समता पार्टी से JDU तक: बिहार में नीतीश ने कैसे पलटी थी सियासी बाजी?
राजनीति
• PATNA 19 Jul 2025, (अपडेटेड 19 Jul 2025, 2:08 PM IST)
लालू यादव से दो दशक पुरानी दोस्ती तोड़ने के बाद नीतीश कुमार ने कई सियासी प्रयोग किए। जनता दल (जार्ज) से समता पार्टी और बाद में जेडीयू तक कैसा रहा उनका सफर? आइये जानते हैं पूरी कहानी।

समता पार्टी से जेडीयू तक का सफर। ( AI Generated Photo)
लालू और नीतीश के बीच सियासी दोस्ती लगभग दो दशक तक चली। मगर अप्रैल 1994 में नीतीश कुमार ने लालू से अलग होने का फैसला किया। दोस्ती क्यों टूटी? इसके पीछे नीतीश और लालू के अपने-अपने तर्क हैं। नीतीश ने जनता दल से अलग होकर नई सियासी पार्टी का गठन किया। बाद में यही राजनीतिक दल जनता दल (यूनाइटेड) बना और 2005 से आज तक बिहार की सत्ता में काबिज है।
90 के दशक में जब बिहार में लालू प्रसाद यादव का करिश्मा चरम पर था तब उनसे अलग होकर एक नई सियासी पार्टी को खड़ा करना इतना आसान नहीं था, लेकिन नीतीश कुमार के राजनीतिक कौशल ने महज कुछ ही सालों में ऐसी धमक दर्ज कराई, जो बिहार की सियासत में आज भी कायम है। जनता दल (जार्ज) से जनता दल (यूनाइटेड) तक का सफर बेहद दिलचस्प है। आज बात लालू से अलग होने के बाद नीतीश कुमार के सियासी सफर की।
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नीतीश ने क्यों छोड़ा लालू का साथ?
नीतीश कुमार जनता दल में लालू प्रसाद यादव के एक छत्र राज और कथित तानाशाही से संतुष्ट नहीं थे। उनका मानना था कि लालू जेपी आंदोलन के मुद्दों से भटक चुके थे। 'नीतीश कुमार और उभरता' बिहार किताब में अरुण सिन्हा लिखते हैं, 'उनकी (लालू) यह धारण बन गई थी कि जनता दल का अस्तित्व उनकी वजह से है। पार्टी में किसी और के लिए कोई भूमिका नहीं थी। उन्हें केवल सहायक चाहिए थे। सियासी फैसलों के लिए कोई सलाहकार की जरूरत नहीं थी। इसी कारण नीतीश कुमार ने लालू यादव का साथ छोड़ने का फैसला किया।'
'गोपालगंज से रायसीना' किताब में लालू प्रसाद यादव कहते हैं, 'समय के साथ नीतीश कुमार बदल गए और उनके खिलाफ जार्ज फर्नांडीस के खेमे में शामिल हो गए।' वह नीतीश पर पहले वामपंथियों और बाद में दक्षिणपंथियों से मिलने का आरोप लगाते हैं। नीतीश कुमार को लगता था कि सीएम बनने के बाद लालू प्रसाद के व्यवहार में बदलाव आने लगा था। सुख-दुख में साथ देने वाले पार्टी के अन्य समाजवादियों को अनदेखा करने लगे थे। बिना सलाह लालू खुद से ही निर्णय लेने लगे।
कैसे हुआ जनता दल (जार्ज) का गठन?
नीतीश कुमार जनता दल छोड़ने से पहले अपने फैसले की जानकारी शरद यादव को दे चुके थे। उस वक्त शरद ने नीतीश को काफी समझाया, लेकिन वह अपने फैसले पर अड़े रहे। बाद में नीतीश कुमार ने जनता दल के नेता जार्ज फर्नांडीस से मुलाकात की और नई पार्टी बनाने पर चर्चा की। उनके साथ पार्टी के 12 अन्य सांसद भी पहुंचे। औपचारिक तौर पर जनता दल छोड़ने के बाद जार्ज फर्नांडीस की अगुवाई में नीतीश कुमार ने 12 अप्रैल 1994 को जनता दल (जार्ज) नाम से एक नई पार्टी बनाई। जार्ज फर्नांडीस को पहला अध्यक्ष बनाया गया। लालू सरकार में मंत्री वशिष्ठ नारायण सिंह और सुधा श्रीवास्तव समेत जनता दल के कई बागी नेताओं ने यह पार्टी ज्वाइन की।
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जनता दल (जार्ज) भंग, समता पार्टी का उदय
जनता दल (जार्ज) लगभग 6 महीने तक ही अस्तित्व में रहा। अक्टूबर 1994 में नीतीश कुमार ने जार्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी के नाम से नए दल का गठन किया। इस बार भी जार्ज फर्नांडीस को पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। अगले साल यानी 1995 में बिहार में विधानसभा चुनाव थे। नीतीश और जार्ज फर्नांडीस समेत पार्टी के नेताओं ने चुनाव की तैयारी शुरू की। नीतीश कुमार ने लालू के खिलाफ मोर्चा खोला और उन्हें गद्दी से हटाकर ही दम लेने की कसम खाई।
पहला चुनाव और औंधे मुंह गिरी समता पार्टी
अपने गठन के छह महीने के भीतर ही समता पार्टी को पहले विधानसभा चुनाव का सामना करना पड़ा। इसमें पार्टी को प्रत्याशित जीत नहीं मिली। इन चुनावों ने एक ओर जहां नीतीश को गहरा झटका दिया तो वहीं दूसरी तरफ लालू प्रसाद यादव की तस्वीर पहले से भी प्रचंड बनकर उभरी। जनता दल के खिलाफ समता पार्टी ने 310 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों को उतारा, लेकिन जीत नीतीश कुमार समेत सिर्फ 7 नेताओं को ही मिली। 270 सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों को जमानत तक गंवानी पड़ी। पार्टी को सिर्फ 7.37 फीसदी मत मिले और लालू को हराने का नीतीश का सपना धराशायी हो गया।
जब दोबारा सीएम बने लालू
1995 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद की अगुवाई में जनता दल को 167 सीटों पर जीत मिली। उसने कुल 264 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। यह जीत 1990 विधानसभा से भी प्रचंड थी, जिसमें जनता दल को 122 सीटों पर ही जीत मिली थी। लालू प्रसाद यादव दूसरी बार बिहार के सीएम बने। समता पार्टी की करारी हार ने नीतीश कुमार को अपनी रणनीति पर दोबारा सोचने पर मजबूर किया। यही वजह है कि नीतीश ने भाजपा के साथ करीबी बढ़ानी शुरू की और राजपूत समुदाय से आने वाले आनंद मोहन सिंह की 'बिहार पीपुल्स पार्टी' से गठबंधन किया, ताकि प्रदेश की उच्च जातियों का वोट उनके पक्ष में आ सके, क्योंकि बिहार की उच्च जातियां लालू सरकार से खुश नहीं थीं।
- 1996 लोकसभा चुनाव: इस चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर दो गठबंधन उभरे। पहला संयुक्त मोर्चा और दूसरा था राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA)। अटल बिहारी बाजपेयी को एनडीए ने पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर रखा था। लोकसभा चुनाव में समता पार्टी को छह सीटों पर जीत मिली। भाजपा ने 18 सीटों पर अपना परचम लहराया। एक साल पहले विधानसभा चुनाव में 7.37 फीसदी मत पाने वाली समता पार्टी का मत प्रतिशत 14.45 फीसदी पहुंच गया। जनता दल को सिर्फ 22 सीटों पर ही जीत मिली थी। पिछले चुनाव की तुलना में उसे 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था।
- 1998 लोकसभा चुनाव: चुनाव से एक साल पहले 5 जुलाई 1997 को लालू ने जनता दल तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नाम से एक नई पार्टी बना चुके थे। बिहार में लोकसभा चुनाव में भाजपा और समता पार्टी गठबंधन को कुल 29 सीटों पर जीत मिली। दो साल पहले 1996 में गठबंधन को कुल 24 सीटें मिली थीं। अगर बात सिर्फ समता पार्टी की करें तो पहली बार बिहार में समता पार्टी ने 10 और यूपी में दो सीटों पर जीत हासिल की थी। दूसरी तरफ लालू प्रसाद की आरजेडी ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की। शरद पवार की अध्यक्षता में जनता दल ने सिर्फ एक सीट पर सिमट गई। 182 सीटों पर जीतने वाली भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में अपनी सरकार बनाई। इसमें नीतीश कुमार को रेल मंत्री बनाया गया।
लालू के खिलाफ नीतीश को मजबूत करने लगा था NDA
बिहार की सत्ता से लालू यादव को हटाना आसान नहीं था। एनडीए के अधिकांश नेताओं का मानना था कि बिहार में नीतीश को मजबूत किए बिना लालू को नहीं हटाया जा सकता है। अरुण सिन्हा लिखते हैं, 'तब वाजपेयी और अन्य एनडीए नेताओं ने यह बात अच्छी तरह समझ ली थी कि लालू को हटाने का एक ही उपाय है कि नीतीश को मजबूत किया जाए और उन्हें लालू के विकल्प के रूप में पेश किया जाए।' 17 अप्रैल 1999 को केंद्र में वाजपेयी सरकार गिर गई। नीतीश कुमार को भी लगने लगा था कि जनता दल और समता पार्टी के विलय के बगैर लालू को सियासी चुनौती देना आसान नहीं है।
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1999 लोकसभा चुनाव: बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी को 18 और उसकी सहयोगी भाजपा को 23 सीटों पर जीत मिली थी। लालू यादव की पार्टी आरजेडी सिर्फ 7 लोकसभा सीटों पर सिमट गई। मधेपुरा सीट से लालू यादव भी शरद यादव के सामने चुनाव हार गए। यह पहला चुनाव था जब बिहार में नीतीश कुमार भाजपा के सामने बराबर के सहयोगी बनकर उभरे। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की तीसरी बार सरकार बनी और नीतीश कुमार को कृषि मंत्री बनाया गया।
2000 विधानसभा चुनाव: इस चुनाव में नीतीश कुमार की समता पार्टी ने 102 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। उसे 34 सीटों पर जीत मिली। भाजपा ने 67 सीटों पर कब्जा किया। एनडीए को कुल 122 सीटों पर जीत मिली। एनडीए को 41 सीटों की जरूरत थी। सबसे अधिक 124 सीटों पर लालू प्रसाद की आरजेडी को जीत मिली थी। मगर राज्यपाल विनोद पांडे ने आरजेडी की जगह नीतीश कुमार को सरकार बनाने का न्योता दिया। 3 मार्च 2000 को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन सिर्फ 7 दिन में उनकी सरकार गिर गई और राबड़ी देवी दोबारा सीएम बनीं।
समता पार्टी का विलय
साल 2000 में रामविलास पासवान ने शरद यादव की पार्टी जदयू छोड़ दी और अपनी लोक जनशक्ति पार्टी के नाम से एक नया दल बनाया। इसके बाद से ही नीतीश और शरद के करीब आने का मार्ग प्रशस्त हुआ। 15 अक्तूबर 2000 को दिल्ली में हुई बैठक में नीतीश कुमार, शरद यादव और जार्ज फर्नांडीस ने पार्टी के विलय पर सहमति जताई। 30 अक्तूबर 2003 को जनता दल (यूनाइटेड) में नीतीश कुमार की समता पार्टी का विलय हुआ। 2005 से अभी तक नीतीश कुमार की पार्टी बिहार की सत्ता पर काबिज है।
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