20 साल बाद साथ कैसे आ रहे उद्धव और राज ठाकरे? पूरा मामला समझिए
राजनीति
• MUMBAI 27 Jun 2025, (अपडेटेड 27 Jun 2025, 6:36 PM IST)
हिंदी भाषा को लेकर हो रहे विवाद के बीच राज और उद्धव ठाकरे लगभग 20 साल के बाद एक राजनीतिक मंच पर साथ आने वाले हैं। शिवसेना (UBT) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना 5 जुलाई को एकसाथ रैली करेंगी।

उद्धव और राज ठाकरे, Photo Credit: Khabargaon
30 जनवरी 2003, महाबलेश्वर में शिवसेना का सम्मेलन हो रहा था। शिवसैनिकों की भीड़ थी। मंच पर आए राज ठाकरे ने ऐलान किया- उद्धव ठाकरे शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष होंगे। आने वाले समय में राज अपने इस फैसले को अपनी सबसे बड़ी गलती बताने वाले थे। राज, अपने चाचा की ही की ही तरह उग्र और जोशीला भाषण देते थे, जिसकी शिवसैनिकों को आदत थी जबकि इसके उलट उद्धव शांत संगठनकर् थे। ठाकरे के करीब रहने वालों को पता था कि उद्धव, सेना प्रमुख के बेटे हैं। विरासत के स्वाभाविक दावेदार इसलिए एक समूह उनके आसपास रहता था जबकि राज स्वाभाविक तौर पर पार्टी में नंबर दो के तौर पर उभर रहे थे। दोनों का अपना-अपना स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स था। दोनों के अपने-अपने गुट थे। अपने-अपने समर्थक थे। दोनों एक दूसरे के पूरक हो सकते थे। एक संगठन के लिए, दूसरा जनता के लिए लेकिन महत्वाकांक्षाएं टकरा रहीं थीं। जो धीरे-धीरे सार्वजनिक होने लगीं और फिर दोनों की राहें ऐसी अलग हुईं कि फिर 20 साल तक साथ न आए। उद्धव और राज महाराष्ट्र की राजनीति के दो धुरी बन गए लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में असंभव जैसा कुछ भी नहीं तो सवाल यह था कि क्या है वह मुद्दा जो राज और उद्धव को एक साथ लेकर आ रहा है? क्या यह मिलाप, महाराष्ट्र की राजनीति में भी प्रभावी होगा? इस पर बात करेंगे विस्तार से।
महाराष्ट्र के सरकारी स्कूलों में अब मराठी और अंग्रेजी के साथ-साथ तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी पढ़ाई जाएगी। पहले दो ही भाषाओं, मराठी और अंग्रेजी को ही पढ़ाना अनिवार्य था। 16 अप्रैल 2025 को देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर शामिल करने का फैसला किया। यह फैसला राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करने के तहत लिया गया लेकिन यह फैसला राज्य के विपक्षी दलों को रास नहीं आया। जैसे ही आदेश आया इस फैसले का विरोध शुरू हो गया। इसे मराठी पर हिंदी को थोपना बताया गया। खासतौर पर शिवसेना UBT के प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे, इस फैसले से काफी नाराज दिखे। ठाकरे बंधुओं ने इस फैसले को मराठी पर हिंदी को थोपने और मराठी को कमजोर करने वाला बताया।
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भाषा विवाद पर क्या बोले CM फडणवीस?
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने फैसले का बचाव किया। उन्होंने कहा, 'हिंदी को मराठी की जगह पर नहीं लाया जा रहा। मराठी पहले से अनिवार्य है वहीं आप हिंदी, तमिल, मलयालम या गुजराती के अलावा अन्य कोई भाषा नहीं ले सकते हैं क्योंकि हिंदी भाषा के लिए शिक्षक उपलब्ध हैं जबकि अन्य भाषाओं के मामले में शिक्षक उपलब्ध नहीं है।' फडणवीस ने कहा कि मैं एक बात से हैरान हूं कि हम हिंदी जैसी भारतीय भाषाओं का विरोध करते हैं लेकिन अंग्रेजी की प्रशंसा करते हैं।
विपक्षी दलों के विरोध के बाद सरकार ने इस फैसले में एक संशोधन किया। नए आदेश में कहा गया कि हिंदी अब अनिवार्य नहीं होगी। छात्रों के पास हिंदी के अलावा दूसरी भारतीय भाषा को भी चुनने का विकल्प होगा। बशर्ते, स्कूल में एक ही कक्षा के कम से कम 20 छात्र ऐसा अनुरोध करें लेकिन इस फैसले के बावजूद हिंदी का विरोध कर रहे नेताओं का गुस्सा शांत नहीं हुआ।
अक्सर गैर-मराठी भाषियों को पीटने की वजह से चर्चा आने वाली पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने जगह-जगह बैनर लगवा दिए। इन पर लिखा था- हम हिंदू हैं, हिंदी नहीं। MNS प्रमुख राज ठाकरे ने इसे मराठी संस्कृति पर हमला बताया। चेतावनी दी कि स्कूलों में हिंदी पढ़ाने नहीं देंगे और हिंदी की किताबें बिकने नहीं देंगे।
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'मराठी हितों' की रक्षा और हिंदी विरोध की राजनीति से राज ठाकरे को और कुछ हासिल हो या न हो लेकिन उन्हें अपने परिवार और पितृ संगठन शिवसेना (उद्धव बाला साहब ठाकरे) का साथ हासिल होता जरूर दिख रहा है। भाई उद्धव के साथ दो दशक से चली आ रही लड़ाई खत्म हो सकती है। अप्रैल में ही दोनों भाइयों ने हिंदी विरोध के मुद्दे पर साथ आने के संकेत दिए थे। एक इंटरव्यू के दौरान राज ठाकरे ने व्यापक हित में एकजुट होकर लड़ने की बात कही थी। कहा था कि उनके पिछले मतभेद मामूली हैं और मराठी मानुष के व्यापक हित के लिए एकजुट होना कोई मुश्किल काम नहीं है। जवाब में उद्धव ठाकरे ने भी सकरात्मक संकेत दिए थे। उद्धव ने कहा था कि वह छोटी-मोटी बातों और मतभेदों को नजरअंदाज करने के लिए तैयार है, बशर्ते कि महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ काम करने वालों का कोई महत्व नहीं दिया जाए।
एकजुट होंगे ठाकरे बंधु
अब दोनों भाई एक साथ कदम से कदम मिलाकर हिंदी के विरोध में संयुक्त मार्च निकालने जा रहे हैं। यह रैली 5 जुलाई को निकाली जाएगी। पहले राज ठाकरे ने 6 जुलाई को विराट मोर्चा निकालने की घोषणा की थी जबकि उद्धव ने 7 जुलाई को आजाद मैदान में हो रहे विरोध प्रदर्शन को समर्थन देने का ऐलान किया था लेकिन अब 5 जुलाई को दोनों भाइयों ने मिलकर रैली निकालने की घोषणा की है।
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जय महाराष्ट्र!
— Sanjay Raut (@rautsanjay61) June 27, 2025
"There will be a single and united march against compulsory Hindi in Maharashtra schools. Thackeray is the brand!"
@Dev_Fadnavis
@AmitShah pic.twitter.com/tPv6q15Hwv
शिवसेना (यूबीटी) सांसद और प्रवक्ता संजय राउत ने एक्स पर एक पोस्ट में घोषणा की कि दोनों नेता अब सरकारी स्कूलों में हिंदी लागू किए जाने के खिलाफ एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। राउत ने उद्धव और राज की एक साथ तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, 'महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। जय महाराष्ट्र!'
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक संजय राउत ने बताया कि राज ठाकरे ने उन्हें फोन किया था और एक ही मुद्दे पर दो अलग-अलग रैलियों की बजाय साझा प्रदर्शन की बात कही। संजय राउत ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने इससे सहमति जताई और 5 जुलाई को ही संयुक्त विरोध का फैसला किया गया। MNS नेताओं ने भी दोनों भाइयों के साथ आने से खुशी जताई और इसे संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन 2.0 बताया।
संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन, 50 के दशक में मराठी भाषी महाराष्ट्र राज्य के गठन के लिए हुआ था, जिसमें राज और उद्धव के दादा प्रबोधनकार ठाकरे भी शामिल थे और शिवसेना के स्थापना के पीछे इस आंदोलन की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस आंदोलन के भी मूल में मराठी भाषा थी।
सस्नेह जय महाराष्ट्र,
— Raj Thackeray (@RajThackeray) June 26, 2025
आज सकाळी आपल्या मराठीसाठी, महाराष्ट्रासाठी आणि मराठी माणसासाठी येत्या ६ जुलैला मोर्च्याची घोषणा केली होती. त्यात थोडा बदल आहे, हा मोर्चा रविवार ६ जुलैच्या ऐवजी, ५ जुलै शनिवारी सकाळी १० वाजता असणार आहे. बाकी ठिकाण आणि इतर सर्व तपशील तसेच असणार आहेत. त्यामुळे… pic.twitter.com/BUN1Av0GSK
20 साल बाद एक होगा राजनीतिक मंच
वापस लौटते हैं ठाकरे बंधुओं पर। यह पिछले दो दशक में पहली बार है जब दोनों भाई राज और उद्धव, किसी राजनीतिक मंच पर एक साथ आएंगे। 27 नवंबर 2005 को शिवसेना से इस्तीफा देने के बाद कुछ पारिवारिक कार्यक्रमों को छोड़ दें तो राज और उद्धव कभी साथ नहीं दिखे। यहां तक कि जब राज ठाकरे अलग हुए तो उनके समर्थकों ने शिवसेना के दफ्तरों पर तोड़फोड़ की। राज ठाकरे को मनाने आए संजय राउत पर भी हमला हुआ था। 2006 की शुरुआत में राज ठाकरे ने अपनी नई पार्टी बनाई। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना। राज भी अपने चाचा बाल ठाकरे की ही राह पर चले। शुरु से ही वह उन्हीं की तरह हाव-भाव, व्यक्तित्व और राजनीति। कार्यकर्ताओं के बीच मजबूत पकड़। उन्हें बाल ठाकरे के उत्तराधिकार का दावेदार भी माना जाता था। कम से कम 30 जनवरी 2003 की सुबह तक तो जरूर।
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जब महाबलेश्वर में खुद राज ने उद्धव के नाम का ऐलान शिवसेना के कार्यकारी प्रमुख के तौर पर किया। उद्धव शांत स्वभाव के थे। पर्दे के पीछे रहकर काम करते थे और महत्वाकांक्षी भी थे। दोनों भाई महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश रखते थे। राज ने तो इस बात को स्वीकार भी किया था जबकि उद्धव इस पद को संभाल चुके हैं। पिछले दो दशक का दौर दोनों भाइयों के बीच काफी खराब रहा। आपसी टकराव होता रहा। दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता भिड़ते रहे। अब 20 साल बाद दोनों के साथ आने का ऐलान हुआ है। यह साथ कितनी दूर तक रहेगा? क्या दोनों एक साथ गठबंधन बनाएंगे? दो दशक पहले जिस बात को लेकर दोनों अलग हुए थे क्या उसे भूलकर एक दूसरे को स्वीकार कर पाएंगे?
क्योंकि आज भले ही दोनों आपसी मतभेद को मामूली बता रहें हों, लंबे समय तक नौबत ऐसी रही कि कट्टर दुश्मन भी पानी मांग ले लेकिन यह महाराष्ट्र की राजनीति है। यहां कुछ भी अंतिम नहीं है।
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