पंजाब: AAP से निराश, BJP के साथ, कैसे बदला पंजाबियों का मूड?
दिल्ली में 20 विधानसभाएं ऐसी हैं, जहां पंजाबी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। दिल्ली में जो पंजाबी वोटर 2013 से ही AAP के साथ थे, वे इस बार BJP के साथ नजर आए। इसका असर क्या होगा, समझिए।

कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (Photo Credit: BJP)
आम आदमी पार्टी (AAP) की राजनीति दिल्ली से शुरू हुई। साल 2013 में पहली बार आम आदमी पार्टी के चीफ अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने। 28 विधानसभा सीटों पर जीत के साथ AAP का आगाज हुआ था। उनके साथ हर वर्ग के लोग जुड़े। पंजाबी समुदाय ने भी AAP का भरपूर साथ दिया। साल 2015 और 2020 में भी पंजाबियों ने AAP का साथ दिया।
साल 2025 में AAP को बड़ा झटका लगा। 20 में 17 विधान ऐसी विधानसभाएं हैं, जहां पंजाबी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। उन सभी सीटों पर AAP की जगह लोगों ने बीजेपी के साथ जाना पसंद किया। इन सीटों पर बीजेपी और AAP के बीच जीत-हार का अंतर भी बहुत ज्यादा रहा।
सीटवार कहां-कहां AAP को लगा झटका? आंकड़ों से समझिए
विधानसभा सीट | विधायक | जीत-हार का अंतर |
शालीमार बाग | रेखा गुप्ता | 29,529 |
विश्वास नगर | ओम प्रकाश शर्मा | 25,042 |
कृष्णा नगर | अनिल कुमार गोयल | 19498 |
जनकपुरी | आशीष सूद | 18766 |
राजौरी गार्डन | मनजिंदर सिंह सिरसा | 18190 |
त्रिनगर | तिलकराम गुप्ता | 15896 |
विकासपुरी | पंकज सिंह | 12876 |
गांधी नगर | अरविंदर सिंह लवली | 12748 |
मोती नगर | हरीश खुराना | 11657 |
कस्तूरबा नगर | नीरज बसोया | 11048 |
मादीपुर | कैलाश गंगवाल | 10899 |
शाहदरा | संजय गोयल | 5118 |
ग्रेटर कैलाश | शिखा रॉय | 3188 |
मालवीय नगर | सतीष उपाध्याय | 2131 |
हरि नगर | श्याम शर्मा | 6632 |
राजेंद्र नगर | उमंग बजाज | 1231 |
जंगपुरा | तरविंदर सिंह मारवाह | 675 |
BJP उम्मीद में क्यों है?
साल 2015 और 2020 में बीजेपी ने इस इलाके में दो सीटों पर जीत हासिल की थी। गांधी नगर और विश्वास नगर। दोनों में पंजाबी और सिख आबादी ज्यादा है। बीजेपी साल 2014 से ही पंजाब में जड़ नहीं जमा पा रही है। अब बीजेपी को उम्मीद जगी है कि जिन सीटों पर हमेशा हार मिलती थी, वहां जीत-हार का अंतर 10 हजार से ज्यादा है।
पंजाब की कुल आबादी करीब 2.7 करोड़ के आसपास है। यहां की 57 फीसदी आबादी सिख है। पंजाब में बीजेपी अभी सियासी जमीन तलाश रही है। शिरोमणी अकाली दल के साथ अलगाव के बाद बीजेपी का वोट शेयर बुरी तरह गिरा है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में BJP का वोट शेयर महज 6.60 रहा।
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AAP का वोट शेयर वहां 42 प्रतिशत था। कांग्रेस का वोट शेयर 22.98 प्रतिशत हो गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 5.4 प्रतिशत था। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में शिरोमणी अकाली दल के साथ बीजेपी का गठबंधन था। तब बीजेपी का वोट शेयर 7.2 प्रतिशत था। बीजेपी के लिए पंजाब में गंवाने को ज्यादा कुछ नहीं है, ऐसे में अब दिल्ली के नतीजों का पंजाब पर भी असर हो सकता है। बीजेपी नए सिरे से वहां जमीन तलाश रही है।
कहां चूके केजरीवाल?
अरविंद केजरीवाल पर उनके दूसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। दिल्ली की आबकारी नीति में हुए कथित घोटाले का उन्हें मुख्य साजिशकर्ता कहा गया। उनके अहम सहयोगियों को भी जेल हुई। सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह जैसे नेता ईडी की कस्टडी में आए, भ्रष्टाचार के आरोप लगे और महीनों तक जेल में रहे।
बीजेपी मिडिल क्लास को लुभाने में कामयाब हुई। पंजाबी सिख और खत्री समुदाय भी बीजेपी की ओर आया। इन इलाकों में विकास की स्थिति जस की तस रही लेकिन पानी की किल्लत ने भी सबको नाराज किया। सिख समुदाय दिल्ली में प्रभावी कम्युनिटी है। इस समुदाय का असर दूसरे समुदायों पर भी है। दिल्ली में निर्णायक संख्या में होने के बाद भी अरविंद केजरीवाल की कैबिनेट में किसी सिख चेहरे को जगह नहीं मिली।
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पंजाबी समुदाय अपनी भाषा को लेकर भावनात्मक तौर पर जुड़ा है। ऐसा कहा गया कि अरविंद केजरीवाल ने पंजाबी को भी स्कूलों में प्रमोट नहीं किया। उन्होंने पंजाबी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की। बजट में 12 लाख की आय करमुक्त होने वाला फॉर्मूला भी बीजेपी के पक्ष में गया।
बीजेपी ने कैसे लुभाया?
बीजेपी ने वीरेंद्र सचदेवा को दिल्ली की कमान सौंपी। वह पंजाबी समुदाय से आते है। वह ईस्ट दिल्ली से सांसद हैं। हर्ष मलहोत्रा केंद्रीय राज्य मंत्री हैं और पंजाबी खत्री समुदाय से आते हैं। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी केंद्र में अहम सिख चेहरा हैं, उन्होंने भी दिल्ली की चुनावी कैंपेन संभाली। ऐसे में पंजाबियों को भरोसा हुआ कि AAP की तुलना में बीजेपी पंजाबियों को ज्यादा प्रतिनिधित्व दे रही है।
बीजेपी के घोषणापत्र में भी AAP की तरह कई जनकल्याणकारी वादे रहे। पंजाबी वर्ग, दिल्ली में व्यापारी वर्ग है। यहां दुकानों की सीलिंग की भी मुद्दा जोर-शोर से खूब उठा था। बीजेपी नेताओं ने वादा किया था कि जिन दुकानों को सील गया है, उन्हें 6 महीने के भीतर खोल दिया जाएगा। लैंड एंड डेवलेपमेंट ऑफिस की सभी लीजहोल्ड संपत्तियों को फ्रीहोल्ड में बदला जाएगा।
दिल्ली के व्यापारियों के लिए एक वेलफेयर बोर्ड बनाया जाएगा। बिजनेस लाइसेंस की वैधता बढ़ाई जाएगी। बीजेपी ने कॉमर्शियल बिजली की दरों को घटाने का भी वादा किया। बीजेपी ने गुरुद्वारों में ग्रंथियों को 20,000 रुपये मासिक भत्ता देने का वादा किया। साल 1984 के दंगों में मारे गए लोगों की विधवाओं की मासिक पेंशन बढ़ाने का भी वादा किया। इन मुद्दों ने पंजाबी वोटरों का ध्यान खींचा और बीजेपी को लाभ मिला।
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