भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा के सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के खिलाफ दिए गए बयानों से खुद को अलग कर लिया है। बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 19 अप्रैल को देर रात एक्स पर एक बयान जारी किया है। इस बयान में जेपी नड्डा ने कहा, 'निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा के बयान उनके निजी विचार हैं और बीजेपी का इनसे कोई लेना-देना नहीं है। बीजेपी इन बयानों से सहमत नहीं है और न ही इन्हें समर्थन करती है। पार्टी ने इन बयानों को पूरी तरह खारिज किया है।' नड्डा ने कहा कि बीजेपी हमेशा न्यायपालिका का सम्मान करती है और सुप्रीम कोर्ट सहित सभी अदालतों को लोकतंत्र का अभिन्न अंग मानती है। उन्होंने दोनों नेताओं और अन्य सदस्यों को भविष्य में ऐसे बयान देने से मना किया है।
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निशिकांत दुबे ने क्या कहा था?
निशिकांत दुबे ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट ही कानून बनाएगा, तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने X पर लिखा, 'कानून यदि सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद भवन बंद कर देना चाहिए।' उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर धार्मिक युद्ध भड़काने और अपनी सीमा से बाहर जाने का आरोप लगाया। साथ ही, CJI संजीव खन्ना को देश में गृह युद्धों के लिए जिम्मेदार बताया।
दुबे ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के रुख पर सवाल उठाए और कहा कि कोर्ट ने राम मंदिर जैसे मामलों में दस्तावेज मांगे लेकिन वक्फ के मामले में ऐसा नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि संसद को कानून बनाने का अधिकार है (अनुच्छेद 368), जबकि सुप्रीम कोर्ट का काम केवल कानून की व्याख्या करना है।
क्यों हुआ विवाद?
दुबे के बयान वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान आए, जिसमें कोर्ट ने केंद्र सरकार से कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर सवाल उठाए थे। केंद्र ने कोर्ट को आश्वसन दिया कि अगली सुनवाई तक इन प्रावधानों को लागू नहीं किया जाएगा।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर सवाल उठाए थे, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा दी गई थी। दुबे के बयान ने इस विवाद को और हवा दी। विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने दुबे के बयान को न्यायपालिका पर हमला और संविधान के खिलाफ बताया। कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने इसे अपमानजनक कहा और सुप्रीम कोर्ट से संज्ञान लेने की मांग की।