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बिहार: चुपके से NRC लागू कर रहा चुनाव आयोग, विपक्ष को क्यों लगा ऐसा?

बिहार के चुनाव में NRC की एंट्री हो गई है। विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि बिहार में चुनाव आयोग की ओर से बिना शोर-शराबे के NRC लागू किया जा रहा है। वक्फ पर उलझी विपक्षी पार्टियां, अचानक NRC का जिक्र क्यों करने लगी हैं, आइए विस्तार से समझते हैं।

Bihar NRC row

राहुल गांधी, असदुद्दीन ओवैसी और तेजस्वी यादव। (Photo Credit: Khabargaon)

बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, चुनाव की तारीखों का इंतजार है लेकिन सियासी मंचों पर मुद्दों ने दस्तक दे दी है। बिहार में अब नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) की एंट्री हो गई है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (AIMIM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग पर गुपचुप तरीके से बिहार में एनआरसी लागू करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करवाने के लिए अब नागरिकों को दस्तावेजों के जरिए यह साबित करना होगा कि वह कब और कहां पैदा हुए थे। उनसे यह भी मांगा जा रहा है कि उनके पाता पिता भी कब और कहां पैदा हुए थे। असदुद्दीन ओवैसी का दावा है कि बिहार में लोगों को चुनावी प्रक्रिया से बाहर करने के लिए यह मनमानी पूर्ण रवैये से किया जा रहा है। उनका कहना है कि अगर यही सब हुआ तो चुनाव आयोग पर लोगों का भरोसा कम हो जाएगा। 


असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग अगर इस प्रक्रिया पर काम कर रहा है तो यह जनता के साथ क्रूर मजाक है। उन्होंने कहा कि जिस आबादी के पास दो वक्त की रोटी न हो, वह अपने मां-बाप के जन्म के दस्तावेज कहां से लाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी कागजों में तो वैसे ही गलतियां होती हैं, ऐसे में आम आदमी कहां से कागज को सहेज कर रखेगा। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि केवल तीन चौथाई ही आबादी जन्म रजिस्टर कराती है। उन्होंने कहा है कि चुनाव आयोग का यह फैसला गरीबों के मजाक उड़ाने जैसा है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि साल 1995 में सुप्रीम कोर्ट, ऐसी मनमानी प्रक्रियाओं पर सवाल उठा चुका है।


बिहार के चुनाव में NRC की एंट्री क्यों? औवैसी ने बताया

AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी:- 
निर्वाचन आयोग बिहार में गुप्त तरीके से एनआरसी लागू कर रहा है। वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करवाने के लिए अब हर नागरिक को दस्तावेजों के जरिए साबित करना होगा कि वह कब और कहां पैदा हुए थे। साथ ही यह भी कि उनके माता-पिता कब और कहां पैदा हुए थे। विश्वसनीय अनुमानों के अनुसार भी केवल तीन-चौथाई जन्म ही पंजीकृत होते हैं। ज़्यादातर सरकारी कागज़ों में भारी गलतियां होती हैं। बाढ़ प्रभावित सीमांचल क्षेत्र के लोग सबसे गरीब हैं; वे मुश्किल से दिन में दो बार खाना खा पाते हैं। ऐसे में उनसे यह अपेक्षा करना कि उनके पास अपने माता-पिता के दस्तावेज होंगे, एक क्रूर मजाक है। इस प्रक्रिया का परिणाम यह होगा कि बिहार के गरीबों की बड़ी संख्या को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया जाएगा। वोटर लिस्ट में अपना नाम भर्ती करना हर भारतीय का संवैधानिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में ही ऐसी मनमानी प्रक्रियाओं पर सख़्त सवाल उठाए थे। चुनाव के इतने करीब इस तरह की कार्रवाई शुरू करने से लोगों का निर्वाचन आयोग पर भरोसा कमजोर हो जाएगा। 


किस प्रक्रिया से डर गए हैं ओवैसी?

असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग के वोटर लिस्ट की प्रक्रिया से जुड़ा एक दावा किया। उन्होंने कहा, 'अगर आपकी जन्मतिथि जुलाई 1987 से पहले की है तो आपको जन्म की तारीख और जन्म स्थान दिखाने वाला कोई एक दस्तावेज़ देना होगा अगर आपका जन्म 0  1.07.1987 और 02.12.2004 के बीच हुआ है तो आपको अपना जन्म प्रमाण दिखाने वाला एक दस्तावेज़ देना होगा। अपने माता या पिता में से किसी एक की जन्म तारीख और जन्म स्थान का दस्तावेज भी देना होगा।

असदुद्दीन ओवैसी ने दावा किया, 'अगर आपका जन्म 02.12.2004 के बाद हुआ है तो आपको अपनी जन्म तारीख और स्थान के दस्तावेज के साथ-साथ, दोनों माता-पिता के जन्म की तारीख और स्थान को साबित करने वाले दस्तावेज भी देने होंगे। अगर माता या पिता में से कोई भारतीय नागरिक नहीं है तो उस समय के उनका पासपोर्ट और वीजा भी देना होगा।'


बिहार में 'निष्पक्ष चुनाव' पर खतरा क्यों देख रहे हैं ओवैसी?

असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया कहा, 'चुनाव आयोग हर वोटर की जानकारी जुन से जुलाई तक एक महीने में घर-घर जाकर इकट्ठा करना चाहता है। बिहार जैसे राज्य, जो बहुत बड़ी आबादी और कम कनेक्टिविटी वाला है, वहां इस तरह की प्रक्रिया को निष्पक्ष तरीके से करना लगभग असंभव है।'


नागरिकता, सबूत और कोर्ट पर क्या है ओवैसी की चिंता?

असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, 'साल 1995 के लाल बाबू हुसैन केस में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि किसी व्यक्ति को, जो पहले से वोटर लिस्ट में दर्ज है, बिना सूचना और उचित प्रक्रिया के हटाया नहीं जा सकता। ये चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह दिखाए कि किसी व्यक्ति को विदेशी क्यों माना जा रहा है। सबसे अहम बात, कोर्ट ने ये भी कहा कि नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ों की एक सीमित सूची नहीं हो सकती, हर तरह के सबूत को स्वीकार किया जाना चाहिए।'


विपक्ष ने क्या कहा है?

  • राष्ट्रीय जनता दल
    बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी कहा है कि यह बिहार के लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर करने की साजिश है। उन्होंने कहा, 'बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग द्वारा अचानक विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा अत्यंत ही संदेहास्पद और चिंताजनक है। निर्वाचन आयोग ने आदेश दिया है कि सभी वर्तमान मतदाता सूची को रद्द करते हुए हर नागरिक को अपने वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए नए सिरे से आवेदन देना होगा, भले ही उनका नाम पहले से ही सूची में क्यों न हो। बीजेपी-RSS और NDA संविधान व लोकतंत्र को कमजोर क्यों करना चाह रही है? हमने बीजेपी की कठपुतली चुनाव आयोग से कुछ सवाल पूछे है। जरुर पढ़िए एवं लोगों को भी बताइए।'
  • कांग्रेस
    कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, 'नरेंद्र मोदी अब बिहारियों के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं। इस बार हमला सीधा आपके वोट के अधिकार पर है। मोदी जी के चुनाव आयोग ने गरीब, मजदूर और अपने राज्यों से बाहर काम की तलाश में गए बिहारियों के खिलाफ पूरी बिसात बिछा दी है। बिहार में स्पेशल इंटेसिंव रिव्यू के जरिए कागज दिखाने की नई जुगत असल में वोटर लिस्ट से लोगों को बाहर करने की है।'


कांग्रेस, विपक्ष और AIMIM का ऐतराज क्या है?


कांग्रेस प्रवक्ता ने सुप्रिया श्रीनेत ने चुनाव आयोग के बदलाव पर आशंका जाहिर की है। उन्होंने कहा, 'वोटर लिस्ट में तीन तरह के रिव्यू होते हैं। रूटीन रिव्यू, समरी रिव्यू और स्पेशल इंटेंसिव रिव्यू। रूटीन रिव्यू पूरे साल होता है। समरी रिव्यू वोटर लिस्ट को बेस बना कर कुछ वक्त के लिए साल में एक बार होता है, अमूमन चुनावों से पहले। स्पेशल इंटेसिंव रिव्यू में मौजूदा लिस्ट को हटा कर, नए सिरे से लिस्ट तैयार की जाती है।'

सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, 'बिहार में 22 साल बाद चुनाव से सिर्फ 2 महीने पहले स्पेशल इंटेसिव रिव्यू किया जा रहा है। पिछली बार जब बिहार में यह स्पेशल इंटेसिव रिव्यू किया गया था तब 2 साल लगे थे, अब दावा है कि यह एक महीने में ही कर लिया जाएगा। यह कैसे संभव है?'


स्पेशल इंटेसिव रिव्यू क्या है?

सुप्रिया श्रीनेत ने दावा किया, 'अगर आपका 2003 की वोटर लिस्ट में नाम था, तो वह नई लिस्ट में स्थापित हो जाएगा।'

प्रक्रिया क्या होगी? 

  • 1987 से पहले जन्म: अपने जन्म और जन्मस्थान का सर्टिफिकेट लगाना होगा।
  • 1987-2004 के बीच में जन्म: माता-पिता में से एक का जन्म और जन्मस्थान का प्रमाण लगाना होगा।
  • 2004 के बाद जन्म: दोनों माता-पिता का जन्म और जन्मस्थान का प्रमाण लगाना होगा।


         कौन से प्रमाण मान्य हैं?

  • जन्म प्रमाणपत्र
  • जाति प्रमाणपत्र
  • स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र

    कौन से प्रमाण मान्य नहीं हैं?
  • आधार और वोटर आईडी कार्ड

 
कांग्रेस के सवाल क्या हैं?

  • 3 महीने पहले ही तो समरी रिव्यू हुआ था, तो उसी समय स्पेशल इंटेसिव रिव्यू क्यों नहीं किया गया? 
  • नए चुनाव आयुक्त ने बोला उन्होंने एक महीने पहले ही 4000 कंसल्टेशन किए लोगों से। तो उनमें से एक में भी इस स्पेशल इंटेसिव रिव्यू पर चर्चा क्यों नहीं की गई?
  • इतना बड़ा कदम उठाने से पहले चुनाव आयोग ने इस पर राजनैतिक दलों से विचार-विमर्श क्यों नहीं किया?


यह स्पेशल इंटेसिव रिव्यू किसकी मांग पर किया जा रहा है?

  • 22 साल बाद एकाएक निर्णय क्यों लिया गया, शुरुआत बिहार ही से क्यों जहां कुछ ही महीनों में चुनाव होने हैं?
  • अगर यह करना ही था तो मानसून के दौरान क्यों करना था जबकि बिहार का लगभग 73% क्षेत्र बाढ़ग्रस्त है?
  • प्रमाण पत्र ही चाहिए तो आधार मान्य क्यों नहीं?


कांग्रेस को किस बात की चिंता सता रही है?

कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, 'बिहार में करीब 8 करोड़ वोटर हैं। इस निर्णय का प्रभाव करीब 4.76 करोड़ पर पड़ेगा जिनका जन्म 1987 के बाद हुआ है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा गरीब, मजदूर, प्रवासी लोगों पर पड़ेगा। एक प्रधानमंत्री जो अपनी डिग्री ना दिखाने के लिए कानून बनाता है वो पूरे देश के कागज देखने पर क्यों आमादा है? वो क्यों ऐसे स्वांग रचता है जिससे गरीब मजदूर का सबसे बड़ा हथियार उसका वोट ही छीन लिया जाए? सारा देश जानना चाह रहा है कि आखिर लोगों से वोट के अधिकार को छीनने की कवायद क्यों की जा रही है?'

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