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हरियाणा: गुटबाजी या नेतृत्व संकट, कांग्रेस क्यों हारी निकाय चुनाव?

हरियाणा में 10 लोकसभा सीटे हैं। साल 2024 में हुए आम चुनावों में 5 सीटें कांग्रेस ने जीत ली थीं। जीत के बाद भी चूक कहां हुई, समझिए।

Deependra Hudda

दीपेंद्र हुड्डा, अपने समर्थकों के साथ। (Photo Credit: Congress/X)

राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड से लेकर दिल्ली तक हर चुनाव में कांग्रेस को झटका लगा है। हरियाणा में साल 2024 में हुए लोकसभा चुनावों में 10 सीटों में से 5 सीटों पर जीत हासिल की लेकिन निकाय चुनावों में बुरी तरह हार गई। कांग्रेस को बीते साल चुनाव में बढ़त मिली थी और एक बार फिर पार्टी के हाथों से चुनाव फिसल गया।

कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का दावा है कि कांग्रेस एक बार फिर गुटबाजी में हारी है। कुमारी शैलजा, उनके समर्थकों का धड़ा और हुड्डा परिवार के समर्थकों के बीच के अनबन में कांग्रेस को झटका लगा है। फरीदाबाद के चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा न दमखम लगाया था फिर भी नतीजे ठीक नहीं रहे। ऐसे में अब एक बार फिर कांग्रेस की आंतरिक कलह को लेकर सवाल उठ रहे हैं।


10 में से 9 मेयर बीजेपी के, कांग्रेस शून्य पर
कांग्रेस ने दमखम तो लगाया लेकिन पूरे राज्य में एक भी मेयर कांग्रेस के नहीं हैं। 12 मार्च को चुनाव के नतीजे आए, जिसमें बीजेपी ने 10 में से 9 मेयर पद जीते हैं। एक सीट पर निर्दलीय पार्टी को जीत मिली है। कांग्रेस लगातार 3 बार विधानसभा हार चुकी है।

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कहां चूक रही है कांग्रेस?
हरियाणा में कांग्रेस की सबसे बड़ी खामी यह रही है कि संगठन की कमी खली है। निकाय चुनाव पर न तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और न ही राहुल गांधी नजर आए। पार्टी अलाकमान, स्थानीय स्तर पर संगठन खड़ा करने में फेल हो गई।

दीपेंद्र हुड्डा। (Photo Credit: Deepedra Hudda)

मेयर चुनावों पर कांग्रेस के अपने नेता ही सवाल खड़े कर रहे हैं। 6 बार के पूर्व विधायक संपत सिंह ने ANI को दिए एक इंटरव्यू में कहा, 'पार्टी वक्त जाया कर रही है, पार्टी को जल्द से जल्द मजबूत पार्टी संगठन का किया जाना चाहिए। राज्य भर में पार्टी कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए मिलकर कोशिश करने की जरूरत है।'

कांग्रेस के लिए झटका क्यों है?
कांग्रेस ने नगर निगम चुनाव में अपने चुनाव चिह्न पर ही उम्मीदवार उतारे थे। उम्मीद थी कि लोग एकजुट हो जाएंगें लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पार्टी के बड़े नेताओं की अनबन जनता तक पहुंची और कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर पाए। विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के साथ यही हुआ, निकाय चुनावों में भी। 

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कांग्रेस अपनी खामियों पर क्या कहा?

कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, 'निकाय चुनावों में बीजेपी ने बूथ और ब्लॉक स्तर पर अपने कार्यकर्ताओं को बैठा दिया था। इसके उलट, कांग्रेस वार्डों तक पर आधिकारिक उम्मीदवार नहीं उतार पाई। विधानसभा चुनाव में हार गए, एक बार भी मंथन नहीं किया।'

कांग्रेस के सीनियर नेता अजय सिंह ने खुद मान लिया है कि हरियाणा में ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यही रही कि जमीन पर पार्टी का संगठन ही नहीं रहा। 

जब कांग्रेस की हुई सार्वजनिक किरकिरी
नगर निगम चुनावों में कांग्रेस की भी कलह सामने आई थी। राज्य कांग्रेस के प्रमुख उदय भान ने 22 जिलों के पार्टी प्रभारियों की सूची का AICC महासचिव प्रभारी दीपक बाबरिया ने विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि इस पर विचार किया जाए। राज्य के नेताओं ने अलग सिफारिशें कीं। 

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दीपर बराबरिया ने भी नगर निगम चुनावों के प्रबंधन के लिए जिला प्रभारियों सह-संयोजकों की समितियों की लिस्ट जारी की। उनकी लिस्ट पर अंबाला के सांसद वरुण चौधरी ने आपत्ति जता दी। उन्होंने कहा कि गैर कांग्रेसियों को मौका दिया गया, जिन्होंने विधानसभा चुनावों में पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ा। 

कौन संभाल सकता है हरियाणा का दंगल?
यूपी कांग्रेस मानवाधिकार प्रकोष्ठ के पूर्व नेता रहे प्रमोद उपाध्याय बताते हैं कि जब फूल चंद मुलाना के पास 2014 तक कांग्रेस की कमान थी, तब तक ब्लॉक स्तर पर बैठकें की जाती थीं, रणनीति तैयार की जाती थी। हरियाणा में इसके बाद खेमेबाजी शुरू हो गई। 

अशोक तंवर को कमान मिली, खेमेबाजी की वजह से हालात बिगड़ने लगे। कांग्रेस के आंतरिक मतभेद बढ़ते रहे। अशोक तंवर पर विवाद हुआ तो शैलजा आईं। उनकी भूपेंद्र हुड्डा से अनबन जग जाहिर है। कांग्रेस तय ही नहीं कर पा रही है कि किस खेमे को समर्थन दिया जाए, किसके पर कुतरे जाएं।

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