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कभी जिगरी भाई, कभी सियासी दुश्मन, कैसे बने-बिगड़े उद्धव-राज के रिश्ते?

शिवसेना में उद्धव ठाकरे को बाल ठाकरे तरजीह देने लगे थे। राज ठाकरे दरकिनार हो रहे थे। 2000 के दशक में यह अनबन बढ़ती चली गई। राज ठाकरे ने अकेले चलने का फैसला किया।

Thackeray brothers

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे। (Photo Credit: PTI)

महाराष्ट्र में 20 साल की सियासी दुश्मनी के बाद, अब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक हुए हैं। दोनों चचेरे भाइयों ने कहा है कि महराष्ट्र और मराठी के हित के लिए वे साथ आए हैं। यह शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (MNS) की संयुक्त विजय रैली थी। वर्ली में हुई इस रैली में दोनों भाइयों ने संकेत दिया कि वे अब पुरानी राजनीति पर लौट रहे हैं। उद्धव ठाकरे, महा विकास अघाड़ी गठबंधन का हिस्सा होने के बाद अपनी राजनीति से इतर सेक्युलर राजनीति करने लगे थे लेकिन इस रैली में वे पुराने ढर्रे पर लौटते नजर आ रहे हैं। उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर मराठी भाषा के लिए लड़ना गुंडागर्दी है तो हम गुंडा हैं। विजय रैली में दोनों भाई, वर्षों बाद साथ आते दिखे। 

महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने का आदेश दिया था। विरोध के बाद इसे वापस लेना पड़ा। दोनों भाइयों ने इसे अपनी जीत बताई है। नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया (NSCI) डोम में भारी भीड़ के बीच दोनों भाइयों ने मराठी लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने का वादा किया। उद्धव ठाकरे ने अपनी पार्टी शिवसेना (यूबीटी) और राज की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के बीच आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के लिए गठबंधन करने का संकेत दिया है। महाराष्ट्र में दोनों चचेरे भाइयों के एक होने की खूब चर्चा है। 

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जिस एकता की चर्चा हो रही है, उसके बिखराव की कहानी जानते हैं आप? अगर नहीं तो इतिहास के नजरिए से देखिए, कैसे दोनों भाइयों के रिश्ते तल्ख हुए और बने-बिगड़े।


परिवार के एक होने पर क्या बोले उद्धव और राज ठाकरे

राज ठाकरे:-
महाराष्ट्र किसी भी सियासत या झगड़े से बड़ा है। जो बाला साहेब ठाकरे नहीं कर पाए, जो और कोई नहीं कर पाया, वो देवेंद्र फडणवीस ने कर दिखाया, हमें एक कर दिया।'

उद्धव ठाकरे:- 
हमारे बीच की दूरियां जो मराठी ने दूर कीं सभी को अच्छी लग रही हैं। मेरी नजर में, हमारा एक साथ आना और यह मंच साझा करना, हमारे भाषण से कहीं ज्यादा अहम है।

 

उद्धव ठाकरे, बाल ठाकरे और राज ठाकरे। (Photo Credit: PTI)

कैसे एक-दूसरे के सियासी दुश्मन बन गए थे राज और उद्धव ठाकरे?

  • 1988: राज ठाकरे शिवसेना के स्टूडेंट्स विंग के हेड बने। लोग उन्हें बाल ठाकरे का वारिस मानने लगे।
  • 1990: उद्धव ठाकरे राजनीति में आए लेकिन उनकी भूमिका सिर्फ रणनीति तक सीमित रही।
  • 2002: शिवसेना में राज और उद्धव ठाकरे के बीच सत्ता की जंग शुरू हुई।
  • 2003: जनवरी में उद्धव ठाकरे पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए।
  • 2004: राज ठाकरे के समर्थकों को टिकट नहीं मिला, नाराजगी सार्वजनिक मंचों पर सामने आने लगी।
  • 2005: दोनों चचेरे भाइयों के बीच अनबन बढ़ी और राज ठाकरे ने शिव सेना छोड़ दी। पार्टी में बिखराव हुआ।
  • 2006: राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई।
  • 2009: विधानसभा चुनाव हुए। MNS को कुछ वोट मिले लेकिन कांग्रेस-एनसीपी की सरकार तीसरी बार सत्ता में आई। उद्धव ठाकरे ने BMC में शिव सेना का कब्जा बनाए रखा।

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कभी BJP के साथ, कभी खिलाफ, पल-पल बदले हैं राज ठाकरे

  • 2014: राज ठाकरे ने नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव में समर्थन दिया। BJP और शिवसेना का गठबंधन बना रहा।
  • 2019: उद्धव ठाकरे की शिव सेना NDA का हिस्सा बनी लेकिन राज ने BJP और मोदी के खिलाफ प्रचार किया। बाद में BJP-शिवसेना गठबंधन की जीत हुई। दशकों का गठबंधन टूटा। उद्धव ने  कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाई। सरकार को महा विकास अघाड़ी नाम दिया गया।
  • 2022: एकनाथ शिंदे ने बगावत की और शिव सेना तोड़कर BJP के साथ सरकार बनाई। राज ने BJP का सपोर्ट किया, लेकिन शिंदे से नाराजगी जताई।
  • 2024: उद्धव ठाकरे MVA के चेहरे बने जबकि राज ठाकरे ने लोकसभा में BJP को समर्थन दिया। MNS को कोई सीट हासिल नहीं हुई।

 

उद्धव ठाकरे, बाल ठाकरे और राज ठाकरे। (Photo Credit: PTI)

करीब कैसे आए?

  • 2025: अप्रैल में राज ठाकरे ने सुलह की बात कही। उद्धव ने भी सहमति जताई।
  • 2025: 27 जून को दोनों ने मिलकर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के हिंदी थोपने के फैसले का विरोध किया। यह फैसला, सरकार ने वापस लिया।
  • 2025: 5 जुलाई को दोनों ने विजय रैली की योजना बनाई, लेकिन फिर मिलकर मराठी भाषा के लिए एकजुट होने का फैसला लिया।

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