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RJD का इशारा; AIMIM आउट, पशुपति पारस इन! क्या हैं मायने?

महागठबंधन के सबसी बड़ी पार्टी आरजेडी के नेता नेता तेजस्वी यादव ने भी पशुपति पारस और उनकी लोक जनशक्ति पार्टी को इसमें शामिल करने के सकारात्मक संदेश दे दिए हैं।

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तेजस्वी यादव और पशुपति पारस। Photo Credit (@yadavtejashwi)

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां और गठबंधन अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। पक्ष-विपक्ष का गठबंधन भी लगभग तय हो चुका है। पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस का स्टैंड भी साफ हो चुका है और अब वह महागठबंधन का हिस्सा बनने के लिए तैयार हैं। महागठबंधन के सबसी बड़ी पार्टी आरजेडी के नेता नेता तेजस्वी यादव ने भी पशुपति पारस और उनकी लोक जनशक्ति पार्टी को इसमें शामिल करने के सकारात्मक संदेश दे दिए हैं। इसके अलावा महागठबंधन का हिस्सा बनने के लिए आरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखने वाली असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) को महागठबंधन ने भाव नहीं दिया और टाटा, बाय-बाय कर दिया है।

 

हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी के वेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में शामिल होने का ऐलान कर दिया है। महागठबंधन में शामिल करने के लिए बिहार एआईएमआईएम के अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखा है।

एआईएमआईएम ने लालू प्रसाद को लिखी चिट्ठी

दरअसल, 3 जुलाई को एआईएमआईएम ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में शामिल होने के लिए राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखा था। यह पत्र बिहार एआईएमआईएम के अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने लिखा था। मगर, आरजेडी ने एआईएमआईएम को बिहार चुनाव ना लड़ने की सलाह दे दी।

 

 

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ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर राष्ट्रीय जनता दल ने एआईएमआईएम को महागठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया, जबकि लोक जनशक्ति पार्टी को महागठबंधन में शामिल करने के लिए फौरन हामी भर दी...

आरजेडी ने क्लियर किया अपना स्टैंड

आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने इसको लेकर जवाब देते हुए कहा, 'मैं एक ही बात कहूंगा कि असदुद्दीन ओवैसी का जनाधार हैदराबाद में है। बिहार में उनके चुनाव लड़ने से क्या होता है नहीं होता है ये असदुद्दीन ओवैसी भी जानते हैं और उनके सलाहकार भी जानते हैं। अगर आपकी मंशा है कि बीजेपी की नफरत वाली राजनीति को शिकस्त दी जाए तो कई बार चुनाव न लड़ने का फैसला भी उसी तरह का फैसला होगा। मुझे उम्मीद है उस पर विचार करेंगे।

2020 के चुनाव में एआईएमआईएम

दरअसल, 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था। एआईएमआईएम ने इस चुनाव में पूरे बिहार में 5,23,279 वोट हासिल किए थे और उसे 1.66 फीसदी मत प्राप्त हुए थे। पार्टी ने बिहार के मुस्लिम बहुल इलाकों में अपने 20 उम्मीदवार उतारे थे। AIMIM सीमांचल क्षेत्र से पांच विधायक जीतने में कामयाब रही थी। पार्टी ने जिन सीटों पर जीत हासिल की थी वो मुस्लिम बाहुल्य सीटें हैं। हालांकि, बाद में एआईएमआईएम के चार विधायक पार्टी बदलकर राजद में शामिल हो गए थे।

 

औवैसी की पार्टी पिछले चुनाव में जिन पांच सीटों पर चुनाव जीती थी वह आमतौर पर लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के पारंपरिक वोटर्स हैं। यह आरजेडी के मुस्लिम-यादव वोट बैंक में सेंध लगाने का स्पष्ट संकेत था। मगर, बाद में तेजस्वी यादव ने चार विधायकों को तोड़कर AIMIM को झटका दे दिया। मगर पिछले चुनाव में पार्टी ने सीमांचल में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा दी है। 

महागठबंधन में क्यों शामिल नहीं हुई एआईएमआईएम?

इस बार एआईएमआईएम की रणनीति दोहरी दिखाई दे रही है। पहली ये कि महागठबंधन में शामिल होकर वह आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर अपना वोट और सीट दोनों बढ़ा सकते क्योंकि राजद और कांग्रेस के वोटर्स आसानी से AIMIM उम्मीदवारों को वोट दे देंगे। इसके अलावा औवैसी विपक्ष के साथ आकर एनडीए को हराने की कोशिश कर सकते हैं जिससे उसे बड़े सियासी गठबंधन का हिस्सा बनने का मौका मिले। 

 

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दूसरा अगर गठबंधन नहीं होता तो AIMIM इस अस्वीकृति को मुस्लिम वोटरों के बीच यह दिखाने के लिए इस्तेमाल कर सकती है कि आरजेडी ने उनकी पार्टी को दरकिनार किया जिससे वह मुस्लिम वोटों को और मजबूती से अपनी ओर खींच सके। साथ ही विपक्ष में शामिल कांग्रेस और आरजेडी ये आरोप लगाती रही हैं कि AIMIM BJP की B-टीम है। इससे साफ है कि आरजेडी AIMIM को सियासी प्रतिद्वंद्वी के रूप में देख रही है न कि सहयोगी के रूप में।

पशुपति पारस होंगे महागठबंधन का हिस्सा

उधर पशुपति पारस के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए पूरी तरह से तैयार है। इसके लिए पारस और आरजेडी सुप्रीमों लालू यादव के बीच बात हो चुकी है। पशुपति पारस ने तो स्पष्ट तौर पर ऐलान कर दिया है कि वह अगला विधानसभा चुनाव महागठबंधन के साथ रहकर लड़ेंगे। हालांकि अब तक यह तय नहीं हो सका है कि उनके खाते में कितनी सीटें आएंगी। मगर, उनको सम्मानजनक सीट मिलने की उम्मीद है। 

 

5 जुलाई को LJP के संस्थापक रामविलास पासवान की जयंती थी। इस दिन को रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान और उनके भाई पशुपति पारस ने बिहार में कार्यक्रम किए। इस दौरान चिराग ने पटना में एक कार्यक्रम के दौरान एनडीए नेताओं के साथ में अपने पिता को याद किया। वहीं, स्वर्गीय रामविलास के भाई पशुपति ने इस दिन को एनडीए और चिराग को संदेश देने के तौर पर इस्तेमाल किया। पशुपति पारस के घर रामविलास पासवान की जयंती में शामिल होने के लिए खुद तेजस्वी यादव पहुंचे, जिससे यह साफ हो गया कि राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी महागठबंधन का हिस्सा होगी।

 

चिराग के खिलाफ हथियार बनेंगे पारस?

इसमें महत्वपूर्ण सवाल यह है कि महागठबंधन के बड़े दल पशुपति पारस का इस्तेमाल किस रूप में करेंगे। अगर पशुपति पारस को कुछ ज्यादा सीटें मिलती हैं और वह चिराग पासवान की पार्टी के खिलाफ उम्मीदवार खड़े करते हैं तो वैसी स्थिति में लड़ाई कठिन और आमने-सामने की हो सकती है। अगर पशुपति पारस को कम सीटें मिलती हैं और कोई भी सीट दे दी जाती है तो वैसी स्थिति में दलित वोटों में ध्रुवीकरण हो सकता है। इस हिसाब से महागठबंधन पारस का इस्तेमाल एनडीए और चिराग पासवान को कमजोर करने के लिए कर सकता है। 

 

महागठबंधन में रहते हुए पशुपति पारस को रिजर्व सीट लड़ने के लिए मिल सकती हैं। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव जब रामविलास पासवान की जयंती के मौके पर पशुपति पारस के घर आए तो इस दौरान उन्होंने रामविलास पासवान को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए पारस को उचित सम्मान देने का भरोसा दिलाया। पारस और तेजस्वी ने बंद कमरे में एक साथ मुलाकात भी की।

 

 

तेजस्वी से मिलने के बाद आरएलजेपी अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने कहा, 'विधानसभा चुनाव के लिए हम तैयारी कर रहे हैं। 25 जिलों का दौरा हम कर चुके हैं। वर्तमान में दलित सेना का राष्ट्रीय अध्यक्ष मैं ही हूं और संगठन पर हमारी पकड़ है। जनता के समर्थन से इस बार हम बेहतर प्रदर्शन करेंगे। हमलोग महागठबंधन के साथ जाएंगे, जल्द ही सीटों को लेकर घोषणा हो जाएगी।'

पशुपति पारस का होगा लिटमस टेस्ट

पशुपति पारस के लिए यह पहला मौका होगा जब राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी उनके दम पर चुनावी मैदान उतरेगी। पशुपति पारस को महागठबंधन का साथ मिलने से चुनाव में बेहतर करने की उम्मीद है। ऐसे में उनके लिए विधानसभा चुनाव लिटमस टेस्ट की तरह साबित हो सकता है। संगठन पर दावा करने वाले पशुपति पारस अगर कुछ सीटें जीत पाते हैं तो बिहार के सियासत में वह मजबूत होकर उभर सकते हैं। साथ ही यह भी तय हो जाएगा कि रामविलास पासवान के समर्थन उनको कितना चाहते हैं।

दलितों में डोमिनेंट जाति है पासवान

विधानसभा चुनाव 2025 चिराग पासवान और पशुपति पारस दोनों के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं है क्योंकि दोनों ही खुद को रामविलास पासवान का असली राजनैतिक वारिस बताते हैं। ऐसे में एनडीए और महागठबंधन दोनों की नजरें इन दोनों नेताओं पर हैं। बिहार में पासवान वोटों पर दोनों नेता दावा करते रहे हैं। बिहार में पासवान वोटरों की संख्या लगभग 69 लाख 31 है। कुल आबादी में पासवान जाति की आबादी 5.31 फीसदी है। अगर दलित आबादी में प्रतिशत की बात कर लें तो पासवान जाति की आबादी लगभग 30.90% है। 243 में 38 विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के आरक्षित हैं।

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