय के लिए टालना बताया है। अलब्राइट का सीधा तर्क है कि ठिकानों को नष्ट करने से प्रोग्राम की नींव नहीं टूटती। ईरान ने वर्षों से अपने कार्यक्रम को इतनी परतों और वैकल्पिक संरचनाओं में फैला रखा है कि किसी एक झटके से उसका खात्मा असंभव है। अलब्राइट कहते हैं कि ईरान की महत्वाकांक्षा अभी मरी नहीं, बल्कि शायद और दृढ़ हो गई है।
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लंदन स्थित रणनीतिक संस्थान आईआईएसएस के वरिष्ठ विश्लेषक मार्क फिट्जपैट्रिक ने चेताया है कि यह हमला ईरान की वैज्ञानिक और औद्योगिक ढांचे को सीमित समय के लिए रोकने में सफल हो सकता है लेकिन इससे दीर्घकालिक समाधान की उम्मीद नहीं की जा सकती। ईरान ने अतीत में भी अपने वैज्ञानिकों की हत्या और ठिकानों की तबाही के बाद कार्यक्रम को और गुप्त कर लिया था और अब भी वह वैसा ही कर सकता है। फिट्जपैट्रिक का कहना है कि यह हमला पश्चिमी दुनिया की 'डिटरेंस रणनीति' की सीमाओं को उजागर करता है।
साइबर-जंग की शुरुआत होगी?
न्यूयॉर्क टाइम्स के राष्ट्रीय सुरक्षा संवाददाता डेविड सैंगर ने इस हमले को पारंपरिक और साइबर हथियारों के सम्मिलित उपयोग का उदाहरण बताया है। उन्होंने इसे इजरायल और अमेरिका के संयुक्त प्रयास की रणनीति करार दिया, जिसमें फिजिकल स्ट्राइक के साथ-साथ ईरान की परमाणु नियंत्रण प्रणाली को साइबर तरीकों से बाधित किया गया। यह हमला पारंपरिक सैन्य कार्रवाई भर नहीं था। सैंगर का कहना है कि इसमें साइबर हथियारों का भी प्रयोग किया गया, जिसने ईरानी सिस्टम को अंदर से जाम किया। यह भविष्य की उन जंगों की झलक है, जो सिर्फ मिसाइलों से नहीं, बल्कि कीबोर्ड से लड़ी जाएंगी लेकिन इसी के साथ यह खतरे की घंटी भी है। अगली साइबर प्रतिक्रिया कहीं अमेरिका या उसके सहयोगियों के खिलाफ न हो।
क्विंसी इंस्टिट्यूट के विश्लेषक ट्रिटा पारसी इसे कूटनीति की विफलता मानते हैं। उनका तर्क है कि अगर अमेरिका JCPOA जैसे समझौतों को पुनर्जीवित करने की ओर बढ़ता तो यह हमला टल सकता था। उन्होंने इस हमले को अंतरराष्ट्रीय समझौतों की भावना के खिलाफ बताते हुए कहा कि अमेरिका ने ईरान को एक बार फिर हथियार निर्माण की ओर धकेल दिया है। उनका कहना है कि जब वार्ता की संभावना खत्म होती है, तो युद्ध की संभावना बढ़ जाती है। जेसीपीओए यानी संयुक्त व्यापक कार्य योजना, 2015 में ईरान और पी5+1 (ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस और अमेरिका) के बीच हस्ताक्षरित एक समझौता है। इसका मुख्य उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करना और इसके बदले में उस पर लगे प्रतिबंधों को हटाना था। इसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के द्वारा अनुमोदित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) इस समझौते की निगरानी के लिए जिम्मेदार थी। बाद में अमेरिका इससे हट गया था।
खाड़ी क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ेगी?
वरिष्ठ अमेरिकी पत्रकार बारबरा स्लाविन ने चेताया कि ईरान अब प्रतिशोध की नीति अपना सकता है, जिससे खाड़ी क्षेत्र की भौगोलिक राजनीति और ऊर्जा आपूर्ति दोनों संकट में पड़ सकती हैं। उन्होंने कहा कि यह हमला ईरान के महत्वाकांक्षी परमाणु कार्यक्रम पर सीधा आघात है और इसकी प्रतिक्रिया सिर्फ सैन्य नहीं बल्कि रणनीतिक रूप से गहन होगी। बारबरा ने खाड़ी क्षेत्र में बढ़ते खतरे की ओर इशारा किया है। उनका विश्लेषण केवल ईरान तक सीमित नहीं है, बल्कि उसके प्रतिशोध की प्रतिध्वनि पूरे क्षेत्र में सुनाई देगी। यमन, लेबनान, इराक और सीरिया में भी। यह सिर्फ भू-राजनीतिक समस्या नहीं बल्कि आर्थिक आपूर्ति, तेल कीमतों और वैश्विक मंदी को जन्म देने वाला ट्रिगर बन सकता है।
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एक नया और बेहद गंभीर संकट
विशेषज्ञों का कहना है कि इस हमले ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को भले ही झटका दिया हो लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं बल्कि एक नया और बेहद गंभीर संकट है। आगामी सप्ताहों में यदि कूटनीतिक विकल्प फिर से नहीं खोजे गए तो यह संघर्ष और गहरा सकता है जिसकी कीमत केवल मध्य पूर्व ही नहीं, पूरी दुनिया को चुकानी पड़ सकती है। जब बार-बार कूटनीतिक विकल्पों को दरकिनार कर सैन्य समाधान अपनाए जाते हैं तो सवाल उठता है कि क्या युद्ध ही एकमात्र विकल्प रह गया है? ईरान जैसे राष्ट्र के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई उसे हथियारों की दौड़ में और भी आगे धकेल सकती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिसे दबाया जाता है वह उभरने की नई तकनीक ढूंढ़ता है। अब बारी अमेरिका और वैश्विक समुदाय की है।क्या वे बातचीत की मेज पर लौटेंगे या फिर एक और अघोषित विश्व युद्ध की पटकथा लिखी जा चुकी है।
Note: यह लेख वरिष्ठ पत्रकार डॉ. संजय पांडेय ने लिखा है।
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